Sahityapedia
Sign in
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
2 Feb 2024 · 1 min read

” मन मेरा डोले कभी-कभी “

* देख परिंदों की आज़ादी
मन मेरा डोले कभी-कभी

काश कि,मैं आज़ाद हो पाऊं
मैं भी अपने घर को जाऊं
सैर करुँ मैं, शहर सभी
मन मेरा……………………

क़ैद ये बंदा कहां पे जाए
किससे अपनी व्यथा सुनाए
रह जाती है जुबां दबी
मन मेरा……………………

मन में यूं विश्वास बहुत था
उड़ने को आकाश बहुत था
काट दिये’पर’एक सभी
मन मेरा………………….

नींद न आए कैसे सोऊं
मन के कलुष कहां मैं धोऊं
रह जाती है परत जमी
मन मेरा…………………

बच्चे बाट जोहते होंगे
कष्ट असहनीय सहते होंगे
टूट न जाए आस लगी
मन मेरा…………………

मां की ममता रोती होगी
अश्रु-धार पग धोती होगी
टोक न दे कोई रुको अभी
मन मेरा…………………

•••• कलमकार ••••
चुन्नू लाल गुप्ता – मऊ (उ.प्र.)

602 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.

You may also like these posts

नानखटाई( बाल कविता)
नानखटाई( बाल कविता)
Ravi Prakash
प्रकृति
प्रकृति
Mohan Pandey
आप जिंदगी का वो पल हो,
आप जिंदगी का वो पल हो,
Kanchan Alok Malu
आसमां में खिलीं है किरन देखिए
आसमां में खिलीं है किरन देखिए
नूरफातिमा खातून नूरी
चांद को तो गुरूर होगा ही
चांद को तो गुरूर होगा ही
Manoj Mahato
https://vin777.contact/
https://vin777.contact/
VIN 777
ईर्ष्या
ईर्ष्या
Rambali Mishra
Dr Arun Kumar shastri
Dr Arun Kumar shastri
DR ARUN KUMAR SHASTRI
आग़ाज़
आग़ाज़
Shyam Sundar Subramanian
"द्रौपदी का चीरहरण"
Ekta chitrangini
అమ్మా తల్లి బతుకమ్మ
అమ్మా తల్లి బతుకమ్మ
डॉ गुंडाल विजय कुमार 'विजय'
हमारे चाहने मात्र से कुछ नहीं होता है,
हमारे चाहने मात्र से कुछ नहीं होता है,
Ajit Kumar "Karn"
4801.*पूर्णिका*
4801.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
हौसला रखो
हौसला रखो
Dr. Rajeev Jain
सांझ की सिन्दूरी कल्पनाएं और तेरी आहटों का दबे पाँव आना,
सांझ की सिन्दूरी कल्पनाएं और तेरी आहटों का दबे पाँव आना,
Manisha Manjari
है कश्मकश - इधर भी - उधर भी
है कश्मकश - इधर भी - उधर भी
Atul "Krishn"
भारत भविष्य
भारत भविष्य
उमा झा
सुखद गृहस्थी के लिए
सुखद गृहस्थी के लिए
सोनम पुनीत दुबे "सौम्या"
एक पल सुकुन की गहराई
एक पल सुकुन की गहराई
Pratibha Pandey
#सामयिक_व्यंग्य...
#सामयिक_व्यंग्य...
*प्रणय प्रभात*
मंजिल
मंजिल
विक्रम सिंह
क्षणिका
क्षणिका
Vibha Jain
उम्रभर रोशनी दिया लेकिन,आज दीपक धुआं धुआं हूं मैं।
उम्रभर रोशनी दिया लेकिन,आज दीपक धुआं धुआं हूं मैं।
दीपक झा रुद्रा
दीमक ....
दीमक ....
sushil sarna
ना वह हवा ना पानी है अब
ना वह हवा ना पानी है अब
VINOD CHAUHAN
*दो नैन-नशीले नशियाये*
*दो नैन-नशीले नशियाये*
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
मंजिल पहुंचाना जिन पथों का काम था
मंजिल पहुंचाना जिन पथों का काम था
Acharya Shilak Ram
‘पथ भ्रष्ट कवि'
‘पथ भ्रष्ट कवि'
Mukta Rashmi
पानी की तरह प्रेम भी निशुल्क होते हुए भी
पानी की तरह प्रेम भी निशुल्क होते हुए भी
शेखर सिंह
मेरा भाग्य और कुदरत के रंग...... एक सच
मेरा भाग्य और कुदरत के रंग...... एक सच
Neeraj Kumar Agarwal
Loading...