है कौन वो
डॉ अरुण कुमार शास्त्री – एक अबोध बालक – अरुण अतृप्त
* है कौन वो *
तस्वीर में कुछ और सामने कुछ
अजब सा लब्बोलुआब था
उसके चेहरे पर
काम में मशगूल हो तो
वेदों की ऋचाओ सी
नीद में गाफिल हो तो
मासूमियत बच्चों सी
सखियों संग हो तो
चेह्चाहती चिड़िया सी
माँ पिता के सामने
अनमोल पुडिया सी
तस्वीर में कुछ और सामने कुछ
अजब सा लब्बोलुआब था
उसके चेहरे पर
कभी मजाक में कुछ कह
दो तो गोलगप्पा
कभी तारीफ में कुछ कह
दो महकता गुलदस्ता
और बात न करो
तो सवालों की पोटली
तस्वीर में कुछ और सामने कुछ
अजब सा लब्बोलुआब था
उसके चेहरे पर
मैं जन्म से साथ हूँ उसके अगल बगल
पर एक पहेली सी वो मासूम ग़ज़ल
न मैं समझ पाया कभी उसको
न खुली वो कभी कि
कोई पढ़ न ले उसको
कोई शंका हो तो
सुरमई तितली सी
मुंह में जैसे घुली हो मिश्री सी
और किसी बात को
न मानो तो रणचंडी
दहकता शोला सीधा -सीधा अंगीठी सी
तस्वीर में कुछ और सामने कुछ
अजब सा लब्बोलुआब था
उसके चेहरे पर
बहुत सोचा रिश्ता ही
तोड़ दूँ कई बार
बात भी बंद कर दी यही
सोच कर हर बार
गजब की कूटनीतिज्ञ है अरे
ऐसे जैसे साक्षात चाणक्य
निकाल दिये मेरे कस बल सब
रहने कहाँ दिया दूर इतनी है परिपक्व
तस्वीर में कुछ और सामने कुछ
अजब सा लब्बोलुआब था
उसके चेहरे पर
मैं जन्म से साथ हूँ उसके अगल बगल