Sahityapedia
Sign in
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
28 May 2024 · 6 min read

नर नारायण

नर नारायण–

ब्रह्मांड के दो प्रमुख अवयव है जो
परब्रम्ह परमात्मा कि कल्पना रचना कि वास्तविकता है प्रथम प्रकृति है
जो ब्रह्मांड का आधार है जिसमे पंच तत्व महाभूतों का सत्यार्थ परिलक्षित है जिसका प्रवाह पवन,पावक ,शून्य (आकाश) स्थूल (पृथ्वी) जल प्रावाह का सत्य है इन्ही के आधार पर प्राण का अस्तित्व निर्धारित होता है ।

प्राण को एक निश्चित काया प्राप्त होती है जो उसके करमार्जित परिणाम का श्रेष्ठ पुरस्कार होता है अर्थात नदियां झरना झील पहाड़ पृथ्वी बृक्ष लता गुल्म प्रकृति के प्राणयुक्त निःशब्द स्वर अवयव है तो सृष्टि के करोड़ो जीव प्राण प्राणी कि स्वर शब्द युक्त ।
प्रकृति और प्राण ब्रह्मांड कि अनिवार्यता है और दोनों में ही सामंजस्य संतुलन आवश्यक है जो शांत सृष्टि के प्रवाह विकास के लिए आवश्यक है ।
सृष्टि में करोड़ो प्राणियों में मनुष्य सर्वश्रेष्ठ ईश्वरीय निर्माण है जिसे सोचने समझने अनुभव अनुभूति करने एव कल्पना परिकल्पना के अन्वेषण कि वो समस्त दिव्य शक्तियां प्राप्त है जो स्वंय परमात्मा में निहित है।

मानस में गोस्वामी जी ने बहुत स्प्ष्ट कहा है कि-# ईश्वर अंश जीव अविनाशी #अर्थात प्राणि में निहित प्राण का सुक्षतम स्वरूप ही आत्मा है और आत्मा ही परमात्मा का सत्यार्थ सत्य है ।
कुरुक्षेत्र में भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन से कहा था – #व्यर्थ चिंता मत करो समस्त सम्बन्धो कि श्रोत काया ही है आत्मा तो मैं हूँ जो ना तो किसी से सम्बंधित है ना ही किसी बंधन में बधा है काया में स्थापित होने से पूर्व एव काया छोड़ने के बाद आत्मा जो सत्य है वहीं मैं हूँ ।
माया मोह प्राणि मात्र को भोग भौतिकता विलास के उन्मुक्त आकर्षण के प्रति आकर्षित करता है ठीक उसी प्रकार जिस प्रकार दीपक के लौ के आकर्षण में किट पतंगे जो दीपक के लौ के आकर्षण में दीपक के लौ में ही भस्म हो जाते है उसी प्रकार प्राणि मिथ्या लोभ मोह के प्रपंच में सम्बन्धो के आकर्षण में जुड़ता है और उन्ही सम्बन्धो में दम तोड़ देता है ।
भगवन बुद्ध ने कठिन साधना के मध्य यही अनुभूव किया कि आत्मा ही सत्य है वही परमात्मा का ब्रह्मांड प्रतिनिधि है यही धर्म दर्शन जीवन दर्शन ब्रह्मांड के सभी प्राणियों का यथार्थ है ।

मानव को ही मात्र यह शक्ति प्राप्त है कि वह परमात्मा को भी प्रत्यक्ष कर सकता है जिसके लिए आवश्यकता होती है आचरण कि शुद्धता पवित्रा भावों का परिष्कृत होना एव प्राण कि वेदना जन्म जीवन मरण व्यथा सुख दुःख को समझना #जनमत मरत असह दुख होई# मानस में गोस्वामी जी ने स्प्ष्ट किया है कि प्राण को निश्चित काया को जन्म लेते समय एव काया छोड़ते समय भयंकर वेदना कि अनुभूति होती है जिसे वह व्यक्त करने कि स्थिति में ही नही होता जीवन मे वेदना सुख दुख कि अनुभूतियों को व्यक्त कर सकता है त्रुटियों को सुधार कर सकता है।
मनाव चैतन्य एव जागृत अवस्था मे ब्रम्ह सत्य के अन्वेषण कि साथना करे जो मात्र करुणा क्षमा सेवा विनम्रता एव आचरण कि पवित्रता से ही सम्भव है ।

जब काम ,क्रोध ,मोह ,लोभ से मुक्ति मिल जाती है और काया में स्थित प्राण में अवस्थित आत्मा अपने सत्य स्वरूप में आचरण करता जन्म जीवन मे व्यवहारिकता में नए अध्याय आयाम का सृजन करता है ऐसा मनुष्य का ना तो किसी को देखता है ना सुनता है ना ही विचलित होता है वह तो जन्म जीवन के सत्य उद्देश्य पथ पर आकर्षण कि बाधाओं को विजित करता आगे बढ़ता जाता है ।

उदाहण के लिए क्रिकेट का खेल को ही ले लीजिए दो टीमें कहे या सेनाएं अपने विजय उद्देश्य के लिए मैदान में उतरती है मैदान में चाहे बैटिंग करने वाला खिलाड़ी योद्धा हो या फील्डिंग करने वाला उसे कुछ भी नही दिखाई देता सिर्फ इसके अलावा कि अच्छी बैटिंग करना है सर्वोत्तम फील्डिंग करनी है विजय उद्देश्य के लिए जो जीवन के कुरुक्षेत्र में उद्देश्यो के मैदान की युद्ध भूमी या पिच पर उतरता है वही प्रथम श्रेणी का मानव होता है।

दर्शकों को जो बैठकर मात्र ताली बजाते हुए आनन्दित होते है ताली बजाने वाले का जन्म और जीवन सिर्फ दूसरों कि उपलधियों पर ताली बजाना ही रहता है निरुद्देश्य खेल रही किसी टीम से भावनात्मक सम्बंध कि खातिर प्राप्त समय शक्ति का प्रयोग सिर्फ टीमो के उत्साह वर्धन के लिये करता है स्वंय का उत्साह भी सिर्फ ताली बजाने तक ही सीमित रहता है इस प्रकार के मानव तीसरे श्रेणी में आते है जो सिर्फ फैन या प्रसंशक बन कर रह जाते है स्वंय में निहित ईश्वरीय तत्वों को ना तो खोज पाते है ना ही उसे उत्कर्ष तक पहुंचा पाते है ।

मैदान में चल रहे क्रिकेट खेल का आंखों देखा हाल सुनाने वाला कमेंट्रेटर एव इतिहास लिखने वाला कब किसने शतक बनाया कब किसने सर्वोत्तम पाली खेली जैसे संजय द्वारा धृतराष्ट्र को महाभारत के महायुद्ध का आंखों देखा हाल सुनाया गया इस प्रकार के मानव जो दूसरों कि उपलब्धियों को आने वाली पीढ़ी के लिए प्रेरक प्रेरणा के रूप में प्रस्तुत करते है द्वितीय श्रेणी में आते है कम से कम जो कार्य वे स्वंय अपने जीवन मे नही कर सके आने वाली पीढ़ियों को करने को प्रेरित करने हेतु अवधारणा आधार प्रस्तुत करते है।

प्रश्न यह उठता है कि क्या जन्म जीवन सिर्फ किसी के विशिष्ट कार्यो के लिये उसके उत्साह वर्धन के लिये ताली बजाते रहना है या पीढ़ियों कि प्रेरणा के लिए प्रमाण अभिलेख निर्माण करना दोनों ही जीवन के सत्य मार्ग नही है ।

जन्म जीवन की सकारात्मकता सार्थकता स्वंय जीवन के कुरुक्षेत्र में महारथी के रूप में पूरी क्षमता दक्षता शक्ति साहस आत्मविश्वास के साथ उतरना है।

जीवन के किसी भी क्षेत्र में क्रिकेट जैसी सम्भावना है जहां दर्शक कमेंट्रेटर होते है लेकिन जब कोई योद्धा सिपाही सीमाओं पर लड़ रहा होता है तो उसे देखने वाला उत्साह वर्धन करने वाला कोई नही होता है होता है वह स्वंय उसका विवेक निःशब्द शस्त्र लेकिन ही साथ होते है जब वह युद्ध जीतकर विजेता बन जाता है या वीर गति को प्राप्त हो जाता है तब उत्साह वर्धक पीढ़ियों के लिए प्रेरणास्रोत के रूप में प्रस्तुत करने वाले सभी होते है ।

यही सत्य साधरण मानव का है जब वह अपने जीवन मे सत्य उद्देश्यों के लिए पीड़ाओं को क्षेलता हुआ संघर्ष करता है तब उसे कोई उत्साहित करने वाला नही होता साथ सिर्फ आत्मीय आभा का तेज ईश्वरीय अंश आत्मा होती है एव जन्म देने वाले माता पिता जब वह अपने उद्देश्यों के पथ पर शिखर पर होता है तब सम्पूर्ण संसार उसे देखता है उसके अतीत के आचरण संघर्षों को जानना चाहता है और आत्मसाथ करना चाहता है तो भटकना क्यो ? दृढ़तापूर्वक अपने उद्देश्य पथ पर पूरी क्षमता दक्षता के साथ निर्विकार, निर्मल, स्वच्छ मन कि गति के अविरल ,निश्चल, प्रवाह में पल प्रहर के साथ बढ़ना ही जन्म जीवन की सार्थकता है हां जन्म जीवन का उद्देश्य रोटी दाल सुख भोग नही होना चाहिए उद्देश्य जन्म जीवन की वास्तविकता होनी चाहिए जिसके लिए ना रोटी कि आवश्यकता है ना ही भोग सुख कि क्योकि इनको जब आप छोड़ते जाएंगे तभी जीवन जन्म कि सार्थकता कि अनुभूति होगी।

महावीर जिन्होंने सभी सुख सुविधएं प्राप्त थी जिसका उन्होंने त्याग किया और आत्मीय सत्य ईश्वरीय अंश को आत्मसाथ प्रत्यक्ष किया तब लोंगो ने समय समाज प्राणियो ने भगवान महावीर के रूप में जाना।

सिद्धार्थ जो राज्य का राजकुमार थे जिन्हें सामान्य राजा के रूप में रोकने के लिए उनके पिता ने सारे प्रयास किए लेकिन जब उन्होंने समस्त बैभव सुख का त्याग कर दिया तो राजकुमार सिद्धार्थ से भगवान बुद्ध हुए आज विश्व के विज्ञान वैज्ञानिक रूप से विकसित समाज राष्ट्र भी उन्हें परमात्मा ईश्वर स्वीकार कर अभिमानित होता है।

प्रश्न यह उठता है कि क्या सभी मनुष्य सिद्धार्थ या बुद्ध हो सकते है असम्भव कुछ भी नही है सम्भव तभी है जब सत्य भगवान की संयुक्तता के सम्भव को समझे और जाने अन्वेषित करे तभी वैचारिक ऊर्जा का प्रस्फुटन होगा और स्व की पहचान के मार्ग का अंधकार समाप्त होगा एवं अन्तरात्मा में चेतना के साथ दिव्य प्रकाश प्रवर्तन के आत्मीय बोध के सत्य का साक्षात्कार होगा और आत्मीय अंतर निहित ईश्वरीय गुणों कलाओं के जागृति का मार्ग प्रशस्त होगा जो शाश्वत प्रवाह के पुरुषार्थ पराक्रम को जीवंत करेगा और जीवन के कुरुक्षेत्र के अर्जुन नर कि वास्तविकता का जन्म जीवन सत्यार्थ होगा नारायण प्रत्यक्ष मार्गदर्शन करेगा।।

नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उत्तर प्रदेश।।

Language: Hindi
Tag: लेख
113 Views
Books from नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
View all

You may also like these posts

You Are The Sanctuary Of My Soul.
You Are The Sanctuary Of My Soul.
Manisha Manjari
मदहोशी के इन अड्डो को आज जलाने निकला हूं
मदहोशी के इन अड्डो को आज जलाने निकला हूं
डॉ. दीपक बवेजा
"मिजाज"
Dr. Kishan tandon kranti
फ़ुर्सत में अगर दिल ही जला देते तो शायद
फ़ुर्सत में अगर दिल ही जला देते तो शायद
Aadarsh Dubey
इतना मत इठलाया कर इस जवानी पर
इतना मत इठलाया कर इस जवानी पर
Keshav kishor Kumar
तुझे स्पर्श न कर पाई
तुझे स्पर्श न कर पाई
Dr fauzia Naseem shad
इस ज़माने में, ऐसे भी लोग हमने देखे हैं।
इस ज़माने में, ऐसे भी लोग हमने देखे हैं।
श्याम सांवरा
#रे मन तेरी मेरी प्रीत
#रे मन तेरी मेरी प्रीत
वेदप्रकाश लाम्बा लाम्बा जी
वो एक रात 10
वो एक रात 10
सोनू हंस
एक तरफ़ा मोहब्बत
एक तरफ़ा मोहब्बत
Madhuyanka Raj
एक पीर उठी थी मन में, फिर भी मैं चीख ना पाया ।
एक पीर उठी थी मन में, फिर भी मैं चीख ना पाया ।
आचार्य वृन्दान्त
BJ88
BJ88
BJ88
ये मौन है तेरा या दस्तक है तुफान से पहले का
ये मौन है तेरा या दस्तक है तुफान से पहले का
©️ दामिनी नारायण सिंह
हवा भी कसमें खा–खा कर जफ़ायें कर ही जाती है....!
हवा भी कसमें खा–खा कर जफ़ायें कर ही जाती है....!
singh kunwar sarvendra vikram
*दोहा*
*दोहा*
*प्रणय*
दिन गुजर जाता है ये रात ठहर जाती है
दिन गुजर जाता है ये रात ठहर जाती है
VINOD CHAUHAN
2710.*पूर्णिका*
2710.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
मुंगेरीलाल के सपने...
मुंगेरीलाल के सपने...
आकाश महेशपुरी
लाल और उतरा हुआ आधा मुंह लेकर आए है ,( करवा चौथ विशेष )
लाल और उतरा हुआ आधा मुंह लेकर आए है ,( करवा चौथ विशेष )
ओनिका सेतिया 'अनु '
*भारत माता की महिमा को, जी-भर गाते मोदी जी (हिंदी गजल)*
*भारत माता की महिमा को, जी-भर गाते मोदी जी (हिंदी गजल)*
Ravi Prakash
मुँह में राम बगल में छुरी।
मुँह में राम बगल में छुरी।
Vishnu Prasad 'panchotiya'
"" *भारत* ""
सुनीलानंद महंत
शीर्षक: बाबुल का आंगन
शीर्षक: बाबुल का आंगन
Harminder Kaur
తేదీ
తేదీ
Otteri Selvakumar
बिना आमन्त्रण के
बिना आमन्त्रण के
gurudeenverma198
सियाचिनी सैनिक
सियाचिनी सैनिक
Jeewan Singh 'जीवनसवारो'
गर्म साँसें,जल रहा मन / (गर्मी का नवगीत)
गर्म साँसें,जल रहा मन / (गर्मी का नवगीत)
ईश्वर दयाल गोस्वामी
देखिए मायका चाहे अमीर हो या गरीब
देखिए मायका चाहे अमीर हो या गरीब
शेखर सिंह
सत्संग
सत्संग
पूर्वार्थ
तुम आए कि नहीं आए
तुम आए कि नहीं आए
Ghanshyam Poddar
Loading...