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2 Oct 2024 · 2 min read

” कृष्ण-कमल  की महिमा “

कृष्ण-कमल ” दुनिया के सबसे ख़ूबसूरत फूलों मेँ गिना जाता है, जिसे राखी फूल, झुमका फूल और Passion flower भी कहते हैं परन्तु नीली-बैँगनी छटा के कारण भारत मेँ यह सामान्यतः ” कृष्ण-कमल ” के नाम से ही जाना जाता है।
अपने मेँ कई कहानियां समेटे, उक्त फूल के पुष्पाँगोँ (floral parts) के विश्लेषण पर सभी वनस्पतिविदों एवं पुराणवेत्ताओं के मध्य मतैक्य( consensus) न होना कोई बड़ी बात नहीं, तथापि एक सर्वाधिक प्रचलित मतानुसार, इसकी पाँखुरियोँ (petals ) की बाहरी पँक्ति 100 कौरवों को, पीले रँग की भीतरी पँक्ति 5 पाँडवों को जबकि पीले-हरे, पुँकेसरों (stamens) की पँक्ति सुदर्शन चक्र को सन्दर्भित करती है। मध्य भाग मेँ स्थित गुलाबी रँग का अँडाशय (ovary) द्रौपदी को इँगित करता है।
उक्त पुष्प अत्यंत शुभ माना जाता है एवं कालरात्रि( नवरात्र के सातवें दिवस) पर इसका घर मेँ पूजन, अर्पण एवं रोपण करना विशेष रूप से फलदायी माना गया है। ” कृष्ण-कमल ” पर एक _लघु-गीत_ सादर प्रस्तुत है-

कृष्ण-कमल की महिमा

पाँच पाँखुरी पीत, पाँडव, भटकत बिना सवारी,
पाँचहु गाँव न पावत, कैसी भई विकट लाचारी।

घिरे सहस्र कौरवन ते, लगि कथा बड़ी दुखियारी,
बहिर्चक्र पाँखुरी बतावत, लगत लाज की मारी।

सोहत मध्य भाग अँडाशय, छटा है जिसकी प्यारी,
द्रौपदि सदृश, गुलाबी रँगत, लखत रूप मनहारी।

रनभेरी बजि गई, दिखत है, कौरव सेना भारी,
सौ सुनार की कहा करै, जब सन्मुख चोट लुहारी।

चक्र-सुदर्शन की छवि, लागत पुँकेसर मा न्यारी,
जेहि कै सँग लीलाधर, देखै भला कौन बिधि हारी।

जुद्ध, महाभारत भयो, काँपत, नर अरु नारी,
बँस नसायो कौरवन, जय, जय, जय, गिरधारी।

जब अधर्म कौ ताप बढ़ि, लाँघत सीमा सारी,
होयँ प्रकट तब ईश, धन्य है दाता की बलिहारी।

कृष्ण-कमल ” कै गुन जो गावैं, साधू, सन्त, पुजारी,
भलो करैं सबकौ प्रभु, माँगत “आशादास” भिखारी ..!

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Language: Hindi
Tag: गीत
7 Likes · 11 Comments · 190 Views
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