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14 Feb 2024 · 1 min read

चल पनघट की ओर सखी।

चल पनघट की ओर सखी।

जाग, हुआ अब भोर सखी
चल पनघट की ओर सखी।

बार -बार मन श्याम पुकारे
उसकी ही छवि नित्य निहारे
रात जगे, जागे भिनसारे।

वह नटखट चितचोर सखी
चल पनघट की ओर सखी।

बैठ कदंब की कोमल डाली
छेड़ वेणु पर धुन मतवाली
आकुल उर कर दे वह आली।

चले न खुद पर जोर सखी
चल पनघट की ओर सखी ।

यमुना – तट पर जोराजोरी
रंग दी मेरी चूनर कोरी
मैं निश्छल गोकुल की छोरी।

नाचे मन का मोर सखी
चल पनघट की ओर सखी ।

श्याम मिलन की जागी आशा
जनम-जनम का तन-मन प्यासा
पूरी कर उत्कट अभिलाषा।

सुन अंतर का शोर सखी
चल पनघट की ओर सखी ।

अनिल मिश्र प्रहरी ।

Language: Hindi
189 Views
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