ग़ज़ल _ यादों में बस गया है।
ग़ज़ल
दिनांक _ 06/01/2025,,,
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1,,
यादों में बस गया है , चेहरा हुजूर का भी ,
इक काफ़िला मिला था,मुझको तो नूर का भी।
2,,
दुनिया से दूर हो के ,खोये थे किस जहाँ में ,
क़िस्मत जता रही थी , एहसान हूर का भी ।
3,,
खुर्शीद कह रहा था चाहत में जज़्ब होकर ,
दीवानगी में हिस्सा रहता सुरूर का भी ।
4,,
शुहरत को पा गया वो, नम हो के जो चला है,
मिट्टी में मिल गया है , धागा ग़ुरूर का भी ।
5,,
अल्लाह से जहाँ पर , मूसा कलाम करते ,
हर शख़्स जानता है ,पर्वत वो तूर का भी ।
6,,
देता सुकून , आने वालों को बारहा जो ,
महफ़िल में ख़ास होता ,दर्जा बुख़ूर का भी ।
7,,
सुनती ग़ज़ल सभी की ,महफ़िल में “नील”आकर,
मिलता क़रार सबको , उल्फ़त , ख़ुमूर का भी ।
✍️नील रूहानी,,, 06/01/2025,,,,,,,,,,,🥰
( नीलोफर खान)