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25 Jan 2024 · 1 min read

ना जाने क्यों…?

ना जाने क्यूं…?

मन खोया सा जा रहा,
आंखों के आगे अंधेरा छा रहा,
कर रहा कोशिश बहुत,
पर मैं होश खोता जा रहा…।

मन मेरा चंचल सा होकर,
रुक सा ना रहा,
ध्यान लगना तो दूर बहुत,
हर काम में यूं ही लड़खड़ा रहा।

मन मेरा न जाने क्यूं,
बेवजह घबरा रहा,
सोचा था संभाल लूंगा खुद को,
पर अब हौसला डगमगा रहा।

ये तो भगवान का सहारा है,
जो अपनी नैया चला रहा,
सच तो यही है,
वो ही मुझे पार करवा रहा…!

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