एक संगठन, ध्वजा भगवा धारी,

एक संगठन, ध्वजा भगवा धारी,
राष्ट्र प्रथम का मंत्र उच्चारी।
अनुशासन की नींव सुदृढ़ डाली,
चरित्र निर्माण की राह निकाली।
शाखाओं में सीखा हमने चलना,
एक साथ मिलकर आगे बढ़ना।
देश की मिट्टी से प्यार सिखाया,
संस्कृति का गौरव मन में छाया।
विपदाओं में बनकर सहायक,
सेवा का भाव दिखाया लायक।
कभी बाढ़ में, कभी सूखे में,
बढ़ाते हाथ दुखी के दुख में।
हिंदुत्व की पहचान कराई,
अपनी जड़ों से प्रीत लगाई।
विविधता में एकता का गान,
भारत माँ का ऊंचा मान।
विचारों का मंथन चलता रहता,
परिवर्तन की दिशा में बहता।
कुछ सहमत, कुछ असहमत हों,
पर राष्ट्रहित का संकल्प गहन हो।
यह कविता एक दृष्टिकोण मात्र है,
संघ के कार्यों का संक्षिप्त गात्र है।
विभिन्न मतों का सम्मान करते हुए,
इतिहास के पन्नों पर दृष्टि धरते हुए।
कवि
आलोक पांडेय
गरोठ, मंदसौर, मध्यप्रदेश।