दोहे
(1)
मानवता का मूल है, क्षमा, सत्य वरदान।
मानव उर में ही निहित, ईश्वर की पहचान।।
(2)
क्षमा शील हो मित्र यदि,नेह मित्र से होय।
राग द्वेष या ईर्ष्या, मित्र न जाने कोय।।
(3)
सत्य व करूणा प्रेम शुचि, ईश्वर के वरदान।
मानव मानें यदि इसे,जीवन हो गतिमान।।
डा. प्रवीण कुमार श्रीवास्तव,
वरिष्ठ परामर्श दाता
जिला चिकित्सालय, सीतापुर।उ.प्र.