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20 Nov 2021 · 1 min read

तिजारत

कद्र तुम हम दिलवालों की क्या करोगे ?
सौदागर हो प्यार को गरज़ से ही तोलोगे।

जब तक निभ सकी निभा दी गयी दोस्ती ,
रास न आया तो बेजार होकर मुंह फेरोगे। ,

एक तिजारत ही थी ,कब दिल लगाया था ,
ना हुआ मुनाफा तो कहीं और सौदा करोगे ।

इस दुनिया-ऐ-फानी में पानी सारे रिश्ते है ,
जो भा गया प्याला उसी में समा जाओगे।

यह भी ना सोचोगे किसी पर क्या गुजरेगी ,
शीशा ए दिल तोड़कर तुम चलते बनोगे ।

इतनी फुर्सत भी कहाँ दूर करें गीले-शिकवे ,
कोई भरता रहे आहें,तुम अपनी खैर मनाओगे ।

“अनु” को रहने दो अपनी तन्हाइयों के साथ ,
मगर सोच लो तुम भी खुश ना रह पाओगे।

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