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17 Apr 2024 · 1 min read

सब दिन होते नहीं समान

इतनी सी है बस एक ख्वाहिश ,
कुछ पल मिल जाए सुकून भरे।
बहुत हो चुकी है यह दौड़ धूप,
मन है अशांत , चिंता को धरे ।।

सुबह की लालिमा दिखती नहीं,
ढलती शाम देखने को तरसते।
सब तरफ भीड़ की कोलाहल है,
कुछ पल चुराने दिनभर निहारते।।

खुश होकर अपने काम को करें,
मन को हर पल यही समझाते है ।
सब दिन होते नहीं है एक समान,
यहीं सोच सोच मन को बहलाते है।।

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