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4 May 2024 · 1 min read

दरकती ज़मीं

दरकती जमीं कहें यह पुकार
बहुत हो गया बख्स दो मेरे प्रान
अभी अतिक्रमण और कितना करोगे
मुझे त्राण देकर गरल को भरोगे
करो अब ना छलनी, न देना नकार !!

विकास के नाम पर खोल दी राहें।
चीर पर्वत की छाती काट दी है बांहें।।
सूखती झीलें,झरने,नदियों की बहार,
उजाड़े वृक्ष,वन सम्पदा की कतार !
दरकती जमीं कहें यह पुकार !!

काटकर जंगलों को खड़े कर महल।
कंक्रीटो के पर्वत आग रहें हैं उगल।
बढ़ा शोर, प्रदूषण भट्टियों का दखल
सूखते जाये स्रोत, प्यासी धरा में दरार!
दरकती जमीं कहें यह पुकार!!

विकास के नाम पर अतिक्रमण जो किया।
आग उगलता गगन असंतुलन हो गया।।
वन, उपवन,वनस्पतियां मुरझाने लगी,
कहीं बाढ़ ,सूखा,तूफानों की मार!
दरकती जमीं कहें यह पुकार!!

संभल जाओ प्यारे अभी वक्त है।
सूखे हरियाली खड़े ठूंठ, दरख्त है।
प्रकृति को सहेज,करो जल संचयन,
लगाओ जंगल,हरित संपदा की बहार !
दरकती जमीं कहें यह पुकार !!

Language: Hindi
105 Views

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