उत्सव खत्म..अपनी जिम्मेदारियों के निर्वहन के लिए लौटते बच्चे...
लौटते बच्चे….
उत्सव की रौनक अब सिमटने लगी है…
माइक की शोरगुल अब थमने लगी है…
रंगों से सजा था जो आँगन कल…
आज वही सूनी-सूनी सी लगने लगी है…
उनकी हँसी के बुलबुले जो उड़ा करते थे कल…
अब सन्नाटों में खोए-खोए से लगते हैं…
बच्चों के ठहाकों से गूंजता था घर-आँगन…
अब सबकुछ सोये सोये से लगते हैं…
कंधों पर झोले, दिल में यादों का बोझ…
स्टेशन, बस-स्टॉप, हर ओर उनकी खोज में …
वो साथी, वो ठहाके, वो रातें बिना नींद की…
सब लौट चले हैं अपनी-अपनी जिम्मेदारियों की बोझ में…
पर जाते-जाते हर चेहरा कुछ कह गया है…
“मिलेंगे फिर” कहकर भी कुछ रह गया है…
ये उत्सव ये पर्व तो हर साल आएगा…
किन्तु हर बार यह पल हमेशा रुलायेगा…
…….✒️✒️✒️कुमार राजीव (बच्चों को समर्पित)