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10 Apr 2020 · 1 min read

बनारस की गली में

बनारस की गली में
दिखी एक लड़की
देखते ही सीने में
आग एक भड़की

कमर की लचक से
मुड़ती थी गंगा
दिखती थी भोली सी
पहन के लहंगा
मिलेगी वो फिर से
दाईं आंख फड़की
बनारस की गली में…

पुजारी मैं मंदिर का
कन्या वो कुआंरी
निंदिया भी आए ना
कैसी ये बीमारी
कहूं क्या जब से
दिल बनके धड़की
बनारस की गली में…

मालूम ना शहर है
घर ना ठिकाना
लगाके ये दिल मैं
बना हूं दीवाना
दीदार को अब से
खुली रहती खिड़की
बनारस की गली में…

✍️ आलोक कौशिक

संक्षिप्त परिचय:-

नाम- आलोक कौशिक
शिक्षा- स्नातकोत्तर (अंग्रेजी साहित्य)
पेशा- पत्रकारिता एवं स्वतंत्र लेखन
साहित्यिक कृतियां- प्रमुख राष्ट्रीय समाचारपत्रों एवं साहित्यिक पत्रिकाओं में सैकड़ों रचनाएं प्रकाशित
पता:- मनीषा मैन्शन, जिला- बेगूसराय, राज्य- बिहार, 851101,
अणुडाक- devraajkaushik1989@gmail.com
चलभाष संख्या- 8292043472

Language: Hindi
Tag: गीत
1 Like · 2 Comments · 609 Views
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