Life is trapped in the hold of time, but there are some mome
कविता ही तो परंम सत्य से, रूबरू हमें कराती है
सोभा मरूधर री
जितेन्द्र गहलोत धुम्बड़िया
ज़िन्दगी थोड़ी भी है और ज्यादा भी ,,
खुद के साथ ....खुशी से रहना......
उदास आंखों का नूर ( पिता की तलाश में प्रतीक्षा रत पुत्री )
*सुबह-सुबह अच्छा लगता है, रोजाना अखबार (गीत)*
जब हम सोचते हैं कि हमने कुछ सार्थक किया है तो हमें खुद पर गर