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12 Apr 2024 · 1 min read

वक्त की रेत

ना यह कभी टिक सकती
ना कभी रुक सकती
पल पल हर पल
फिसलती हुई वक्त की रेत,
बस आगे बढ़ जा
तू उसकी नब्ज देख।

वक्त की रेत तो
हाथों से यूँ ही फिसल जाती,
समझ आए जब तलक
पूरी जिन्दगी निकल जाती।

मेरी 46 वीं प्रकाशित काव्य-कृति :
‘वक्त की रेत’ से…
ये शीर्षक रचना की चन्द पंक्तियाँ हैं।

डॉ. किशन टण्डन क्रान्ति
साहित्य वाचस्पति
टैलेंट आइकॉन – 2022-23
हरफनमौला साहित्य लेखक।

Language: Hindi
3 Likes · 3 Comments · 122 Views
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