19-कुछ भूली बिसरी यादों की
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कुछ भूली बिसरी यादों की, सुंदर बड़ी कहानी है
वैसे तो कुछ और नहीं पर, यह जानी पहचानी है
गाँव हमारे नीम छाँव में, रहती मात भवानी है
लोग मानते है माँ जिसको, श्रद्धा भाव जुबानी है
बाबा काका रोज़ वहाँ पर, कीर्तन गाया करते थे
साथ उन्ही के हम भी यारो, झाल बजाया करते थे
वहाँ पुजारी जी जयकारा, रोज़ लगाया करते थे,
सुन के स्वर घण्टे की हम भी, दौड़े जाया करते थे।
जुटके पूरा गाँव वहाँ सब, ख़ुशी मनाया करता था
खाने से पहले ही माँ को, शीश नवाया करता था।।
बाबा के कन्धे पर बैठे, मेला जाया करते थे
और जलेबी बड़े चाव से, हम सब खाया करते थे।
लाल ,गुलाबी, हरी पतंगे, खूब उड़ाया करते थे
लुका-छुपी आइस बाइस से, धूम मचाया करते थे
बस्ता पटरी ले हम शाला, पैदल जाया करते थे
वहाँ गणित के शिक्षक से हम, डंडे खाया करते थे
बचपन का वो गाँव हमारा, यादों का अफसाना है।
गुजर गया जो वक्त ‘विमल’ फिर, लौट कहाँ अब आना है।।
अजय कुमार मौर्य ‘विमल’