होंठ
जलते हुए
कभी खुलते हुए
कभी मुस्कुरा कर
बोलते हुए होंठ।
देह ही नहीं
आत्मा के संग मिलकर
भींगकर कभी सूखकर
जीते हुए होंठ।
नयन के अक्षरों में
ढलकर कभी पलकर
भाषा हृदय की
गीत गाते हुए होंठ।
चाहत की रौशनी में
इन्तजार कर
प्रेम की फुहार से
गुलाबी होते हुए होंठ।
– डॉ. किशन टण्डन क्रान्ति
(दुनिया के ‘सर्वाधिक होनहार लेखक’ के रूप में विश्व रिकॉर्ड में दर्ज, भारत के 100 महान व्यक्तित्व में शामिल एक साधारण व्यक्ति)