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29 Apr 2024 · 1 min read

इश्क इवादत

रातों को नींदे जगाने लगे हो
अक्सर ख्वाबों में आने लगे हो

मिलता नहीं अब तकल्लुफ कहीं
एक तुम ही दिल में समाने लगे हो

उदू लगता है ये जमाना हमें
एक तुम ही बस भाने लगे हो

बड़ चुकी हैं चाहत ए वस्ल की
हदें इस कदर तुम मिटाने लगे हो

न इल्म हमें है रदीफ़ काफिया का
जज्बा ए गजल तुम बनाने लगे हो

मेरा इश्क ही मेरी इवादत मेरे मौला
रूह ए सजदे में लौ तुम जलाने लगे हो

है रौशन तुम ही से प्रतिभा का आलम
उल्फत ए बे खुदी तुम अब बताने लगे हो
…………. …………………… ………………………….

Language: Hindi
3 Likes · 1 Comment · 37 Views
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