इतराओगे? इतरा लो!
इतराओगे? इतरा लो!
हम फिर भी तुम्हारे नाज़,
नखरे हँस के उठाएंगे।
समझाओगे? समझा लो!
हम बड़े प्यार से फिर भी,
तुम्हारी बात मानेंगे।
कब तक अनसुना करोगे,
दिल की तन्हा तड़प को?
कब तक यूँ नजरें फेरोगे,
इस बेबस सी लगन को?
एक दिन तो बहार पूछेगी,
फूलों से वो सच्ची बात।
एक दिन तो चाँद भी बोलेगा,
क्यों तरसे ये रात।
छोड़ो हमें भुला दो,
हम फिर भी तुम्हारे नाम
हर साँस में दोहराएँगे।
रुलाओगे? रुला लो!
हम आँसुओं में भी
तेरी यादों को सजाएँगे।
जिनसे हम दिल हार आए,
वो हमें अजनबी कहें,
जिनके लिए दुनिया छोड़ी,
वो ही हमसे परे रहें।
प्यार में हम रहे सदा
परछाईं बन के।
तुम न देखो तो भी
रहेंगे पास बन के।
चलो अब वार कर दो,
हमने दिल पेश किया है,
चाहे जख़्म दो, या मरहम,
तुमसे ही तो वफ़ा है।
क्या पता ये दर्द ही
इक रोज़ मंज़िल हो,
क्या पता ये प्यार ही
मेरी आखिर दुआ हो।
इतराओगे? इतरा लो!
हम फिर भी तुम्हारे नाज़,
नखरे सर पे उठाएंगे।
ठुकराओगे? ठुकरा लो!
हम फिर भी उसी मोड़ पे
तुम्हें रोज़ मनाएँगे।
© अभिषेक पाण्डेय अभि