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19 Feb 2024 · 1 min read

दिसम्बर की ठंड़

ओढ़ाया तुमने हमदर्दी का कम्बल
सौहार्दपूर्ण गर्माहट के संग
बाहर हो तो हो
दिसम्बर की ठंड़

मूंगफली सी चटकती बातों ने
तिल तिल ख्वाहिशें उघाड़ी
जिसमें घोल दिए फिर
गुड़ जैसे संबंध
बाहर हो तो हो
दिसम्बर की ठंड़

कुहराते ख्यालों को
आशाओं ने भेदा
लगाव के अलाव ने दिखाए
आत्मीयता के ढंग
बाहर हो तो हो
दिसम्बर की ठंड़

बर्फ सी पड़ती शंकाओं पर
चमकी आश्वासनों की धूप
खिलते बागों में ले आए
दुनियादारी के रंग
बाहर हो तो हो
दिसम्बर की ठंड़

तितलियों सी बेपरवाह ज़िदगी
उड़ती गई फूल फूल
ठौर वहाँ जहाँ थकते पंख
या ठहराता मकरंद
बाहर हो तो हो
दिसम्बर की ठंड़

Language: Hindi
3 Likes · 170 Views
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