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9 Feb 2025 · 8 min read

“सच्चे रिश्ते की नींव, विश्वास और समझ”

बड़े जंगल में एक विशाल बरगद का पेड़ था। इसकी शाखाएँ इतनी फैली हुई थीं कि एक स्थान से बहुत दूर तक छाया देती थीं। इस विशाल और मजबूत पेड़ की शाखाओं और पत्तियों के बीच कई पक्षियों ने अपने घोंसले बना रखे थे। आंधी, तूफान और बारिश के समय भी यह पेड़ पक्षियों के लिए एक सुरक्षित जगह था।

इस बरगद के पेड़ पर एक पक्षी का युगल जोड़ा रहता था, जिनके नाम पंखुड़ी और राजू थे। पंखुड़ी सुंदर होने के साथ-साथ बहुत मेहनती भी थी। राजू, जो एक राजसी प्रजाति से था, बहुत शांत और भोला था। दोनों के घोंसले अलग थे, लेकिन उनके दिल पिछले कुछ महीनों में मजबूती से एक-दूसरे से जुड़ गए थे। इस युगल जोड़े के प्यार से उनके घरवाले अंजान थे। वे हमेशा अपने घरवालों से छिपकर खुले आसमान की सैर करने निकलते थे। यह युगल जोड़ा हमेशा साथ रहने के सपने देखा करता था।

पंखुड़ी और राजू दोनों ही अलग प्रजाति से थे, लेकिन उन्हें विश्वास था कि उनके इस रिश्ते के लिए दोनों के घरवाले एक दिन मान जाएंगे। वह हर रोज कुछ देर के लिए अपने घर से दूर जाकर साथ उड़ान भरते और अपने आने वाले सुनहरे कल की कल्पना करते। एक साल तक ऐसा ही चलता रहा। सब ठीक था। दिन-प्रतिदिन उनके प्यार की मजबूती और गहरी होती गई।

पंखुड़ी का घर सभी पक्षियों के घोंसले के मुकाबले बहुत कमजोर था। उस घोंसले में उसके माता-पिता सहित छह पक्षी रहते थे। पंखुड़ी हर तरह से अपने घर में सहयोग करती थी। वह रोज थोड़े-थोड़े तिनके से अपने घर को मजबूत बनाने की निरंतर कोशिश करती। बरसात हो या सर्दी, अपने घर के लिए तिनके के साथ दाना भी चुग कर लाती थी। राजू पंखुड़ी की स्थिति से भलीभांति परिचित था। जब पंखुड़ी थककर उससे मिलने आती, तो वह उसे अपनी बातों से हंसाकर उसकी थकान को कम करने की कोशिश करता था। राजू बहुत मेहनती था और कई बार पंखुड़ी की मदद कर दिया करता था, तिनका और अनाज एकत्रित करने में। लेकिन राजू खुद के लिए बहुत आलसी था। उसे कभी अपने घर को सुरक्षित करने का ख्याल नहीं आया।

एक दिन अचानक बहुत तेज़ बारिश में राजू का घोंसला बिखरने लगा। उस तेज़ बारिश में राजू एक-एक तिनके को बचाने की कोशिश करता रहा। लेकिन आखिरकार, वह एक भी तिनका बचा नहीं पाया। उस दिन के बाद से उस बड़े बरगद के पेड़ पर पक्षियों में चहल-पहल होने लगी। पंखुड़ी को भी यह सूचना मिली। पंखुड़ी जानती थी कि राजू की लापरवाही से ऐसा हुआ है। उसने राजू को कई बार समझाया था कि वह अपने घर और लोगों की जिम्मेदारी को समझे। उस बारिश के बाद से राजू को भी बहुत पछतावा हुआ कि क्यों उसने पंखुड़ी की बात को अनसुना किया। पंखुड़ी को राजू की इस लापरवाही ने उसका ध्यान राजू की तरफ से कम कर दिया। वह उस बारिश के बाद से बेपरवाह राजू के साथ आने वाले अपने कल को लेकर चिंतित रहने लगी। उसने अपने सपने में भी अपने आने वाले कल में सिर्फ खुशी की कामना की थी। उधर, राजू अपने घोंसले को बनाने में लग गया। वह रोज़ कुछ तिनके कहीं से उठाकर लाता और अपने घोंसले में जोड़ता। इसी हलचल में एक रोविन नाम का पक्षी इस बरगद के पेड़ पर आ बैठा। उसने इस विशाल पेड़ को देखकर कुछ दिन यहीं रहने का इरादा बना लिया और अपना घोंसला बनाने लगा। रोविन ने अपना घोंसला पंखुड़ी के घोंसले के पास बनाया। अब वह पंखुड़ी का पड़ोसी था। पड़ोसी होने के नाते दोनों में बातचीत होने लगी।

एक सुबह, रोविन ने मजाक-मजाक में पंखुड़ी से पूछा, “क्या तुम ‘कमिटेड’ हो?” पंखुड़ी के लिए यह शब्द नया था, इसलिए उसने उल्टा सवाल किया, “मतलब?” रोविन ने फिर पूछा, “क्या तुम किसी के साथ रिलेशनशिप में हो?” तब पंखुड़ी ने उसे अपने और राजू के रिश्ते के बारे में बताया।

रोविन और पंखुड़ी में बातचीत और मजाक का सिलसिला चलता रहा। वह दोनों एक-दूसरे को हर दिन छेड़ते रहते। बात-बात पर एक-दूसरे को टोकते। रोविन एक खुशमिजाज पक्षी था और कुछ ही समय में वह पेड़ पर रहने वाले सभी पक्षियों का चहेता बन गया था। उसका व्यवहार सभी से अलग था, और शायद इसी वजह से सभी उसे पसंद करते थे।

एक सप्ताह बाद, राजू और पंखुड़ी फिर से आसमान की सैर पर निकले। सैर के बाद, जब दोनों एक साथ बैठे थे, तभी पंखुड़ी का गुस्सा राजू पर फूट पड़ा। वह रोने लगी। राजू को भी यह एहसास हुआ कि उसकी गलती थी, इसलिए उसने पंखुड़ी को दिलासा देकर चुप कराया। धीरे-धीरे सब कुछ ठीक हो गया और दोनों फिर से रोज़ मिलने लगे। रोविन के घोंसले के पास एक और पक्षी रहता था, जो काफी समय से वहाँ रह रहा था। वह पंखुड़ी से उम्र में बहुत बड़ा था, लेकिन उसे एक दोस्त की तरह मानता था। वह पंखुड़ी और रोविन दोनों का ही पड़ोसी था। जब पंखुड़ी किसी उलझन में पड़ती, तो वह उस पक्षी से सलाह लिया करती थी। उसने राजू की लापरवाही की बात भी उस पक्षी से साझा की थी। जिसके बाद उस पक्षी ने पंखुड़ी को राजू से दूर हो जाने की सलाह दी थी। सब कुछ सही चल रहा था। फिर एक शाम, जब पंखुड़ी राजू से मिलकर आने के बाद यूँ ही बैठी कुछ सोच रही थी, तभी वह दूसरा पक्षी आकर उससे रोविन के बारे में पूछता है।

“दूसरा पक्षी” – “तुम्हें रोविन कैसा लगता है?”

“पंखुड़ी” – “अच्छा लगता है।”

“दूसरा पक्षी” – “तुम भी उसे पसंद करती हो न?”

“पंखुड़ी” – “मतलब?”

“दूसरा पक्षी” – “तुम शायद नहीं समझ पाई हो, वह तुम्हें पसंद करता है।”

पंखुड़ी कुछ देर सोचने के बाद उस पक्षी से कहती है कि यह केवल उसका भ्रम है, जो वह सोच रहा है, ऐसा कुछ भी नहीं है। दूसरा पक्षी पंखुड़ी से यह जवाब पाकर चला जाता है। लेकिन पंखुड़ी के मन में यह बात घर कर गई। वह रोविन के बारे में सोचने लगी। एक तरफ तो वह यह जानकर खुश हो रही थी कि उसे कोई इस कदर चाहता है कि उससे कह भी नहीं पा रहा है। और दूसरी तरफ वह यह सोच रही थी कि रोविन को पहले से ही राजू के बारे में पता था, फिर भी वह कैसे उससे प्यार कर सकता है। कुछ देर तक वही बैठकर वह इस बारे में सोचती रही और आखिर में उसने तय किया कि वह इस बात को राजू को नहीं बताएगी। और न ही रोविन के बारे में ज्यादा सोचेगी और न उससे इसके बारे में कोई सवाल करेगी। लेकिन इतना सोच विचार के बाद भी पंखुड़ी के मन में रोविन का बार-बार ख्याल आता। रोविन का उसके लिए प्यार जानने के बाद उसके व्यवहार में बदलाव आने लगा। अब पंखुड़ी को राजू के प्यार में लापरवाही और रोविन में सच्चाई दिखने लगी। उसे जिस बात की हमेशा चिंता रहती थी (अपने भविष्य की), वह उसे रोविन के साथ सुरक्षित लगने लगी। अब वह राजू से मिलने पर जितना खुश नहीं होती थी, उतना खुश वह रोविन को बस देख लेने से हो जाती थी। कभी उसे अपने मन में डरपोक बोलकर हँसने लग जाती, तो कभी उसे तिरछी निगाहों से देखा करती यह चेक करने के लिए कि वह उसे नोटिस कर रहा है या नहीं। पंखुड़ी अब रोज़ राजू से न मिलने के बहाने देती।

पंखुड़ी चाहती थी कि रोविन उससे अपने प्यार का इज़हार करे। लेकिन उसे रह-रहकर इस बात का भी एहसास होता कि वह राजू को धोखा दे रही है। और तब उसे अपने आप से नफरत होने लगती। और फिर कुछ ही क्षण में वह दुबारा से रोविन के बारे में सोचने लग जाती।

ऐसे ही कुछ सप्ताह तक चलता रहा। फिर एक दिन, पंखुड़ी को पता चलता है कि रोविन हमेशा के लिए वापस जा रहा है। उसने पंखुड़ी को परेशान कर दिया। अब जब भी रोविन उसके सामने आता, वह मन में उससे कहती, “जाने से पहले एक बार तो अपनी दिल की बात कह दो।” पंखुड़ी रोविन के जाने की बात से परेशान रहने लगी। लेकिन उसके जाने से दो दिन पहले जब पंखुड़ी को पता चला कि यहाँ से चले जाने का यह फैसला रोविन ने अपनी खुशी से लिया है, तब पंखुड़ी को यह दुःख खलने लगा कि हो न हो रोविन राजू की वजह से उससे दूर जाना चाह रहा है। तब पंखुड़ी ने भी अपने दिल से यही आग्रह किया कि वह रोविन के बारे में सोचना बंद कर दे।

रोविन की विदाई के दिन, सभी निराश थे। तब पंखुड़ी भी अपने आँसुओं को छुपा नहीं पाई। जब रोविन ने सभी को अलविदा कहा, तो पंखुड़ी की धड़कनें तेज़ हो गईं। रोविन ने पंखुड़ी को रोते हुए देखा और उसके पास जाकर पूछा, “तुम क्यों रो रही हो?” विदाई के कुछ समय बाद, रोविन की कही बात पंखुड़ी के कानों में गूंजने लगी—”तुम क्यों रो रही हो?” इससे पंखुड़ी के मन में संदेह पैदा हुआ। क्या रोविन सच में नहीं जानता था कि वह क्यों रो रही है, या फिर वह जानबूझकर अंजान बनने की कोशिश कर रहा था।

रोविन ने जाने के बाद, उसने कभी पंखुड़ी को कॉल या मैसेज नहीं किया, जिससे पंखुड़ी के मन में कई सवाल खड़े हो गए।

एक दिन, पंखुड़ी ने किसी को रोविन से फोन पर बात करते हुए सुना। फोन स्पीकर पर था, और रोविन उस इंसान से पंखुड़ी की शिकायत कर रहा था। यह सुनकर पंखुड़ी का दिल टूट गया। उसे अब यकीन हो गया कि रोविन ने उससे कभी प्यार नहीं किया। उदास होकर, पंखुड़ी उस पक्षी के पास गई, जिससे वह अपनी सारी बातें साझा करती थी। पंखुड़ी ने पक्षी से कहा, “आपको गलत लगा था कि रोविन मुझे पसंद करता है।” पक्षी उसकी बात सुनकर मुस्कुराया और कहा, “मुझे लगा था कि वह तुम्हें पसंद करता है। लेकिन कोई बात नहीं, मेरी एक दोस्त को भी मैंने ऐसे ही कहा था कि कोई उसे पसंद करता है, और ऐसा कहकर मैंने उन्हें साथ कर दिया।” पंखुड़ी ने आश्चर्य से पूछा, “क्या आप सच में ऐसा कर सकते हैं?” पक्षी ने नज़ाकत से कहा, “बिलकुल!”

अब पंखुड़ी को पछतावा होने लगा कि क्यों उसने राजू को धोखा दिया, जो उसे सच में चाहता था। क्यों भटक गई वह? पंखुड़ी को यह एहसास हुआ कि रिश्तों में संवाद और ईमानदारी जरूरी है। राजू की उस गलती का इतना बड़ा सिला, यह उसने बहुत गलत किया। जिसका पछतावा उसे हमेशा रहेगा। पंखुड़ी ने फैसला किया कि वह अपने अतीत को छोड़कर आगे बढ़ेगी, क्योंकि अब उसे पता था कि किसी को धोखा देकर खुशी नहीं मिल सकती। प्यार वही है, जो एक-दूसरे की भावनाओं को समझे और बुरे वक्त में भी साथ खड़ा रहे।

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