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23 Feb 2024 · 1 min read

बदरी..!

बदरी..!
तुम वही तो हो
जो कल भी आई थीं
मिटा दिया था तुमने
खुद को प्रेम में..
उफ़न पड़ी थीं नदियाँ
बह गये थे टापू/ शहर
एक कपास से जलते
जिया को तुमने दे दिया
था पल भर को सुकून
बदले में…
हाँ, हाँ बदले में
रह गई थी एक कामना
फिर आना, फिर बरसना।
जीवन यही तो है..
कोई बरसे
हम भीगें…
एक बूंद सी मात्रा
एक बूँद सी यात्रा..!!
एक बूंद सी प्यास
एक बूँद सी आस..!!
सूर्यकांत

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