हुनर का मोल
एक दिन शिकार की तलाश में राजकुमार विक्रम दूर जंगल में जा पहुँचा। वहाँ उसने एक खूबसूरत लड़की को देखा। उसे देखकर राजकुमार मोहित हो गए। उसके मन में उससे ब्याह रचाने की इच्छा हुई। वह उनके पीछे-पीछे चल पड़ा। उस सुन्दरी ने कुछ दूरी में स्थित कुटिया में प्रवेश किया। राजकुमार ने आगे बढ़कर कुटिया में आवाज लगाई। आवाज सुनकर एक बूढ़ा व्यक्ति बाहर आया और राजकुमार से आने का प्रयोजन पूछा। राजकुमार ने बताया कि वह रायगढ़ रियासत का राजकुमार विक्रम है और उस सुन्दरी से ब्याह रचाना चाहता है।
यह प्रस्ताव सुनकर उस बूढ़े व्यक्ति ने पूछा- राजकुमार होना तो ठीक है, मगर आप जानते क्या हो? कौन सा हुनर सीखा है आपने?
राजकुमार विक्रम सोच में पड़ गया। वह कोई जवाब न दे सका। उनका मौन देखकर उस बूढ़े व्यक्ति ने कहा- वह लड़की मेरी पुत्री है। उसकी शादी मैं उस व्यक्ति से करूंगा, जो जीने के लिए कुछ हुनर यानी काम जानता हो।
राजकुमार विक्रम उसी क्षण लौट गया। वह सोचने लगा कि जल्द से जल्द कौन सा हुनर सीखा जा सकता है? तभी उसकी नजर उस जंगल में बाँस की टोकरी बनाने वालों पर पड़ी। राजकुमार विक्रम जानकारी लेकर उस कार्य को सिखाने का अनुरोध करने लगा। वह उस कार्य को 15 दिवस में सीखकर उस वृद्ध के पास जाकर अपने हुनर का प्रदर्शन करने की इच्छा जताई।
अन्ततः उस बूढ़े व्यक्ति ने बताया कि वो भी सारंगगढ़ के राजा हैं। दुर्भाग्य से युद्ध में परास्त होकर इस जंगल में आ बसे हैं। कुछ मेरे शुभचिन्तक और विश्वसनीय सैनिक हमारी रक्षा में गुप्त रूप से तैनात हैं। सच तो यह है कि संकट के समय इंसान का पद नहीं, हुनर काम आता है। फिर उसने अपनी पुत्री राजकुमारी स्वर्णिमा का विवाह राजकुमार विक्रम से कर दिया।
मेरी प्रकाशित लघुकथा संग्रह :
‘मन की आँखें’ (दलहा, भाग-1) से,,,,
डॉ. किशन टण्डन क्रान्ति
साहित्य वाचस्पति
सुदीर्घ एवं अप्रतिम साहित्य सेवा के लिए
लाइफ टाइम अचीवमेंट अवार्ड प्राप्त
हरफनमौला साहित्य लेखक।