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20 Feb 2024 · 1 min read

*पलटूराम*

यह बात हो गई है आम, पलट रहे हैं पलटूराम।
अपना सिक्का खुद ही खोटा, बेपेंदी के बने हैं लोटा।
अपनों से विमुख होकर, गैरों के पियें चरण धोकर।
पहले अपनी पहुंँच बढ़ाएं, अपने समाज भाड़ में जाएं।
चापलूस बन करे वंदना और समय से पैर दबाएं।
जो पद छोड़ा वहीं पद पाएं, इसके लिए वह लुढ़क जाएं।
मन चाहे जिसके हो जाते, दुनिया में थू-थू करवाते।
गुलामी के लिए होड़ लगाते, जैसे मैं हूंँ बड़ा गुलाम।
यह बात हो गई है आम, पलट रहे हैं पलटूराम।।१।।
ऐसे इनके हो गए काम,खुद बदनाम समाज बदनाम।
ऐसा देखते ही हैं ये मौका, चौंका देते देकर धोखा।
अपनों को ही खुद डांटें, आकाओ की थाली चाटें।
खोखले थे इनके इरादे, झूठे निकले सारे वादे।
गुलामी के ये बन गए आदि, करते अपनी खुद बर्बादी।
आगे पीछे कुछ ना सोचें, अपनों के ही मुंँह को नोचें।
इज्जत जमीर गिरवी रखकर, खुद को किया नीलाम।
यह बात हो गई है आम, पलट रहे हैं पलटूराम।।२।।
इनसे दूर खुद हो जाओ, इनको कभी न मुंँह लगाओ।
बॉयकॉट करो धक्के मारो, चौराहे पर जूते मारो।
चप्पलों की माला बनाओ, सरेआम इनके गले सजाओ।
निष्कासित करो समाज से इनको, पीछे मारो लात।
याद रहेगी इनको हमेशा, दुष्यन्त कुमार की बात ।
करो बेइज्जती भरी सभा में, संगठित रहकर काम करो।
मारो ऐसी चोट वोट की, गिर जाएं ये धड़ाम।
यह बात हो गई है आम पलट रहे हैं पलटूराम।।३।।

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