7…अमृत ध्वनि छन्द
7…अमृत ध्वनि छन्द
मात्रा भार..24
जिसको प्रिय श्री राम हैं, वह है वास सुगंध।
दीन-हीन को अनवरत,देता रहता कंध।।
सुमिरन करता, रटता रहता, रामेश्वर को।
घूम घूम कर, चूमा करता,दीनेश्वर को।
हाथ मिलाता,काम चलाता, दीन मनुज का। भाई बनता,साथी लगता,सदा अनुज का।
धारण कर प्रभु राम को, य़ह है धर्म महान।
उनके क़दमों पर चलो, बन जा सभ्य सुजान।
राम वृत्ति है, शिव संस्कृति है, उच्च आचरण।
त्याग तपोमय,सदा धर्ममय ,शुद्ध आवरण ।
राम भाव है,मधु स्वभाव है,संकटहारी।
राम नाम है अमर धाम है, अजिर विहारी।
8…माधव ध्वनि छंद (अभिनव)
(मात्रिक छंद)
मात्रा भार.. 27
8,8,11
अमृत धारा, बहे जगत में,कुत्सित छोड़ विचार।
पुष्पित हो मन, गमके बगिया,आये शिष्टाचार।
निर्मलता हो,हर मानव में,हो विकास साकार।
शुचिता कायम,करना सिखों,मोहक हो व्यवहार।
सब के प्रति हो, स्नेह सहज अति, हो अपने का भान।
ध्यान लगे जब, काम बने तब,मिट जाये अभिमान।
मत दुश्मन को,गले लगा कर, बनना कभी सुजान।
जो विपक्ष का,अर्थ जानता, उसको सच्चा ज्ञान।
9…दुर्मिल सवैया
जिसके दिल में प्रिय राम सदा, वह भक्त कहावत है जग में I
सियराम अनंत असीम महा, रहती हरि प्रीति सदा पग में I
यशगान किया करता चलता, प्रभु राम अभीष्ट महेश्वर हैं I
अनुराग लिये विचरा करता,उस धाम जहाँ परमेश्वर हैं।
रघुनाथ सहायक हैं जिसके, उसको कुछ की नहिं चाहत है।
रहता मन मंदिर आंगन में, मनमस्त कभी नहिं आहत है।
प्रभु राम भजन लवलीन सदा,बस एक मनोरथ है य़ह ही।
नहिं दूसर काम कभी बढ़िया, बस केवल राम सुवास सही।
10 …सुंदरी सवैया
उसके सब काम बना करते,जिसमें छल और प्रपंच नहीं है।
जिसका सच में लगता मन है,अति उत्तम मानव पंच वही है।
हर रंग जिसे शुभ रंग लगे,उस मानव का हर रंग सही है।
सबके प्रति पोषण भाव जहाँ, वह मानव भारत देव मही है।
मधु पावन भाव जहाँ रहता,वह धाम बना दिखता रहता है।
जिसको प्रिय मानव है लगता, वह त्याग सदा करता चलता है।
जिसमें नहिं भेद कभी दिखता, वह सुन्दर स्नेहिल सा लगता है।
जिसमें समता ममता रहती, वह निर्मल वायु बना बहता है।
11 अमृत ध्वनि छन्द
मात्रा भार 24
जो स्वतन्त्रता के लिए, हो जाता कुर्बान।
सदा अमर इतिहास का, रचता वहीं विधान। ।
जो स्वतंत्र मन, का अनुरागी, वह बड़ भागी।
वह जग में है, निश्चित जानो, मोहक त्यागी।।
नहीं किसी से, याचन करता,प्रिय वैरागी।
बेमिसाल है, दिव्य चाल है,जन सहभागी।।
पराधीनता है नहीँ, जिसको भी स्वीकार।
महा पुरुष के रूप का, लेता वह आकार।।
जिसे गुलामी, नहीँ सुहाती, वही वीर है।
गलत काम को,गंदा कहता,सत्य धीर है।।
हीन नहीं है, स्वाभिमान सा,विमल नीर है।
आत्म प्रतिष्ठा, सबसे ऊपर,स्वयं हीर है।।
12— सरसी छंद
मात्रा। भार 16/11
वहीं प्यार करता भारत से,
जो है बहुत उदार।
सारी वसुधा परिजन जैसी,
दिल का है विस्तार।
भारत सुन्दर उसको लगता,
जिस के सुखद विचार।
भारतीय संस्कृति अति पावन,
बनी हुई उपहार ।
भारतीयता को जो जाने,
उसका हो उद्धार।
सहज सरल उत्तम भारत है,
मानवता का द्वार।
अपनेपन का भाव भरा है,
भारत प्रिय परिवार।
शांति ध्वजा लहराता भारत,
सुख की है बौछार।
विश्व गुरू य़ह आदि काल से,
महिमा अपरम्पार।
क्षमा कृपा इंद्रिय निग्रह का,
भारत शिव आकार ।
सत्य अहिंसा प्रेम पुजारी,
भारत जग का हार।
ब्रह्मा विष्णु महेश देव से,
भारत करता प्यार।
लोकतंत्र ही मूल्य यहाँ का,
मानव है आधार।
सारी जगती खुशी मनाए,
हर क्षण हो त्योहार।
मानवता का विद्यालय हो,
य़ह समग्र संसार।
सेवा भाव रहे अंतस में,
भारत वर्ष प्रचार।
सीमाओं में रहे सकल जग,
मर्यादा की धार।
ऐसा भारत हिन्दू मन में,
करता सदा विहार।
हिन्दुस्तान बने यह धरती,
आये दिव्य बहार।
नैतिकता से जिसे मोह है,
वह है भारतकार।
13—कुंडलियां
चाहत हो बस राम की, और नहीँ कुछ चाह।
सदा राम के भजन से, मिल जाती है राह।।
मिल जाती है राह,हो जाता है मन मगन।
होता मालामाल, पा कर प्रभु श्रीं राम धन।।
कहें मिश्र कविराय, राम जी देते राहत।
जपो राम दिन रात, रहे दिल में यह चाहत।।
चाहत हो संतोष की, यह धन है अनमोल।
यह धन जिसने पा लिया, उसके मीठे बोल।।
उसके मीठे बोल, सिद्ध हो चलता रहता।
आत्मतोष का मंत्र,, सदा वह जपता चलता।।
कहें मिश्र कविराय, जगत में उसका स्वागत।
जो थोड़े में तुष्ट, नहीं अधिकाधिक चाहत।।
14…कुंडलिया
करना तुमसे प्यार है, यह दिल का उद्गार।
इस उत्तम संदेश से, अब होगा इजहार।।
अब होगा इजहार, सुनो ये सच्ची बातें।
मन से मन को जोड़, कटेंगी सारी रातें।।
कहें मिश्र कविराय, हाथ को प्यारे धरना।
कभी न देना छोड़, हृदय से मंथन करना।।
कहता मन बस है यही, तुम हो मेरा प्यार।
कंपन होता हृदय में, जब हों आँखें चार।।
जब हों आँखें चार, समाता तन है तन में।
मिलती अति संतुष्टि, स्वर्ग दिखता है मन में।।
कहें मिश्र कविराय, ओज तन मन में भरता।
आओ मिलो जरूर, यही सच्चा मन कहता।।
15…. दोहे
भाग्य पूर्व के जन्म के, कर्मों का फलदान।
जिसका जैसा कर्म है, उसको वैसा भान।।
नहीं भाग्य में है अगर, लिखा किसी को प्यार।
कितना भी कोशिश करे, नहीं मिलेगा यार।।
कर्म तपस्वी रात दिन, करता रहता काम।
तन मन दिल उसका सहज, बन जाता है धाम।।
सुंदर कर्मों को सतत, जो समझेगा साध्य।
पूजनीय वे कर्म ही, बन जाते आराध्य।।
सुभमय शिवमय कृत्य से, मिल जाता है प्यार।
प्यारा मधुमय हृदय ही, सदा प्रेम का सार।।
स्वच्छ धवल उज्ज्वल विमल, मन में दिव्य बहार।
पहनाता रहता सहज, प्रिय को प्यारा हार।।
प्यार दिखावा है नहीं, यह है अमृत तत्व।
दिल देने से दिल मिले, जागृत हो अपनत्व।।
16…. कुंडलिया
राधा जिसकी प्रेमिका, वही ब्रह्म घनश्याम।
नचा रहा है विश्व को, नटवर मोहन नाम।।
नटवर मोहन नाम, प्रेम की वंशी ले कर।
ध्वनि में स्नेहिल गूंज, चला करता है भर कर।
कहें मिश्र कविराय, कृष्ण को जिसने साधा।
मिला उसी को प्रेम, बना वह खुद जिमि राधा।।
राधा राधा जो कहे, वही कृष्ण अवतार।
श्री कृष्णा के भाग्य में, है राधा का प्यार।।
है राधा का प्यार, श्याम मुरलीधर पाते।
यमुना तट पर बैठ, संग राधा के गाते।।
कहें मिश्र कविराय, श्याम हैं केवल आधा।
होते वे भरपूर, साथ में यदि हों राधा।।
17…. मत्तगयंद/मालती सवैया
नाचत गावत आवत भक्त, शिरोमणि ढोल बजावत भाये।
कृष्ण चरित्र सुनावत बोलत, अंबर में घनश्याम दिखाये ।
आतम में प्रभु की झलके,छवि मोहक मादक रूप लुभाये।
विस्मृत चित्त भुला सुधि को, वह दिव्य स्वरूप सदा सुख पाये।
द्वापर कृष्ण सुराज वहां पर, कंस जहां मरता दिखता है।
कृष्ण चले हरने महि भार, लिखे इतिहास जहां पढ़ता है।
श्याम स्वभाव असीम महा, अति कोमल प्रेमिल नेह भरा है।
मंत्र दिये जग को घनश्याम, पढ़ो जग को यह गेह धरा है।
18…. दुर्मिल सवैया (जीवन)
हर जीवन जीवन होत सदा, इसको बढ़िया घटिया न कहो।
हर भाव कुभाव दिखे इक सा, तन से मन से हर भाव गहो।
सुनना सबकी गुनते चलना, हर बात सुनो विपरीत सहो।
अनुकूलन हो हर जीवन से, दुख को मदिरालय मान रहो।
दुख सागर जीवन है सब का, इसका प्रतिकार नहीं करना।
हंसते चलना मत कुंठित हो, हर हालत में बढ़ते रहना।
सहयोग मिला करता सब को, परमेश्वर को जपते चलना।
विचलो न कभी न निराश रहो, मत द्वंद्व कभी मन में रखना।
19…. अमृत ध्वनि छंद
मात्रा भार 24
प्रेम पंथ पर निकल चल, जैसे चलते श्याम।
मधु प्रिय उत्तम जीवनी, लिखा करो अविराम।।
राह पकड़ना, शुभ कृति करना, यही सरल है।
मत कर निंदा, अतिशय गंदा, सदा गरल है।।
शिव भाषा ही, परिभाषा हो, सच कहना है।
बन चल आशा, अति अभिलाषा, खुद बनना है।।
सबको देना जानता, है ज्ञानी शुभ दान।
ज्ञान दान निःशुल्क से, मिलता है सम्मान।।
सीखो देना, कुछ मत लेना, यह उत्तम है।
ज्ञान दान ही, अभिज्ञान अति, सर्वोत्तम है।।
खो कर पाओ, अलख जगाओ, आगे बढ़ना।
सत्य जागरण, मोहक भाषण, देते चलना।।
20…. दुर्मिल सवैया (करुणा)
जिसमें करुणा सरिता न बहे, वह राक्षस भूत कपूत सदा।
जिसमें नहिं नेह समंदर है, दिखता वह है विषदूत सदा।
नहिं भाव दया जिसमें उसमें, अपराध दिखात अकूत सदा।
दिल में जिसके अनुराग बसे, वह सुंदर मानव छूत सदा।
दुख देख दुखी जिसका मन हो, वह उत्तम कोटि कहावत है।
वह रूप महान सदा जग में, दुख देखत अश्रु बहावत है।
जिसका दिल आतुर हो चलता, हर मानव पीर भगावत है।
विपदा पड़ने पर हाथ गहे, नहिं छोड़त साथ निभावत है।