चलो कुछ कहे
चलो कुछ कहें, नदी बन कर बहे।
बातें दुनिया की , क्यूं आखिर सहे।
पंख खोल तू ,हर शिकवा बोल तू
परवाज़ का मगर जाने न मोल तू।
अच्छा हो हमसफ़र,करें तेरी कद्र
साथ सुहाना हो तेरा,लगे न नज़र।
सुरिंदर कौर
चलो कुछ कहें, नदी बन कर बहे।
बातें दुनिया की , क्यूं आखिर सहे।
पंख खोल तू ,हर शिकवा बोल तू
परवाज़ का मगर जाने न मोल तू।
अच्छा हो हमसफ़र,करें तेरी कद्र
साथ सुहाना हो तेरा,लगे न नज़र।
सुरिंदर कौर