हमारी चुप्पी
हम अमानतुल्ला खां जैसों को, जवाब नहीं दे पाते हैं।
हम धड़ से अलग सर करने का, फरमान नहीं दे पाते हैं।।
हम अपनों की रक्षा की खातिर, एकजुट नहीं हो पाते हैं।
हम बिल्कुल भी इनका विरोध, कभी नहीं कर पाते हैं।।
हम कायर हैं या सहनशील, यह पता नहीं कर पाते हैं।
हम संपूर्ण आर्यव्रत के खंडो को, एकत्र नहीं कर पाते हैं।।
हम अपनों की रक्षा की खातिर, खड़े नहीं हो पाते हैं।
हम शक्ति का अपनी औरों को, परिचय नहीं दे पाते हैं।।
हम सहनशीलता की सीमाओं को, पार किये क्यों जाते हैं।
हम मन ही मन हुंकार भर पर, दिखा नहीं क्यों पाते हैं।।
हम सत्य सनातन की खातिर, खड़े नहीं हो पाते हैं।
हम कटते आए बटते आए, पर एकजुट ना हो पाते हैं।।
बटने का आलम तो देखो, शिवसेना भी जा बैठी हैं।
वह गांधी जी के बंदर जैसे, तीनों गुण ले बैठी हैं।।
जो जीते थे और मरते थे, हिंदुत्व विजय ही करते थे।
वे जीते हैं और मरते हैं, पर हिंदुत्व भुला वो बैठे हैं।।
हे वीरों उठो तोड़ो अब बंधन, जाति और प्रदेशों के।
है आर्यावर्त संपूर्ण तुम्हारा, जो बटा हुआ हैं देशो में।।
वे खुलेआम चर्चा करते और हम चर्चा से कतराते हैं।
हम खुलकर सांस नहीं लेते, हम घुट-घुट के मर जाते हैं।।
वे शेर बने फिरते हैं जैसे, भारत उनके बाप का हो।
हम भाईचारा बनाए फिर, जैसे रहने वाले उस पार के हो।।
ललकार कहें ललकार के बोलों, भारतवर्ष हमारा हैं।
अब अस्मिता पर उठीं जो उँगली, तो आया काल तुम्हारा हैं।।
ललकार भारद्वाज