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2 Mar 2025 · 4 min read

#सामयिक_व्यंग्य…

#सामयिक_व्यंग्य…
◆”आ बैल! मुझे मार” करने से बचें मास्टर।
★ दिल खोल कर बांटें नम्बर
【प्रणय प्रभात】
माध्यमिक शिक्षा मंडल की परीक्षा सम्पन्न होने से पहले मूल्यांकन कार्य का श्रीगणेश होना तय है। ऐसे में एक समयोचित सलाह मन से देने का आज दिल कर रहा है। ध्यान से पढ़ेंगे तो मुनाफ़े में रहेंगे। कहना यह है कि- हायर सेकेंडरी और हाई स्कूल परीक्षा की उत्तर-पुस्तिकाओं का मूल्यांकन करने वाले शिक्षकगण अंकदान में थोड़ी उदारता बरतें। ताकि अनचाही मुसीबत उनके अपने सिर न आन पड़े। अगर वे देश के भविष्य मतलब कथित तौर पर मासूम बच्चों को अंक देते समय कृपणता की जगह उदारता बरतेंगे तो कोई आपदा नहीं आने वाली। सालाना परीक्षा का नतीजा ठीक रहेगा तो प्रयोगशाला बने प्रदेश की शिक्षा प्रणाली के सारे ऐब छुपे रह सकेंगे। शिक्षा को परखनली में डाले रखने के सरकारी मंसूबो पर आघात नहीं होगा। मुखिया जी और उनके चौपालियों को थोथे गाल बजाने का मौका मिलेगा।
मदमस्त सरकार और निरंकुश अफ़सर ख़ुश होंगे तो आप पर गाज गिरना टल जाएगा। साथ ही अभिभावक और बच्चे भी हंड्रेड परसेंट संतुष्ट रहेंगे। उन्हें पुनर्मूल्यांकन के नाम पर मंडलीय लूट से छूट मिलेगी सो अलग। आपको भी कार्यवाही के नाम पर आर्थिक और मानसिक यंत्रणा से मुक्ति मिलेगी। जिसके लिए सरकारी दामाद लठ और झोला लेकर तैयार बैठे हुए हैं। हर साल की तरह, गिद्ध-दृष्टि लगाए। वैसे भी देश में साल चुनावी और माहौल तनावी है। अडोस-पड़ोस के चुनावी झमेलों के कारण। तभी तो कही परीक्षा से पहले पर्चे वायरल करने वाले छोटे मच्छर पकड़े जा रहे हैं। तो कहीं ओटी वाले सवालों के जवाब केंद्रों तक पहुंचने के चर्चे चुप्पी के साए में हैं। बिल्कुल वैसे ही जैसे जेलों में बंद माफियाओं तक मोबाइल, हथियार और बाक़ी सामान पहुंचते हैं। बिना किसी शोर-शराबे के।
कुल मिला कर सवाल सरकारी भांजे-भांजियों के भविष्य की इमारत का है। फिर चाहे वो अवैध उत्खनन से निकली माफ़ियाई बालू पर ही क्यों न बन रही हो। आगे जाकर गिरे तो गिर जाए। न योग्य पैदा होंगे, न सरकारी जंवाई बन पाएंगे। घूमते रहेंगे कागज़ी अंकसूची लेकर। सूबे की साक्षरता दर तो बढाएंगे कम से कम। बिना मेहनत अच्छी श्रेणी पाएंगे तो पात्रता परीक्षा के पात्र बनेंगे। जितने ज्यादा पात्र होंगे उतनी ही तेज़ी से सरकार का भिक्षा-पात्र भरेगा। जीडीपी और इकोनॉमी आगे बढ़ेगी। जो अभी देशी-विदेशी दया व निवेश पर निर्भर है। डॉलर के मुकाबले रुपैया ताकतवर बबेगा, सो अलग।
फाइव-ट्रिलियन की इकोनॉमी बनाने में अकेला यूपी ही बाज़ी क्यों मारे? हर मामले में नवाचार की जगह नक़ल पर निर्भर “हार्ट-स्टेट” की साख क्यों गिरे, जिसे अगले 5 साल में कर्ज़ का घी पिला-पिला कर”फेंफड़ा-प्रदेश” बनाने के बाद आने वाले 10 साल में “गुर्दा-प्रदेश” बनाने की शपथ फिर से उठानी है? सरकार के अगाडी और गधे के पिछाड़ी चलने का हश्र पता न हो तो काहे के मास्टर? बच्चों को सिस्टम व सरकार का जयकारा नहीं सिखा पाओगे तो भेड़छाप भीड़ का हिस्सा कैसे बनाओगे? जिस पर सियासत की हर नौटंकी की सफलता का किस्सा टिका है।
जबरन चाणक्य बनने की चेष्टा क्यों करना? वो भी “नंद” के बापों के साम्राज्य में, जहां “आह” भरना तो दूर, उसकी “चाह” तक करना “गुनाह” है। ऐसे में बेहतर है कि आप इस समयोचित सलाह को मानें। एकाध अंक बढा कर ही दें ताकि विद्यार्थियों के साथ आपका अपना भी भला हो। आशय किसी को धक्का देकर अगली कक्षा में भेजने का नहीं है। उसके लिए “रुक न जाना” जैसी “सःशुल्क” सेवा सरकार ख़ुद दे ही रही है। आप बच्चों को जबरन उत्तीर्ण करेंगे तो दयनीय राजकोष और दुर्बल हो जाएगा। ऐसे में निर्णय व नियंत्रण के मामले में निर्बल सरकार के सबल सिपहसालार “बढ़ न जाना” जैसी नई “योजना” गढ़ना शुरू कर देंगे। जो कल को आप जैसे खरबूजों के लिए “दुधारी छुरी” साबित होगी। आप अकारण “फुटबॉल” बन कर अफ़सरों और राजनेताओं की बारहमासी किक के निशाने पर आ जाएंगे।
आपके ख़िलाफ़ तीसरा मोर्चा उन अवहिभावकों का होगा जो किसी न किसी सियासी आका को काका बनाए बैठे हैं। लिहाजा थोथे “आदर्शवाद” की “ऊबड़-खाबड़ पगडंडी” से बचें और समय की माँग के अनुसार “उदारवाद” व “अवसरवाद” का “बायपास रोड” काम में लें। जो आपको डायरेक्ट “राजपथ” से जोड़े रख सके। याद रहे किसी को एक अंक ज़्यादा देने से “सुनामी” नहीं आएगी, लेकिन आधा अंक कम देने से “महामारी” की “नई लहर” ज़रूर आ जाएगी। जो केवल और केवल आपके लिए “कहर” साबित होगी।
वैसे ही “हैप्पी वाले ईयर” में “लॉलीपॉप” और बज़ट में बड़े पैमाने पर झुनझुना वितरण के चक्कर में “चार्वाकी” खर्चे से खोपड़ी भन्नाई हुई है तंत्र की। उस पर पुरानी पेंशन और रेवड़ी-कल्चर को लेकर जायज़ बवाल से उपजी नाजायज़ टेंशन कभी भी अलग से भेजा भड़का सकती है। मंहगाई, भ्रष्टाचार और बेरोज़गारी की ओलावृष्टि की आशं
काएं गंजी खोपड़ी के लिए जी का जंजाल पहले से बनती आ रही है। अस्थाई चाकर स्थाई होने का कोहराम मचा कर कभी राम तो कभी श्याम याद दिला रहे हैं। अब आप ही सोचिए कि “आ बैल! मुझे मार” वाली सोच ठीक है या फिर ईमानदारी की सनक के ख़िलाफ़ थोड़ा सा लोच? अब सलाह मानें या न मानें, आपकी मर्ज़ी। अपना काम तो राय-बहादुर, राय-चंद, राय साहब बन कर फ़ोकट की राय देते रहना है। भले ही कल सीबीआई दबोचे या ईडी।
अपनी भी छोटी सी समझ में यह बड़ी बात घुस चुकी है कि अब काम से नाम बनने वाला नहीं। नाम अब बदनाम होकर ही बनता है। तो क्यों न मौके, मौसम और दस्तूर का फायदा उठाएं और यह कह कर पिंड छुडाएं कि-
“बुरा न मानो होली है।
पोल ज़रा सी खोली है।।
जय जय मद्य-प्रदेश।।
😊😊😊😊😊😊😊😊😊
★सम्पादक★
न्यूज़ & व्यूज़
श्योपुर (मध्यप्रदेश)

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