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14 May 2024 · 1 min read

कुली

कुली
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चलते चलते, जीवन की राहों में,

कभी थक कर बैठ जाता है,

ले कर आँखों में आंसू ।

कांधे दुनियाँ का बोझ है भारी,

मन में जीने की चिंगारी,

बन जाता है कभी दिया ,

कभी अंधेरे में डूब जाता।

गर्दन, झुक जाती है बोझा ढोते-ढोते लेकिन,समझ नहीं ये आता,

क्यों दिया प्रभु ने पेट, इतनी बड़ी लाचारी?

नित नये सपने ले कर जगता,

फिर कटती आँखों में रात,

फिर भी चाहत दिल कि, हरदम एक चाहत ही रहती।
* मुक्ता रश्मि *

एक कुली की व्यथा, गहरी है और भारी,

पर उसकी मेहनत और संघर्ष, दुनिया को भी प्यारी।

स्वरचित

*मुक्ता रश्मि

Language: Hindi
113 Views
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