हाइकु रचना : कलात्मक और दर्शनात्मक अभिव्यक्ति
हाइकु विधा को जापान के कविश्रेष्ठ बोशो (1644–1694) ने एक काव्य विधा के रूप में स्थापित किया जिसे आजकल संसार की अनेक भाषाओँ ने अपना लिया है। हिंदी भाषा में हाइकु पिछले कई दशकों से लिखे जा रहे है पर पिछले तीन दशकों में हिंदी के अतिरिक्त भारत की अन्य भाषों में भी हाइकु लेखन में तेजी से उदयीकरण हुआ है।
भारत में हाइकु लेखन का इतिहास अधिक पुराना नहीं है। रवीन्द्रनाथ टैगोर ने सर्वप्रथम हमको हाइकु से परिचय कराया और डॉ. सत्यभूषण वर्मा* इस विधा के भारत में प्रणेता बने। भारत में हाइकुकारों की संख्या दिनों दिन बढ़ती जा रही है और इसका श्रेय हाइकु विधा के सहज पर कलात्मक और दर्शनात्मक अभिव्यक्ति को जाता है। अनुवादित हाइकु लेखन को अगर छोड़ दिया जाये तो भारत की कई भाषाओँ में हाइकु लिखे जा रहें हैं I सैंकड़ों हिंदी हाइकुकारों में ‘सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन “अज्ञेय” , प्रभाकर माचवे , श्री गोपाल दास नीरज , श्री कुवंर बैचैन , डॉ. भगवत शरण अग्रवाल, डॉ. जगदीश व्योम का नाम प्रमुख रूप से लिया जा सकता है।*
हाइकु जापानी भाषा की ऐसी काव्य विधा है जिसे कहावत के रूप में कहा जाये तो कहेंगे ‘ देखन में छोटे लगैं घाव करैं गम्भीर’ I इस काव्य विधा की यही विशेषता है कि पंक्तियों की क्रमश ५-७-५ वर्णो में बंधी मुक्तछंद सरीखी अतुकांत रचना पढ़ने और बनावट में जितनी सरल और सहज लगती है उतनी ही इसमें गहरी पैठ यानि अत्यंत ही सारगर्भित होती है।
हाइकू रचना
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हाइकू रचना का भाव , दृष्टान्त / बिम्ब अक्सर प्रकृति के आसपास केंद्रित होता है पर आधुनिक हाइकु यथार्थपूर्ण सामाजिक स्थितियों और जीवन सम्बन्धी मानवीय अनुभूतियों को भी केंद्रित कर के विकसित हो रहा है। तीन पंक्तियों की रचना अंग्रजी हाइकु में ५-७-५ स्वर वर्ण (vowels – a, e, i , o ,u ) के विशेष ढांचे पर आधारित हैं पर हिंदी हाइकु रचना में यह विशेष ढांचा ५-७-५ अक्षर/पूर्ण वर्ण पर आधारित है। मात्राओं की गणना नहीं की जाती ना ही अर्ध वर्ण की। यथा :-
पंक्ति एक :- ५ अक्षर
पंक्ति दो :- ७ अक्षर
पंक्ति तीन :- ५ अक्षर
जैसे :-
छिड़ा जो युद्ध (5)
रोयेगी मनुजता (7)
हसेंगे गिद्ध…… (5)………. डॉ. जगदीश व्योम *
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फूल सी पली (5)
ससुराल में बहू (7)
फूस सी जली…(5)……………कमलेश भट्ट ‘कमल’ *
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अर्ध वर्ण/ अक्षर की गणना नहीं की जाती। संयुक्त अक्षर को एक वर्ण के अंतर्गत लिया जाता है। जैसे स्व / स्त्री ( १ अक्षर ) , प्यासी / शक्ति (२ अक्षर) I वर्ण / अक्षर से मतलब पूर्ण वर्ण/ अक्षर से है।
हाइकू लेखन जितना सरल माना जाता है उतना है नहीं। हाइकु लेखन , लेखकों को न्यूनतम प्रयासों के साथ अधिकतम प्रभाव प्राप्त करने के लिए प्रोत्साहित करता है। एक प्रभावी हाइकु की पहचान उसकी प्रत्यक्षता और तुरंत्ता है, लेकिन किसी एक विचार की या भावना की गहराई को ( जो हमारे जीवन से /प्रकृति से /जनसाधारण से जुडी हों ) कुल १७ अक्षरों में कैसे व्यक्त किया जाता है इस का मंत्र हाइकु लेखन के निरंतर अभ्यास में छिपा है। हाइकु अनुभवात्मक है ना कि विश्लेषणात्मक। इसकी सारगर्भितता, सूक्ष्मता और विस्मयतिता एक हाइकु को श्रेष्ठतम की श्रेणी में ला कर खड़ा कर देती है। प्रस्तुति या कथन सीधी -सपाट होने की स्थान पर पाठक के ज्ञान को और प्रस्तुत बिम्ब को समझने की एक चुनौती देती प्रतीत होनी चाहिए और भाव की अभिव्यक्ति तीन पंक्तियों में ऐसे निहित हो जैसे भाव गागर में दर्शन का ,विचार का एक अथाह सागर हमारे सामने दृष्टिगत हो। ज़रूरी नहीं है कि हाइकु पाठक के एक हाइकु के भाव का विवेचन हाइकुकार की व्याख्या से मेल खाये। किसी एक विषय पर लिखित हाइकु की व्याख्या पाठक के विवेक और ज्ञान पर होती है। एक हाइकू विभिन्न पाठकों के लिए उसी विषय पर विभिन्न बिम्ब भी प्रस्तुत कर सकता है।
हाइकू जब भी विषय विशेष पर लिखा जाता है तो तीनो पंक्तियाँ सपाट बयानी ना करें। हर एक पंक्ति विभिन्न भाव /बिम्ब को तो प्रकट करे पर पहली दो पंक्तियों का बिम्ब आखरी पंक्ति के तुलनात्मक या विपरीत हो या प्रथम पंक्ति का बिम्ब आखरी दो पंक्तियों के तुलनात्मक या विपरीत हो तो हाइकु पाठक को एक रोमांच का, एक आकस्मिक दृष्टान्त का आभास हो जाता है।
उदाहरण स्वरूप हम निम्नलिखित हाइकु को लेते हैं।
उड़ते पंछी
स्वछंद सीमा पार
मनु बेचारा ………………….. त्रिभवन कौल*
देशों ने मानव जाती को सीमाओं में बाँट रखा है। एक दुसरे के देश में जाने के लिए पासपोर्ट की /वीसा की आवश्यकता पड़ती है पर पंछी सीमाओं को ना तो पहचानते ना ही उनके ऊपर किसी प्रकार की बंदिशें लागू हैं। इसहाइकु में प्रथम दो पंक्तियाँ आपस में सम्बंधित होते हुए भी स्वतंत्र भाव लिए हैं और पाठक के मानस में पंछियों के बिना किसी रोक टोक के सीमा पार करने का एक दृश्य प्रस्तुत करते हैं। इसके विपरीत तीसरी पंक्ति में पहली दो पंक्तियों के विपरीत ऐसा एक अस्कस्मिक बिम्ब की प्रस्तुति हैं जिसमे मनुष्य जाती एक दुसरे देश की सीमा को लांगने में असहाय दीखता है और जो उसकी लाचारी का बिम्ब पाठक के समक्ष प्रस्तुत करता है।
निम्नलिखितहाइकु में नारी की वेदना उजागर की गयी है।
स्त्री की त्रासदी
स्नेह की आलिंजर
प्रीत की प्यासी…………….. विभा रानी श्रीवास्तव*
नारी सम्मान के योग्य होते हुए भी हर स्तर पर उसे शोषण का शिकार होना पड़ता है यह एक दुखद संयोग है यद्धपि वह स्वयं स्नेह, प्रेम , अनुराग ,प्रणय का एक बहुत बड़ा कुम्भ है। जहाँ पहली दो पंक्तियाँ स्त्री के दो बिम्बों की उत्तम प्रस्तुति है वंही अकस्मात पाठक के मनस्थली पर एक प्रहार सा होता है जब उस कुम्भ में समाहित स्नेह, प्रेम , अनुराग ,प्रणय से स्वयं नारी को वंचित रखा जाता है I एक ज़बरदस्त कटाक्ष है नारी दशा पर।
संक्षेप में हाइकु लेखन निम्लिखित तत्वों पर आधारित होना चाहिए :-
१) हाइकु तीन पंक्तियों में कुल १७ अक्षरों की एक जापानी कविता है जिसमे पहली पंक्ति में ५ अक्षर हैं,दूसरी में ७ अक्षर हैं और तीसरी में फिर ५ अक्षर होते हैं।
२) हाइकु लेखन में एक एकल विशेष विषय, भावपूर्ण अनुभव या घटना पर अपना ध्यान केंद्रित करें I विचार के एक तुलनात्मक या विपरीत प्रस्तुति हो जिसमे हाइकु पढ़ते ही पाठक चौंक कर वाह वाह कहने को मजबूर हो जाए।
३) हाइकु में उपमा, अतिशयोक्ति ,रूपक , यमक आदि अलंकारों का प्रयोग नहीं होता।
४) किन्हीं दो या तीनों पंक्तियों के अंत में तुकांत मिल जाए तो हाइकु रचना में काव्य सौंदर्य का अनूठा बोध हो जाता है। यद्यपि जापानी या अंग्रेजी हाइकु विधा में पंक्तियों में तुकांत नहीं के बराबर है।
चंद हाइकु आप पाठकों के पठन के लिए :-
वह हैं अकेले
दूर खड़े हो कर
देखें जो मेले।………गोपाल दास नीरज *
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ज़मीन पर
बच्चों ने लिखा घर
रहे बेघर।………….. कुंवर बेचैन *
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भू शैय्या पे माँ
लॉकर खंगालते
बेटा बहुयें।……………………विभा रानी श्रीवास्तव*
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दोहन वृति
भूकंप बाढ़ वृष्टि
नग्न धरती।…………… त्रिभवन कौल *
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गुलमोहर
लाल स्याही से लिखा
ग्रीष्म का ख़त………….डॉ. शकुंतला तंवर #
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सावन माह
मखमली छुअन
हरित दूर्वा………………… डॉ. शकुंतला तंवर #
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*अभिस्वीकृति :- कुछ प्रामाणिक तथ्य और उदाहरण सुश्री विभा रानी श्रीवास्तव द्वारा संपादित ” साझा संग्रह शत हाइकुकार साल शताब्दी ” पुस्तक से लिए गए हैं।
# डॉ. शकुंतला तंवर द्वारा लिखित पुस्तक “मखमली छुअन” से उद्धरित I
त्रिभवन कौल
स्वतंत्र लेखक
सम्पर्क : kaultribhawan@gmail.com