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3 Mar 2023 · 2 min read

होली में पर्यावरण नहीं, बुराइयां जलाएं

त्योहार हमारी सांस्कृतिक पहचान और सामूहिक आनंद का प्रतीक होते हैं, लेकिन जब इन उत्सवों का तरीका प्रकृति के लिए संकट बन जाए तो पुनर्विचार की आवश्यकता होती है। हर साल होलिका दहन के दौरान लाखों पेड़ काटे जाते हैं। इससे न केवल वायु प्रदूषण बढ़ता है बल्कि पारिस्थितिकी तंत्र पर भी गहरा असर पड़ता है।

धुआं बनती हरियाली
एक अनुमान के मुताबिक, भारत में हर साल होली के मौके पर लाखों टन लकड़ी जलती है, जिससे कार्बन डाइऑक्साइड, मोनोऑक्साइड और अन्य हानिकारक गैसें वायुमंडल में घुल जाती हैं। यह न केवल वायु गुणवत्ता को प्रभावित करता है, बल्कि जलवायु परिवर्तन को भी बढ़ावा देता है। उत्तर भारत में मकर संक्रांति से पहले लोहड़ी, दक्षिण में पोंगल और फिर होलिका दहन जैसी परंपराओं में बड़े पैमाने पर लकड़ी जलाने की परंपरा है। तर्क दिया जाता है कि इससे ठंड कम होती है, लेकिन वैज्ञानिक दृष्टिकोण से यह प्राकृतिक संसाधनों का अंधाधुंध दोहन ही है।

परंपराएं बदली जा सकती हैं
धार्मिक ग्रंथों में अग्नि को पवित्र और ऊर्जा का स्रोत माना गया है, लेकिन क्या पर्यावरणीय नुकसान के साथ इसे जोड़ा जाना उचित है? त्योहारों का मकसद खुशियां बांटना है, न कि संसाधनों को नष्ट करना। समय की मांग है कि हम अपनी परंपराओं में बदलाव लाकर इन्हें अधिक पर्यावरण-संगत बनाएं।

उपलों से होलिका दहन, एक व्यवहारिक समाधान

कई पर्यावरणविदों का सुझाव है कि लकड़ी की जगह गाय के गोबर से बने उपलों का उपयोग किया जाए। इससे न केवल पेड़ों की कटाई रुकेगी, बल्कि पारंपरिक भारतीय कृषि को भी बढ़ावा मिलेगा। इसके अलावा, सूखे पत्ते और जैविक कचरे से भी होली जलाने का विकल्प अपनाया जा सकता है, जिससे कूड़ा-कचरा भी कम होगा।

गांधी जी से प्रेरणा लें
31 जुलाई 1931 को महात्मा गांधी ने मुंबई में विदेशी कपड़ों की होली जलाई थी। उस समय भारतीय कपड़ा उद्योग संकट में था, और गांधी जी का यह कदम आर्थिक स्वावलंबन की दिशा में एक बड़ा संदेश था। आज हमें उसी विचार को अपनाकर ऐसी चीजों की होली जलानी चाहिए, जो वास्तव में समाज के लिए हानिकारक हैं—जैसे भ्रष्टाचार, नफरत, और अज्ञानता।

आइए, एक नई परंपरा शुरू करें
आज जरूरत इस बात की है कि हम नकारात्मक विचारों, सामाजिक कुरीतियों और पर्यावरण-विरोधी व्यवहारों की होली जलाएं। त्योहार तभी सार्थक होंगे, जब वे प्रकृति के साथ सामंजस्य बनाए रखें। क्या इस बार हम एक ऐसी होली नहीं मना सकते, जो सच में बुराइयों का अंत करे, न कि हमारी धरती की हरियाली का?

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