मुझको कुर्सी तक पहुंचा दे
*आओ लौटें फिर चलें, बचपन के दिन संग(कुंडलिया)*
जरूरत के हिसाब से सारे मानक बदल गए
चुपचाप यूँ ही न सुनती रहो,
'धोखा'
Dr. Asha Kumar Rastogi M.D.(Medicine),DTCD
कैसा कोलाहल यह जारी है....?
पाण्डेय चिदानन्द "चिद्रूप"
प्रेम में कुछ भी असम्भव नहीं। बल्कि सबसे असम्भव तरीक़े से जि
भ्रातृ चालीसा....रक्षा बंधन के पावन पर्व पर
बेटी और प्रकृति, ईश्वर की अद्भुत कलाकृति।
जिंदगी में मस्त रहना होगा
ढूंढ रहा है अध्यापक अपना वो अस्तित्व आजकल