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13 Jun 2023 · 1 min read

दर्पण

सत्य भाव स्वयं में लेकर,
भित्ति टंगा इठलाय।
यथा नाम तथा गुण है,
दर्पण नाम कहाय ।। १
दर्पण देख मन का स्वयं,
सब देगा बतलाय।
जो सम्मुख है और छुपा,
आपहिं आप बताय।।२
श्वेतरंजन से बनता,
मेरा यही स्वरूप ।
जिसकी जैसी भावना,
उसका वैसे रूप ।।३
कथनी करनी सब दिखे,
बोले जो भी बैन ।
सब दिखता मुझ में यहीं,
जिसके जैसे नैन ।।४
जन-जन को छवि दिखा के,
मन लेता हूं मोह ।
हर कुलीन सम्मुख खड़े,
जिनकी लेता टोह।।५
रूप विलोकति दर्पण में,
मन ही मन मुस्काय ।
ज्यों हि निरखि सुंदर नयन,
रमणी गई लजाय।।६
दर्पण कहे वनिता सुनो,
तू क्यों देखे मोहि।
रूप बसे पति नयन में,
सुंदर आनन तोय।।७
मुदित हृदय अधर मंदस्मित,
सखि कह बात सुहाय।
पति नयनन ऐसी बसी,
ज्यों दर्पण रूप समाय।।८

Language: Hindi
207 Views
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