Sahityapedia
Sign in
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
27 Aug 2020 · 4 min read

ईमानदार चोर

मेरी मंझली बहन की शादी तय हो चुकी थी, 10 दिन बाद शादी थी। घर में बहुत गहमागहमी का माहौल था। दूर-दूर से रिश्तेदार आने लगे थे। उनकी व्यवस्था की जिम्मेवारी मेरी सबसे बड़े भाई सौंपी गई थी ।जो उनके खान पान एवं ठहरने की व्यवस्था कर रहे थे। मंझले भाई को हलवाई , टेंट एवं विवाह मंडप सजाने की व्यवस्था की जिम्मेवारी सौंपी गई थी। चूंकि मैं सब भाइयों से हिसाब किताब में जरा ज्यादा होशियार समझा जाता था ।अतः मुझे समस्त खर्चों धन व्यवस्था एवं प्रबंधन की जिम्मेवारी सौंपी गई थी । मैं सभी लोगों के लिए एक चलता फिरता बैंक था। यदि किसी को पैसे की जरूरत पड़ती थी तो मुझसे संपर्क करते थे। मैं भी एक कुशल प्रबंधक की तरह से भलीभांति आवश्यकता का विश्लेषण कर पैसे देकर उसकी रसीद लेना नहीं भूलता था। मेरी छोटी दीदी के जिम्मे आने वाले रिश्तेदार और संगी साथी महिलाओं के रुकने एवं खानपान की व्यवस्था की जिम्मेवारी थी।
उन दिनों शादी ब्याह एक उत्सव की तरह होता था इसमें सभी आस पड़ोस के लोग एवं मित्रगण एवं समस्त रिश्तेदार जोर-शोर से शामिल होते थे । शादी से कुछ दिन पूर्व ही रिश्तेदारों के आगमन का तांता लगा रहता था। और उनके खानपान एवं रुकने की व्यवस्था लड़की के पिता को करनी पड़ती थी। पर इस विषय में आस-पड़ोस के लोगों का सहयोग भी काफी रहता था। वे अपने घर का कमरा खाली कर लोगों की ठहरने की व्यवस्था भी कर देते थे। वैसे भी मेरा घर काफी बड़ा हवेली नुमा था जिसमें 10 कमरे थे अतः व्यवस्था में कोई परेशानी नहीं थी।
मैंने एक काले बैग में एक कॉपी और दैनिक जरूरत के हिसाब से धन रखा था जो हमेशा अपने साथ ही रखता था कि न जाने कब धन की जरूरत पडे़ । उन दिनों में शादी 3 दिन तक चलती थी। पहले दिन बाराती आते थे और विश्राम करते थे। फिर शहर घूमने और शॉपिंग करने जाते थे ।उन सबके लिए वाहन व्यवस्था की जिम्मेवारी मेरे सबसे बड़े भाई के ऊपर थी। दूसरे दिन बारात का स्वागत एवं शादी का समारोह होता था। तीसरे दिन दोपहर के भोजन के बाद लड़की की विदाई होती थी।
शादी के दिन मुझसे मेरे मंझले भाई ने कुछ सामान आदि लाने के लिए पैसे लिए, मैंने उसको पैसे देकर उसकी पावती मेरी कॉपी में लेकर बकाया रकम गिन कर बैग में रख ली। तभी मेरे बड़े भाई का बुलावा आ गया उन्होंने मुझे किसी रिश्तेदार को रेलवे स्टेशन गाड़ी ले जाकर लाने को कहा। मैंने सोचा मैं बैग को लिए कहां कहां घूमूँगा, इसे किसी विश्वासपात्र व्यक्ति को सौंप कर सुरक्षित रखने के लिए दे दूँ , बाहर से वापस लौटकर आने पर ले लूंगा।
अतः मैंने बैग को मेरी छोटी बहन जो दुल्हन के कमरे में थी को सुरक्षित रखने को कहकर दे दिया।
लौट कर आने पर मैंने वह बैग अपनी बहन से वापस ले लिया। कुछ समय पश्चात मेरे बड़े भाई ने कुछ लोगों को भुगतान करने के लिए पैसे की मांग की , तब मैंने अपने बैग से जब रुपए निकाले तो मेरे होश उड़ गए । मेरी बैग में ₹25450 थे जब मैंने वह बैग अपनी बहन को दिया था। वह मेरी कॉपी में भी लिखा हुआ था। परंतु बैग में से ₹ 20,000 गायब थे । केवल ₹ 5450 केवल ही बैग में निकले ।
₹20000 किसी ने निकाल लिए थे। मैंने अपनी बहन से पूछा कि तुमने तो रुपए निकाले नहीं है ? उसने कहा नहीं मैंने उसको खोल कर भी नहीं देखा था। फिर मैंने पूछा तुमने बैग को कहां रखा था ? उसने कहा तुम्हारे देने के बाद मैंने बैग को अलमारी में रख दिया था। मैंने पूछा तुमने अलमारी में ताला लगाया था क्या ? और उसकी चाबी किसके पास थी ? उसने कहा उसकी चाबी तो मेरे ही पास थी पर जब भी जरूरत पड़ती थी लोग मुझसे चाबी मांग कर ले जाते थे।
मैं समझ गया कि किसी अपने की ही ये कारस्तानी है। चोर कोई बाहर का नही अपने ही घर का कोई रिश्तेदार या संगीसाथी है।
मुझे इस बात से भी विस्मय हुआ कि चोर ने केवल ₹20000 क्यों चुराए वो चाहता तो पूरे पैसे ले जा सकता था। मैं कुछ समझ नहीं पा रहा उसने ऐसा क्यों किया।
मैं इस विषय में और कुछ तहकीकात कर खुशी के माहौल में खलल नहीं डालना चाहता था। अतः मैंने अपने बड़े भाई और बहन से कहा कि इस विषय में किसी से चर्चा ना करें क्योंकि इसका कोई निष्कर्ष नहीं निकलेगा उल्टे खुशी का माहौल खराब होगा। अतः मैंने चुप्पी साध कर इस आर्थिक दुःख को सहन करना ही श्रेयस्कर समझा। मैंने अपने मित्र से ₹20000 उधार लेकर क्षतिपूर्ति कर ली। अतः इस तरह हंसी खुशी माहौल में शादी संपन्न होकर विदाई हो गई।
मेरी बहन की शादी हुए करीब 6 माह व्यतीत हो चुके थे।
और मैं उस घटना को लगभग भूल चुका था।
तभी एक दिन मेरे नाम से एक पार्सल आया।
मैं अचंभित हुआ क्योंकि पार्सल भेजने वाले के नाम से मैं परिचित नहीं था।
मैंने सोचा कोई जिसे मै जानता नहीं ने मुझे क्यों पार्सल भेजा है?
आखिर मैंने पार्सल को खोल कर देखा तो दंग रह गया कि उस पार्सल में ₹ 22500 थे और साथ में एक चिट्ठी थी उसमें यह लिखा था :

महोदय,

मुझे अत्यंत दुख के साथ सूचित करना पड़ रहा है कि मैंने आपके बैग से ₹20000 आपकी बहन की शादी के दिन चुराए थे। मुझे विकट परिस्थितिवश यह घृणित कृत्य करने के लिए बाध्य होना पड़ा जिसका मुझे अत्यंत खेद है। यह आपका कर्ज मेरे ऊपर था जिसे मैं आपको मय ब्याज वापस लौटा रहा हूं कृपया स्वीकार करें। हालांकि मेरा कृत्य माफी योग्य नहीं है फिर भी आप से निवेदन है कि मेरे विरुद्ध दुर्भावना न रखकर क्षमा प्रदान करने का प्रयास करें ।

आपका क्षमा प्रार्थी
ईमानदार चोर

Language: Hindi
8 Likes · 11 Comments · 588 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
Books from Shyam Sundar Subramanian
View all

You may also like these posts

आ रही हो न (बारहमासा)
आ रही हो न (बारहमासा)
सोनू हंस
■मौजूदा हालात में■
■मौजूदा हालात में■
*प्रणय प्रभात*
कैसी प्रथा ..?
कैसी प्रथा ..?
पं अंजू पांडेय अश्रु
बात हमेशा वो करो,
बात हमेशा वो करो,
sushil sarna
अध्यात्म
अध्यात्म
DR ARUN KUMAR SHASTRI
कभी नजरें मिलाते हैं कभी नजरें चुराते हैं।
कभी नजरें मिलाते हैं कभी नजरें चुराते हैं।
Prabhu Nath Chaturvedi "कश्यप"
शीर्षक:गुरु हमारे शुभचिंतक
शीर्षक:गुरु हमारे शुभचिंतक
Harminder Kaur
'सहस्त्रचंद्र दर्शनाच्या उंबरठ्यावर' (माजी विद्यार्थीनी मनोगत)
'सहस्त्रचंद्र दर्शनाच्या उंबरठ्यावर' (माजी विद्यार्थीनी मनोगत)
Kanchan Alok Malu
सोच
सोच
Rambali Mishra
आप में आपका
आप में आपका
Dr fauzia Naseem shad
मकर संक्रांति पर्व
मकर संक्रांति पर्व
चेतन घणावत स.मा.
*मनः संवाद----*
*मनः संवाद----*
रामनाथ साहू 'ननकी' (छ.ग.)
जब दिल टूटता है
जब दिल टूटता है
VINOD CHAUHAN
जीवन में चलते तो सभी हैं, मगर कोई मंजिल तक तो कोई शिखर तक ।।
जीवन में चलते तो सभी हैं, मगर कोई मंजिल तक तो कोई शिखर तक ।।
Lokesh Sharma
जवानी
जवानी
Pratibha Pandey
" नैना हुए रतनार "
भगवती प्रसाद व्यास " नीरद "
अरमान दिल में है
अरमान दिल में है
दीपक बवेजा सरल
मुझसे जो भी होता है वो मैं करता हूॅं!
मुझसे जो भी होता है वो मैं करता हूॅं!
Ajit Kumar "Karn"
अकेले रहना अत्यंत ही कष्टकर है, लेकिन
अकेले रहना अत्यंत ही कष्टकर है, लेकिन
डॉ. शशांक शर्मा "रईस"
तू मेरी मैं तेरा, इश्क है बड़ा सुनहरा
तू मेरी मैं तेरा, इश्क है बड़ा सुनहरा
SUNIL kumar
चुनाव
चुनाव
Lakhan Yadav
फिर भी गुनगुनाता हूं
फिर भी गुनगुनाता हूं
Kaviraag
*पुस्तक समीक्षा*
*पुस्तक समीक्षा*
Ravi Prakash
परीक्षा का सफर
परीक्षा का सफर
पूर्वार्थ
"दुआ"
Dr. Kishan tandon kranti
सिद्धार्थ से बुद्ध: ज्ञान की यात्रा। ~ रविकेश झा
सिद्धार्थ से बुद्ध: ज्ञान की यात्रा। ~ रविकेश झा
Ravikesh Jha
टले नहीं होनी का होना
टले नहीं होनी का होना
Laxmi Narayan Gupta
......सबकी अपनी अपनी व्यथा.....
......सबकी अपनी अपनी व्यथा.....
rubichetanshukla 781
तुम मुझे भूल जाओ यह लाजिमी हैं ।
तुम मुझे भूल जाओ यह लाजिमी हैं ।
अश्विनी (विप्र)
'प्रभात वर्णन'
'प्रभात वर्णन'
Godambari Negi
Loading...