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15 May 2024 · 1 min read

आदमी और जीवन

कभी कभी मन कुलाचे भरता है
इस कद्र की आसमान छू लेगा।
दूसरे छन्न गिरता है धड़ाम से यूं
जमी भी कराह उठती है एक बार।

ये जमीन आसमान की दूरी पल।पल
रुलाती है आदमी को।
जो कभी चट्टान की तरह अडिग था
धीरे धीरे टूटकर बिखर जाता है एक दिन।।

शायद दूसरों को खुश करने के चक्कर में।
भूल जाता है खुद के शौक
पूरा जीवन दाव पर लगा देता है
कि लोग क्या कहेंगे?

अंत में रह जाता है बस
हांड मांस का पुतला।
जो अब विलीन होना चाहता है
बस खुद के वजूद में।।

जहां सिर्फ जिंदगी को जीया जाता है।
खुद के आदर्शो से,उसूलों से।
जहां दिखावे की कोई कीमत नहीं होती।
सिर्फ होता है आदमी और उसका जीवन।

Language: Hindi
80 Views

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