बातों बातों में!
खूब हुई बातें,
संसद में,
संविधान के विषय पर,
पर चर्चा में था,
आरोप एक दूसरे पर,
नेहरु पटेल भी थे,
बहस के मुद्दे,
खोदे गये हैं,
गडे गये मुर्दे,
भीम राव अम्बेडकर को भी,
अपने अपने खेमें मे ढालकर,
उनके अनुयाई होने का भ्रम भरकर,
संविधान को लागू करने पर,
एक दूसरे को नीचा दिखाने के,
थे नजारे अपनी संसद पर!
इधर,
किसान सडक पर घिसट रहा,
अपनी फरि यादों पर है अडा हुआ,
सरकारी अमले को इससे है क्या,
उसे यूं ही रहने दो पडा हुआ,
वह कर भी क्या है सकता,
मौसम की मार से लेकर,
सरकार की उपेक्षा तक,
तकता ही है रहता,
और अपनी नियति पर,
है आहें भरता रहता!
नौजवान नौकरी की चाह में लुटा पिटा,
धरने प्रदर्शन पर डटा हुआ,
पेपर लीक से पेपर कराने तक,
समयबद्ध इसके हल होने तक,
अपनी जवानी की होली भेंट चढा रहा,
और शासन प्रशासन उसको मुह चिढा रहा!
मजदूर लगा हुआ है ,
अपनी धियाडी में,
दो जून की रोजी रोटी पाने में,
उसे कहाँ इतनी फुर्सत है,
इन सब झमेलों को समझने की,
उसे तो हर दिन काम मिल जाए,
यही तो उसकी हसरत बाकी रह गयी!
मां बेटी को भी तो,
इसकी चिंता है कहाँ,
उसका तो सुरक्षित रहे जहाँ,
उसकी आबरु बची रहे,
घर आंगन की शांति बनी रहे,
बच्चे सुरक्षित घर आ जाएं,
इतने से ही वह ईश्वर को मनाएं,
घर के मुखिया स कुशल लौट आएं,
बस इतनी सी उनकी मिन्नतें रह गई हैं !
आप,
संसद में दहाडो,
या सडको पर चिल्लाओ,
संविधान पर लड़ते रहो,
या कुर्सी के लिए झगडते रहो,
हमें क्या करना है,
तुम अपनी चलाओ,
पर हमारी दुनियादारी ,
को तो बख्स जाओ!
खूब हुई संसद में चर्चा,
कितना हुआ इस पर खर्चा,
कभी आ पाऐगा इसका पर्चा,
क्या जाने, कोई जान पायेगा,
हमसे तो पाई पाई का हिसाब लिया जायेगा!!
बस यूंही, चलते चलते,
दिमाग में आई भावनाओं को,
अपनी भावुकता में,
व्यक्त करने का भाव प्रकट हुआ,
और जिसे बातों बातों में,
अपने भाव अभिव्यक्त कर रहा!!