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10 Jun 2024 · 1 min read

मैं नहीं कहती

मैं नहीं कहती सन्यासी हो जाओ, मैं ये भी नहीं कहती जाकर कहीं धुनी रमाओ
ये भी नहीं कि शमसान में जाकर तुम भी भस्म नहाओ ….मैं ये नहीं कहती

लेकिन ये तो सोचो क्यों जन्म मिला है , ये तो सोचो क्यों मानुष तन मिला है
खाना पीना फिर सो जाना, उदर पूर्ति में ही उलझे रहना
कभी स्वयं से स्वयं को तो मिलाओ ……………..मैं ये नहीं कहती ……..

मात पिता भ्राता गुरु बन्धु भगिनी, प्रेम रस सिंगर अधर रस रसनी
संतान स्वार्थ परिवार तुम्हारा, कहाँ विरक्त करे कथन हमारा
कभी इस मैथुन मिथ्या जग से बाहर तो आओ………. मैं नहीं कहती

कभी करो विचार आत्मिक उन्नति का , कोई मार्ग आध्यामिक प्रगति का
चिन्तन मनन मंथन कर्मों का , ऋण जो तुम पर जीवन धर्मों का
कभी इसे समझो और कभी समझाओ……….. मैं नहीं कहती

साधक मत बनो लेकिन करो साधना, पूजा अर्चन कभी आराधना
कभी तप त्याग राष्ट्र धर्म समाज , कभी साधो साँसों का भी ताज
और अपने जन्म उद्देश्य को पाओ . मैं नहीं कहती

Language: Hindi
1 Like · 85 Views
Books from Dr.Pratibha Prakash
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