Sahityapedia
Sign in
Home
Your Posts
QuoteWriter
Account
9 Sep 2024 · 1 min read

मन की प्रीती

तुमसे लागी मन की प्रीती , भूल गई मैं जग की रीती

तुमको सौंपी जीवन नैया , मेरे साथी सखा खिवैया ||

काहे छेड़त वंशी धारी , मटकी फोरत क्यों बनबारी

गोरी राधा मन को भावे , और कछू न मोहे सुझावे ||

Loading...