Sahityapedia
Sign in
Home
Your Posts
QuoteWriter
Account
14 Feb 2025 · 1 min read

कितने बेबस लग रहे, इंसानी किरदार।

कितने बेबस लग रहे, इंसानी किरदार।
जैसे पिंजरे में विहग, उड़ने को लाचार।
चलते- चलते साँझ का, वक्त आ गया पास –
तृषा तृप्ति की बेबसी, अंत हुआ साकार।

सुशील सरना

Loading...