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21 May 2024 · 1 min read

एक अधूरी दास्तां

कितनी बातों की ख़ामोशी,
उन्हें बतानी थी,
हर एक अक्स की कहानी
उन्हें बतानी थी।
सुबह की इबादत और,
शाम की अज़ान भी
उन्हें बतानी थी।
शौक चढ़े थे परवान हमारे,
ये बात भी उन्हें बतानी थी,
ख़्यालो के समुंदर में मिलकर,
डुबकियाँ जो लगानी थी।
मालूम गर हो तो छुट्टियों
के अहसास वाली
बात भी उन्हें बतानी थी।
कब वक़्त बीता उस पत्र
में लिखते गए हम यारो,
ढलते दिनों में हम
एकांत को सिमटते गए।
बंजर कहानी को उपजाऊ
करते रहे…
शिकायत उनकी थी फिर
इस कदर की पत्र लिख कर भी,
दास्ताँ अपनी अधूरी बुनते रहे।

Language: Hindi
244 Views
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