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17 Feb 2024 · 1 min read

कैसे गाएँ गीत मल्हार

सुन्दर मन, सुन्दर तन है
सुन्दर है इसका रचनाकार।
अहंकार, अभिमान का रंग चढ़ा क्यों?
जो बिलखती धरा, विचलित होता संसार।
अब बदल चुका मानव का व्यवहार
अब, कैसे गाएँ गीत मल्हार ।।

दया-धर्म विलुप्त हो रहें
विलुप्त हो रहा है प्यार।
मुख के सामने राम-राम है
पीठ पीछे करे तीखा प्रहार
अब बढ़ रहा है अत्याचार
अब, कैसे गाएँ गीत मल्हार।।

पाप-पुण्य रहा ज्ञात नही
भूल रहा अपना परिवार।
भूल रहा मानव आज उन्हे भी
जिनसे है अस्तित्व व आधार।
जब जन्मदाता हो जाएं लाचार
तब, कैसे गाएँ गीत मल्हार।।

बात-बात में स्वार्थ छिपा है
भावना बदले की है अपार।
अपनो से ही हो रही इर्ष्या
अपनो पर ही हो रहा वार।
जब हो नही रहा गहन विचार
तब, कैसे गाएँ गीत मल्हार।।

मौलिक, स्वरचित एवं अप्रकाशित रचना

✍संजय कुमार ‘संजू ‘
शिमला हिमाचल प्रदेश

Language: Hindi
148 Views
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