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9 May 2024 · 1 min read

देखा है

सच्चाई ही जीता करती
सबसे झूठी बात यही
मैंने सच्चाई को अक्सर
अश्क बहाते देखा है….

छल प्रपंच पाखंडों को
देखा है मैंने इठलाते
भोली-सी ज़ज्बातों को
प्रायः झुंझलाते देखा है…!

भैंस उसी की जिसकी लाठी
शत-प्रतिशत है बात सही
मज़बूरी-कमज़ोरी को तो
हरदम लुटते देखा है…!

साजिश के इस मकड़ जाल में
मासूमियत फंसा करती
ईमानों-इंसाफ़ों को
मैंने बिक जाते देखा है…!

© अभिषेक पाण्डेय अभि

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