कितने बेबस लग रहे, इंसानी किरदार।

कितने बेबस लग रहे, इंसानी किरदार।
जैसे पिंजरे में विहग, उड़ने को लाचार।
चलते- चलते साँझ का, वक्त आ गया पास –
तृषा तृप्ति की बेबसी, अंत हुआ साकार।
सुशील सरना
कितने बेबस लग रहे, इंसानी किरदार।
जैसे पिंजरे में विहग, उड़ने को लाचार।
चलते- चलते साँझ का, वक्त आ गया पास –
तृषा तृप्ति की बेबसी, अंत हुआ साकार।
सुशील सरना