कुछ अल्फाज ❤️
बहते पानी पर लिखी कोई गीत हो तुम,
सदियों से चली आती रघुकुल सी रीत हो तुम।
मैं धुन हूं सितार की और संगीत हो तुम,
शब्दों में जो कह नहीं सकता वो प्रीत हो तुम।।
ये ओझल सर्द का मौसम, ये कांपती लौ।
याद दिलाती है,
वो रातें जो बातों में गुजारी थी हमने।।
ऐतबार करो मेरा, महबूब बना जाओ मेरी।
मैं नाव बनता हूं, पतवार बन जाओ मेरी।।
वो रहे पास मेरे, तो उलझता नहीं मैं।
कभी उदास नहीं होता वो करीब हो अगर।।
त्योहार भी खास नहीं होते बग़ैर उसके।
हर दिन खास हो जाता है साथ मां हो अगर।।
यूं आंसुओं को घूंट, फुटपाथों पे सोता नहीं मैं।
ये सर मां की गोद में होता, तो शायद रोता नहीं मैं।।
~ विवेक शाश्वत..