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8 Feb 2025 · 25 min read

गीता के छन्द : मुख्य 4/5

गीता के छन्द
गीता में प्रयुक्त छन्दों की संख्या, इस लेखक के अध्ययन के अनुसार, 66 प्राप्त हुई है। यह संख्या अंतिम नहीं है। इसे और विस्तार दिया जा सकता है किन्तु उसका कोई लाक्षणिक आधार न होने के कारण यहाँ पर कोरे बुद्धि-विलास से बचना ही श्रेयस्कर माना गया है। जहाँ पर किसी श्लोक में किसी छन्द की मूल प्रकृति से विचलन हुआ है, वहाँ पर नव छन्द की सर्जना उचित प्रतीत होती है किन्तु जहाँ पर विचलन छन्द के लक्षण में ही विद्यमान है वहाँ पर नये छन्द की सर्जना का कोई औचित्य नहीं प्रतीत होता है।

वर्गीकरण
पूर्व विवेचना से स्पष्ट है कि गीता में कुल 700 श्लोक हैं जिनमें से 645 अनुष्टुप और 55 त्रिष्टुप वर्ग के छन्द हैं। 645 अनुष्टुप में से 505 पथ्यावक्त्र, 139 विपुला और 1 पूर्वा हैं। 139 विपुला में से 128 व्यक्तिपक्ष विपुला, 3 जातिपक्ष विपुला, 8 संकीर्ण विपुला हैं। 55 त्रिष्टुप में से 3 इंद्रवज्रा, 3 उपेंद्रवज्रा, 15 मुख्य उपजाति और 34 मिश्रित उपजाति हैं। यह वर्गीकरण अग्रांकित तालिका से और अधिक स्पष्ट हो जाता है-

गीता के छन्द
700

——————————————————–
। ।
अनुष्टुप त्रिष्टुप
645 55
। ।
——————————————————————- ।
। । । । । ।
पथ्यावक्त्र व्यक्तिपक्ष-विपुला जातिपक्ष-विपुला संकीर्ण-विपुला पूर्वा ।
505 128 3 8 1 ।

———————————————————————————
। । । ।
इंद्रवज्रा उपेंद्रवज्रा मुख्य उपजाति मिश्रितउपजाति
3 3 15 34

अथवा
गीता के छन्द 700 = अनुष्टुप 645 + त्रिष्टुप 55
प्रथम वर्ग :
द्वितीय वर्ग : त्रिष्टुप 55 = इंद्रवज्रा 3 + उपेंद्रवज्रा 3 + मुख्य उपजाति 15 + मिश्रित उपजाति 34

अनुष्टुप
इस वर्ग के अंतर्गत ऐसे वर्णिक छन्द आते हैं जिनमें 8-8 वर्णों के चार चरण होते हैं। ये दो प्रकार के है- मापनीयुक्त और मापनीमुक्त। मापनीयुक्त अनुष्टुप वे हैं जिनके प्रत्येक चरण के प्रत्येक वर्ण का मात्राभार सुनिश्चित होता है, इनकी संख्या 256 है। मापनीमुक्त अनुष्टुप वे हैं जिनके प्रत्येक चरण में वर्णों की संख्या ग्यारह/आठ निश्चित होती है किन्तु वर्णों के मात्राभार अनिश्चित होते हैं, इनकी संख्या असीमित है। गीता में प्रयुक्त अनुष्टुप मापनीमुक्त हैं, जिनकी संख्या 645 है। संक्षेप में इन्हें निम्न प्रकार वर्गीकृत किया जा सकता है-
अनुष्टुप 645 = पथ्यावक्त्र 505 + व्यक्तिपक्ष विपुला 128 + जातिपक्ष विपुला 3 + संकीर्ण विपुला 8 + पूर्वा 1

(1) पथ्यावक्त्र : कुल छन्द 505
आठ-आठ वर्णों के चार चरणों वाले उस अनुष्टुप छन्द को पथ्यावक्त्र कहते है, जिसके विषम चरणों में चार वर्णों के बाद लगागा/यगण एवं सम चरणों में चार वर्णों के बाद लगाल/जगण अनिवार्य हो तथा जिसके प्रत्येक चरण में एक वर्ण के बाद ललल/नगण और ललगा/सगण एवं सम चरणों में एक वर्ण के बाद गालगा/रगण वर्जित हो।
गीता में पथ्यावक्त्र छन्दों की कुल संख्या 505 है जिनका सन्दर्भ निम्नलिखित प्रकार है-
सन्दर्भ: 1.1-4, 1.6-8, 1.10-24, 1.26-32, 1.34-42, 1.44-47, (42) 2.1, 2.3-4, 2.9-11, 2.13-19, 2.21, 2.23-25, 2.27-28, 2.30, 2.34, 2.37-42, 2.44-45, 2.47-51, 2.53-55, 2.57-60, 2.62, 2.64-66, 2.68-69, 2-72, (48) 3.2-4, 3.6, 3.9-10, 3.12-18, 3.20, 3.22-25, 3.27-34, 3.36, 3.38-43, (33) 4.1, 4.3-5, 4.7-9, 4.11-12, 4.14-23, 4.25-29, 4.32-37, 4.39, 4.41-42, (33) 5.1-12, 5.14-21, 5.23-28, (26) 6.2-9, 6.12-13, 6.16-24, 6.28-35, 6.37-41, 6.43-47, (37) 7.1-5, 7.7-10, 7.12-13, 7.15-16, 7.18, 7.20-24, 7.26-29, (23) 8.1, 8.4-8, 8.12-13, 8.15-23, 8.25-26, (19) 9.4-9, 9.11-12, 9.14-16, 9.18-19, 9.22-25, 9.27-34, (25) 10.1, 10.3-4, 10.9-24, 10.27-31, 10.33-42, (34) 11.2-9, 11.12-14, 11.51-52, 11.54, (14) 12.1-8, 12.10-18, (17) 13.2-16, 13.19, 13.21-22, 13.24-30, 13.32-34, (28) 14.1-4, 14.7-8, 14.11-14, 14.16, 14.18, 14.20-27, (20) 15.1, 15.6, 15.8, 15.10-14, 15.16-17, (10) 16.1-5, 16.7-9, 16.12, 16.14-18, 16.20-21, 16.23-24, (18) 17.1-2, 17.4-9, 17.13-15, 17.17-18, 17.20-21, 17.23-24, 17.27-28, (19)18.1-11, 18.14-22, 18.24-25, 18.27-31, 18.34-35, 18.39-40, 18.42-44, 18.48, 18.50-51, 18.53-55, 18.57-63, 18.65-69, 18.71-74, 18.76-78, (59)। ध्यातव्य है कि कोष्ठक में सम्बंधित अध्याय के श्लोकों की संख्या दी हुई है।

उदाहरण- 1 :
लगागा लगाल
धर्मक्षेत्रे (कुरुक्षे)त्रे / समवेता (युयुत्स)वः।
लगागा लगाल
मामकाः पाण्(डवाश्चै)व / किमकुर्व(त संज)य। 1.1

उदाहरण- 2 :
लगागा लगाल
यत्र योगे(श्वरः कृष्)णो / यत्र पार्थो (धनुर्ध)रः।
लगागा लगाल
तत्र श्रीर्वि(जयो भू)तिर् / ध्रुवा नीतिर्(मतिर्म)म। 18.78

====================================================
व्यक्तिपक्ष विपुला : कुल छन्द 128
जब किसी पथ्यावक्त्र अनुष्टुप के पहले और तीसरे में से किसी एक चरण में चार वर्णों के बाद लगागा/यगण के स्थान पर कोई अन्य गण आता है तो उस छन्द को व्यक्तिपक्ष विपुला कहते हैं। गीता के व्यक्तिपक्ष विपुला के अंतर्गत निम्लिखित भेद (2) से … तक आते हैं।

(2) म-विपुला-1 : कुल छन्द 12
जब किसी पथ्यावक्त्र अनुष्टुप के पहले चरण में चार वर्णों के बाद लगागा/यगण के स्थान पर गागागा/मगण आता है तो उस छन्द को म-विपुला-1 कहते हैं। इस नाम में ‘म’ मगण को व्यक्त करता है और ‘1’ उस चरण को व्यक्त करता है जिसमें यह गण आया है। इसी प्रकार आगे आने वाले नामों को समझा जा सकता है।
गीता में म-विपुला-1 छन्दों की कुल संख्या 12 है जिनका सन्दर्भ निम्नलिखित प्रकार है-
सन्दर्भ : 2.71, 7.25, 10.7, 13.1, 14.19, 16.6, 16.22, 17.16, 17.22, 18.12, 18.46, 18.52

उदाहरण :
गागागा लगाल
विहाय का(मान्यः सर्)वान् / पुमांश्चर(ति निःस्पृ)हः।
लगागा लगाल
निर्ममो नि(रहंका)रः / स शान्तिम(धिगच्छ)ति । 2.71

(3) म-विपुला-3 : कुल छन्द 11
जब किसी पथ्यावक्त्र अनुष्टुप के तीसरे चरण में चार वर्णों के बाद लगागा/यगण के स्थान पर गागागा/मगण आता है तो उस छन्द को म-विपुला-3 कहते हैं।
गीता में म-विपुला-3 छन्दों की कुल संख्या 10 है जिनका सन्दर्भ निम्नलिखित प्रकार है-
सन्दर्भ : 2.31, 2.33, 5.22, 7.11, 8.24, 10.5, 10.32, 13.18, 15.18, 16.10, 18.13

उदाहरण- 1 :
लगागा लगाल
स्वधर्मम(पि चावे)क्ष्य / न विकम्पि(तुमर्ह)सि।
गागागा लगाल
धर्म्याद्धि युद्(धाच्छ्रेयोऽ)न्यत्/क्षत्रियस्य (न विद्य)ते। 2.31

उदाहरण- 2 :
लगागा लगाल
अथ चेत्त्व(मिमं धर्)म्यं / संग्रामं न (करिष्य)सि।
गागागा लगाल
ततः स्वधर्(मं कीर्तिं) च / हित्वा पाप(मवाप्स्य)सि। 2.33

(4) र-विपुला-1 : कुल छन्द 17
जब किसी पथ्यावक्त्र अनुष्टुप के पहले चरण में चार वर्णों के बाद लगागा/यगण के स्थान पर गालगा/रगण आता है तो उस छन्द को र-विपुला-1 कहते हैं।
गीता में र-विपुला-1 छन्दों की कुल संख्या 17 है जिनका सन्दर्भ निम्नलिखित प्रकार है-
सन्दर्भ : 1.5, 1.33, 2.12, 2.26, 2.32, 3.1, 3.37, 4.6, 7.17, 8.27, 9.2, 10.6, 13.31, 14.6, 14.10, 15.9, 17.19,

उदाहरण :
गालगा लगाल
धृष्टकेतुश्(चेकिता)नः / काशिराजश्(च वीर्य)वान्।
लगागा लगाल
पुरुजित्कुन्(तिभोजश्)च / शैब्यश्च न(रपुङ्ग)वः। 1.5

(5) र-विपुला-3 : कुल छन्द 8
जब किसी पथ्यावक्त्र अनुष्टुप के तीसरे चरण में चार वर्णों के बाद लगागा/यगण के स्थान पर गालगा/रगण आता है तो उस छन्द को र-विपुला-3 कहते हैं।
गीता में र-विपुला-3 छन्दों की कुल संख्या 8 है जिनका सन्दर्भ निम्नलिखित प्रकार है-
सन्दर्भ : 1.43, 2.61, 2.63, 3.11, 6.11, 13.17, 15.20, 18.26,

उदाहरण :
लगागा लगाल
दोषैरेतैः (कुलघ्ना)नां / वर्णसंक(रकार)कैः।
गालगा लगाल
उत्साद्यन्ते (जातिधर्)माः / कुलधर्माश्(च शाश्व)ताः। 1.43

(6) भ-विपुला-1 : कुल छन्द 17
जब किसी पथ्यावक्त्र अनुष्टुप के पहले चरण में चार वर्णों के बाद लगागा/यगण के स्थान पर गालल/भगण आता है तो उस छन्द को भ-विपुला-1 कहते हैं।
गीता में भ-विपुला-1 छन्दों की कुल संख्या 17 है जिनका सन्दर्भ निम्नलिखित प्रकार है-
सन्दर्भ : 2.36, 2.56, 3.19, 3.26, 3.35, 4.24, 6.1, 6.26, 8.14, 9.3, 9.10, 10.8, 11.55, 18.33, 18.36, 18.47, 18.75 (श्लोक 11.1 को अगले क्रमांक पर भुरिक् के अंतर्गत देखें)।

उदाहरण :
गालल लगाल
अवाच्यवा(दांश्च ब)हून् / वदिष्यन्ति (तवाहि)ताः।
लगागा लगाल
निन्दन्तस्त(व सामर्)थ्यं / ततो दुःख(तरं नु) किम्। 2.36

(7) भ-विपुला-1(भुरिक्) : कुल छन्द 1
यह नाम इस लेखक द्वारा दिया गया है। जब किसी पथ्यावक्त्र अनुष्टुप के पहले चरण में चार वर्णों के बाद लगागा/यगण के स्थान पर गालल/भगण आता है तथा उसके पहले चरण में वर्णों की संख्या सामान्य से अधिक 9 है तो उस छन्द को भ-विपुला-1(भुरिक्) कहते हैं।
गीता में भ-विपुला-1(भुरिक्) छन्दों की कुल संख्या 1 है जिसका सन्दर्भ निम्नलिखित प्रकार है-
सन्दर्भ : 11.1

उदाहरण :
गालल
मदनुग्र(हाय प)रमं (9 वर्ण, बृहती)
लगाल
गुह्यमध्यात्(मसंज्ञि)तम्। (8 वर्ण, अनुष्टुप)
लगागा
यत्त्वयोक्तं (वचस्ते)न, (8 वर्ण, अनुष्टुप)
लगाल
मोहोऽयं वि(गतो म)म। (8 वर्ण, अनुष्टुप)
(गीता 11.1)

(8) भ-विपुला-3 : कुल छन्द 11
जब किसी पथ्यावक्त्र अनुष्टुप के तीसरे चरण में चार वर्णों के बाद लगागा/यगण के स्थान पर गालल/भगण आता है तो उस छन्द को भ-विपुला-3 कहते हैं।
गीता में भ-विपुला-3 छन्दों की कुल संख्या 11 है जिनका सन्दर्भ निम्नलिखित प्रकार है-
सन्दर्भ : 3.8, 3.21, 4.30, 7.19, 7.30, 8.2, 10.26, 12.9, 14.15, 14.17, 17.11

उदाहरण :
लगागा लगाल
नियतं कु(रु कर्म^) त्वं / कर्म ज्यायो (ह्यकर्म)णः।
गालल लगाल
शरीरया(त्रापि च) ते / न प्रसिद्ध्ये(दकर्म)णः। 3.8

(9) न-विपुला-1 : कुल छन्द 29
जब किसी पथ्यावक्त्र अनुष्टुप के पहले चरण में चार वर्णों के बाद लगागा/यगण के स्थान पर ललल/नगण आता है तो उस छन्द को न-विपुला-1 कहते हैं।
गीता में न-विपुला-1 छन्दों की कुल संख्या 29 है जिनका सन्दर्भ निम्नलिखित प्रकार है-
सन्दर्भ : 1.25, 2.2, 2.52, 2.67, 3.5, 4.31, 4.38, 5.13, 5.29, 6.10, 6.14, 6.25, 7.14, 9.17, 10.2, 10.25, 11.11, 11.53, 13.23, 14.5, 17.10, 17.12, 18.23, 18.32, 18.37, 18,41, 18.45, 18.56, 18.70

उदाहरण :
ललल लगाल
भीष्मद्रोण^(प्रमुख)तः / सर्वेषां च (महीक्षि)ताम्।
लगागा लगाल
उवाच पार्(थ पश्यै)तान् / समवेतान् (कुरूनि)ति। 1.25

(10) न-विपुला-3 : कुल छन्द 21
जब किसी पथ्यावक्त्र अनुष्टुप के तीसरे चरण में चार वर्णों के बाद लगागा/यगण के स्थान पर ललल/नगण आता है तो उस छन्द को न-विपुला-3 कहते हैं।
गीता में न-विपुला-3 छन्दों की कुल संख्या 21 है जिनका सन्दर्भ निम्नलिखित प्रकार है-
सन्दर्भ : 1.9, 4.2, 4.10, 4.13, 4.40, 6.15, 6.27, 6.36, 6.42, 7.6, 9.13, 9.26, 12.19, 15.19, 16.11, 16.13, 16.19, 17.25, 17.26, 18.38, 18.64

उदाहरण :
लगागा लगाल
अन्ये च ब(हवः शू)रा / मदर्थे त्यक्(तजीवि)ताः।
ललल लगाल
नानाशस्त्र^(प्रहर)णाः / सर्वे युद्ध(विशार)दाः। 1.9

(11) स-विपुला-1 : कुल छन्द 1
जब किसी पथ्यावक्त्र अनुष्टुप के पहले चरण में चार वर्णों के बाद लगागा/यगण के स्थान पर ललगा/सगण आता है तो उस छन्द को स-विपुला-1 कहते हैं।
गीता में स-विपुला-1 छन्दों की कुल संख्या 1 है जिनका सन्दर्भ निम्नलिखित प्रकार है-
सन्दर्भ : 2.46

उदाहरण :
ललगा लगाल
यावानर्थ (उदपा)ने / सर्वतः सं(प्लुतोद)के।
लगागा लगाल
तावान्सर्वे(षु वेदे)षु / ब्राह्मणस्य (विजान)तः। 2.46

ध्यातव्य : गीता में त-विपुला-1, त-विपुला-3, ज-विपुला-1, ज-विपुला-3 और स-विपुला-3 का कोई उदाहरण नहीं है।
====================================================
जातिपक्ष विपुला : कुल छन्द 3
जब किसी पथ्यावक्त्र अनुष्टुप के पहले और तीसरे चरणों में चार वर्णों के बाद लगागा/यगण के स्थान पर समान गण आता है तो उस छन्द को जातिपक्ष विपुला कहते हैं। गीता में जातिपक्ष विपुला के अंतर्गत निम्लिखित 2 भेद 12 से 13 तक आते हैं।

(12) नन-विपुला : कुल छन्द 2
जब किसी पथ्यावक्त्र अनुष्टुप के पहले और तीसरे चरणों में चार वर्णों के बाद लगागा/यगण के स्थान पर समान गण ललल/नगण आता है तो उस छन्द को नन-विपुला कहते हैं।
गीता में नन-विपुला छन्दों की कुल संख्या 2 है जिनका सन्दर्भ निम्नलिखित प्रकार है-
सन्दर्भ : 2.35, 8.3

उदाहरण :
ललल लगाल
भयाद्रणा(दुपर)तं / मंस्यन्ते त्वां (महार)थाः।
ललल (लगाल)
येषां च त्वं (बहुम)तो / भूत्वा यास्य(सि लाघ)वम्। 2.35

ललल लगाल
अक्षरं ब्र^(ह्म पर)मं / स्वभावोऽध्यात्(ममुच्य)ते।
ललल लगाल
भूतभावोद्(भवक)रो / विसर्गः कर्(मसंज्ञि)तः। 8.3

(13) रर-विपुला : कुल छन्द 1 15.7
जब किसी पथ्यावक्त्र अनुष्टुप के पहले और तीसरे चरणों में चार वर्णों के बाद लगागा/यगण के स्थान पर समान गण गालगा/रगण आता है तो उस छन्द को रर-विपुला कहते हैं।
गीता में रर-विपुला छन्दों की कुल संख्या 1 है जिसका सन्दर्भ निम्नलिखित प्रकार है-
सन्दर्भ : 15.7

उदाहरण :
गालगा लगाल
ममैवांशो (जीवलो)के / जीवभूतः (सनात)नः।
गालगा लगाल
मनःषष्ठा(नीन्द्रिया)णि / प्रकृतिस्था(नि कर्ष)ति। 15.7

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संकीर्ण विपुला : कुल छन्द 8
जब किसी पथ्यावक्त्र अनुष्टुप के पहले और तीसरे चरणों में चार वर्णों के बाद लगागा/यगण के स्थान पर भिन्न-भिन्न गण आते हैं तो उस छन्द को संकीर्ण विपुला कहते हैं। गीता में संकीर्ण विपुला के अंतर्गत निम्लिखित 4 भेद 14 से 17 तक आते हैं।

(14) भन-विपुला : कुल छन्द 3
जब किसी पथ्यावक्त्र अनुष्टुप के पहले और तीसरे चरणों में चार वर्णों के बाद लगागा/यगण के स्थान पर क्रमशः गालल/भगण और ललल/नगण आते हैं तो उस छन्द को भन-विपुला कहते हैं।
गीता में भन-विपुला छन्दों की कुल संख्या 3 है जिनका सन्दर्भ निम्नलिखित प्रकार है-
सन्दर्भ : 2.43, 9.1, 14.9

उदाहरण :
गालल लगाल
कामात्मानः (स्वर्गप)रा / जन्मकर्म(फलप्र)दाम्।
ललल लगाल
क्रियाविशे(षबहु)लां / भोगैश्वर्य(गतिं प्र)ति। 2.43

गालल लगाल
इदं तु ते (गुह्यत)मं / प्रवक्ष्याम्य(नसूय)वे।
ललल लगाल
ज्ञानं विज्ञा(नसहि)तं / यज्ज्ञात्वा मो(क्ष्यसेऽशु)भात्। 9.1

गालल लगाल
सत्त्वं सुखे (संजय)ति / रजः कर्म(णि भार)त।
ललल लगाल
ज्ञानमावृ^(त्य तु त)मः / प्रमादे सं(जयत्यु)त। 14.9

(15) नर-विपुला : कुल छन्द 1
जब किसी पथ्यावक्त्र अनुष्टुप के पहले और तीसरे चरणों में चार वर्णों के बाद लगागा/यगण के स्थान पर क्रमशः ललल/नगण और गालगा/रगण आते हैं तो उस छन्द को नर-विपुला कहते हैं।
गीता में नर-विपुला छन्दों की कुल संख्या 1 है जिसका सन्दर्भ निम्नलिखित प्रकार है-
सन्दर्भ : 3.7

उदाहरण :
ललल लगाल
यस्त्विन्द्रिया(णि मन)सा / नियम्यार(भतेऽर्जु)न।
गालगा लगाल
कर्मेन्द्रियैः (कर्मयो)ग/मसक्तः स (विशिष्य)ते। 3.7

(16) नभ-विपुला : कुल छन्द 2
जब किसी पथ्यावक्त्र अनुष्टुप के पहले और तीसरे चरणों में चार वर्णों के बाद लगागा/यगण के स्थान पर क्रमशः ललल/नगण और गालल/भगण आते हैं तो उस छन्द को नभ-विपुला कहते हैं।
गीता में नभ-विपुला छन्दों की कुल संख्या 1 है जिसका सन्दर्भ निम्नलिखित प्रकार है-
सन्दर्भ : 11.10, 12.20

उदाहरण :
ललल लगाल
अनेकवक्(त्रनय)न/मनेकाद्भु(तदर्श)नम्।
गालल लगाल
अनेकदि^(व्याभर)णं / दिव्यानेको(द्यतायु)धम्। 11.10

ललल लगाल
ये तु धर्म्या(मृतमि)दं / यथोक्तं पर्(युपास)ते।
गालल लगाल
श्रद्दधाना (मत्पर)मा / भक्तास्तेऽती(व मे प्रि)याः। 12.20

(17) मभ-विपुला : कुल छन्द 2
जब किसी पथ्यावक्त्र अनुष्टुप के पहले और तीसरे चरणों में चार वर्णों के बाद लगागा/यगण के स्थान पर क्रमशः गागागा/मगण और गालल/भगण आते हैं तो उस छन्द को मभ-विपुला कहते हैं।
गीता में मभ-विपुला छन्दों की कुल संख्या 2 है जिसका सन्दर्भ निम्नलिखित प्रकार है-
सन्दर्भ : 17.3, 18.49

उदाहरण :
गागागा लगाल
सत्त्वानुरू(पा सर्वस्)य / श्रद्धा भव(ति भार)त।
गालल लगाल
श्रद्धामयोऽ(यं पुरु)षो / यो यच्छ्रद्धः (स एव) सः। 17.3

गागागा लगाल
असक्तबुद्(धिः सर्वत्)र / जितात्मा वि(गतस्पृ)हः।
गालल लगाल
नैष्कर्म्यसिद्(धिं पर)मां / संन्यासेना(धिगच्छ)ति। 18.49
====================================================
पूर्वा : कुल छन्द 1
जिस पथ्यावक्त्र के किसी चरण में प्रथमाक्षर के बाद वर्जित ललल/नगण या ललगा/सगण आता है अथवा सम चरण में प्रथमाक्षर के बाद वर्जित गालगा/रगण आता है उसे पूर्वा अनुष्टुप कहते हैं। गीता में इस प्रकार का केवल एक छन्द है।

(18) न-पूर्वा-1 : कुल छन्द 1
जिस पथ्यावक्त्र के प्रथम चरण में प्रथमाक्षर के बाद वर्जित ललल/नगण आता है उसे न-पूर्वा-1 कहते हैं।
गीता में न-पूर्वा-1 छन्दों की कुल संख्या 1 है जिसका सन्दर्भ निम्नलिखित प्रकार है-
सन्दर्भ : 13.20

उदाहरण :
ललल
कार्(यकर)णकर्तृत्वे हेतुः प्रकृतिरुच्यते।
पुरुषः सुखदुःखानां भोक्तृत्वे हेतुरुच्यते।13.20

====================================================
त्रिष्टुप 55 = इंद्रवज्रा 3 + उपेंद्रवज्रा 3 + मुख्य उपजाति 15 + मिश्रित उपजाति 34
====================================================
त्रिष्टुप
इस वर्ग के अंतर्गत ऐसे वर्णिक छन्द आते हैं जिनमें 11-11 वर्णों के चार चरण होते हैं। ये दो प्रकार के है- मापनीयुक्त और मापनीमुक्त। मापनीयुक्त त्रिष्टुप वे हैं जिनके प्रत्येक चरण के प्रत्येक वर्ण का मात्राभार सुनिश्चित होता है, इनकी संख्या 2048 है। मापनीमुक्त त्रिष्टुप वे हैं जिनके प्रत्येक चरण में वर्णों की संख्या ग्यारह निश्चित होती है किन्तु वर्णों के मात्राभार अनिश्चित होते हैं, इनकी संख्या असीमित है। गीता में प्रयुक्त त्रिष्टुप मापनीयुक्त हैं, जिनकी संख्या 55 है। इनमें से मुख्य इंद्रवज्रा के 3 और उपेन्द्रवज्रा के 3 श्लोक हैं। इन दोनों के आपसी सम्मिश्रण से 14 प्रकार के मुख्य उपजाति बनाते हैं जिनमें से 12 प्रकार गीता में उपस्थित हैं। इनमें निबद्ध कुल 15 श्लोक गीता में हैं। इंद्रवज्रा और उपेंद्रवज्रा के साथ-साथ कुछ अन्य छन्दों के सम्मिश्रण से बनाने वाले छन्दों को मिश्रित उपजाति कहते हैं, इनमें निबद्ध 34 श्लोक गीता में हैं। इस प्रकार संक्षेप में ये संख्याएँ निम्नलिखित प्रकार हैं-
त्रिष्टुप 55 = इंद्रवज्रा 3 + उपेंद्रवज्रा 3 + मुख्य उपजाति 15 + मिश्रित उपजाति 34

(19) इंद्रवज्रा : कुल छन्द 3
ग्यारह-ग्यारह वर्णों के चार चरणों वाले उस त्रिष्टुप छन्द को इंद्रवज्रा कहते है, जिसकी वर्णिक मापनी निम्नलिखित प्रकार होती है-
गागाल गागाल लगाल गागा।
गीता में इंद्रवज्रा छन्दों की कुल संख्या 3 है जिनका सन्दर्भ निम्नलिखित प्रकार है-
सन्दर्भ : 8.28, 15.5, 15.15

उदाहरण :
गागाल गागाल लगाल गागा
वेदेषु/ यज्ञेषु/ तपःसु/ चैव^ (इंद्रवज्रा)
गागाल गागाल लगाल गागा
दानेषु/ यत् पुण्य/फलं प्र/दिष्टम्। (इंद्रवज्रा)
गागाल गागाल लगाल गागा
अत्येति/ तत्सर्व/मिदं वि/दित्वा (इंद्रवज्रा)
गागाल गागाल लगाल गागा
योगी प/रं स्थान/मुपैति/ चाद्यम्। (इंद्रवज्रा)
(गीता 8.28)

दृष्टव्य :
इंद्रवज्रा तौ ज् गौ ग्।
(आचार्य पिंगल नाग कृत छन्दःसूत्रम्)

(20) उपेन्द्रवज्रा : कुल छन्द 3
ग्यारह-ग्यारह वर्णों के चार चरणों वाले उस त्रिष्टुप छन्द को उपेन्द्रवज्रा कहते है, जिसकी वर्णिक मापनी निम्नलिखित प्रकार होती है-
लगाल गागाल लगाल गागा।
गीता में उपेन्द्रवज्रा छन्दों की कुल संख्या 3 है जिनका सन्दर्भ निम्नलिखित प्रकार है-
सन्दर्भ : 11.28, 11.29, 11.45

उदाहरण :
लगाल गागाल लगाल गागा
यथा न/दीनां ब/हवोऽम्बु/वेगाः (उपेन्द्रवज्रा)
लगाल गागाल लगाल गागा
समुद्र/मेवाभि/मुखा द्र/वन्ति^। (उपेन्द्रवज्रा)
लगाल गागाल लगाल गागा
तथा त/वामी न/रलोक/वीरा (उपेन्द्रवज्रा)
लगाल गागाल लगाल गागा
विशन्ति/ वक्त्राण्य/भिविज्व/लन्ति^। (उपेन्द्रवज्रा)
(गीता 11.28)

दृष्टव्य :
उपेंद्रवज्रा ज् तौ ज् गौ ग्।
(आचार्य पिंगल नाग कृत छन्दःसूत्रम्)

मुख्य उपजाति : कुल छन्द 15
ग्यारह-ग्यारह वर्णों के चार चरणों वाले उस त्रिष्टुप छन्द को मुख्य उपजाति कहते है, जिसके चरणों में उपेंद्रवज्रा और इंद्रवज्रा का सम्मिश्रण होता है।
गीता में इन छन्दों की कुल संख्या 15 है जिनका सन्दर्भ निम्नलिखित प्रकार है-
सन्दर्भ : 2.8, 2.22, 11.15, 11.19, 11.24, 11.25, 11.34, 11.36, 11.38, 11.39, 11.40, 11.42, 11.43, 11.44, 11.47
12 मुख्य उपजाति के 15 छन्द अग्रलिखित प्रकार हैं-

(21) उइइइ (कीर्ति) : कुल छन्द 1
ग्यारह-ग्यारह वर्णों के चार चरणों वाले उस त्रिष्टुप छन्द को उइइइ (कीर्ति) कहते है,
जिसके चार चरण क्रमशः उपेंद्रवज्रा, इंद्रवज्रा, इंद्रवज्रा और इंद्रवज्रा के होते हैं।
इस छन्द नाम में प्रयुक्त छन्दों के प्रथमाक्षरों को मिलाने से सूत्र-नाम ‘उइइइ’ बना है तथा कोष्ठक में दिया गया नाम ‘कीर्ति’ पारंपरिक है, इसी प्रकार आगे के छन्दों के नामों को समझना चाहिए।
गीता में उइइइ (कीर्ति) छन्दों की कुल संख्या 1 है जिसका सन्दर्भ निम्नलिखित प्रकार है-
सन्दर्भ : 11.47

उदाहरण :
लगाल गागाल लगाल गागा
मया प्र/सन्नेन/ तवार्जु/नेदं (उपेन्द्रवज्रा)
गागाल गागाल लगाल गागा
रूपं प/रं दर्शि/तमात्म/योगात्। (इंद्रवज्रा)
गागाल गागाल लगाल गागा
तेजोम/यं विश्व/मनन्त/माद्यं (इंद्रवज्रा)
गागाल गागाल लगाल गागा
यन्मे त्व/दन्येन/ न दृष्ट/पूर्वम्। (इंद्रवज्रा)
(गीता 11.47)

(22) इउइइ (वाणी) : कुल छन्द 2
ग्यारह-ग्यारह वर्णों के चार चरणों वाले उस त्रिष्टुप छन्द को इउइइ (वाणी) कहते है,
जिसके चार चरण क्रमशः इंद्रवज्रा, उपेंद्रवज्रा, इंद्रवज्रा और इंद्रवज्रा के होते हैं।
गीता में इउइइ (वाणी) छन्दों की कुल संख्या 2 है जिनका सन्दर्भ निम्नलिखित प्रकार है-
सन्दर्भ : 11.36, 11.42

उदाहरण :
गागाल गागाल लगाल गागा
स्थाने हृ/षीकेश/ तव^ प्र/कीर्त्या (इंद्रवज्रा)
लगाल गागाल लगाल गागा
जगत्प्र/हृष्यत्य/नुरज्य/ते च^। (उपेन्द्रवज्रा)
गागाल गागाल लगाल गागा
रक्षांसि/ भीतानि/ दिशो द्र/वन्ति^ (इंद्रवज्रा)
गागाल गागाल लगाल गागा
सर्वे न/मस्यन्ति/ च सिद्ध/संघाः। (इंद्रवज्रा)
(गीता 11.36)

(23) इइउइ (शाला) : कुल छन्द 1
ग्यारह-ग्यारह वर्णों के चार चरणों वाले उस त्रिष्टुप छन्द को इइउइ (शाला) कहते है,
जिसके चार चरण क्रमशः इंद्रवज्रा, इंद्रवज्रा, उपेंद्रवज्रा और इंद्रवज्रा के होते हैं।
गीता में इइउइ (शाला) छन्दों की कुल संख्या 1 है जिसका सन्दर्भ निम्नलिखित प्रकार है-
सन्दर्भ : 11.34

उदाहरण :
गागाल गागाल लगाल गागा
द्रोणं च भीष्मं च जयद्रथं च (इंद्रवज्रा)
गागाल गागाल लगाल गागा
कर्णं तथान्यानपि योधवीरान्। (इंद्रवज्रा)
लगाल गागाल लगाल गागा
मया हतांस्त्वं जहि मा व्यथिष्ठा (उपेन्द्रवज्रा)
गागाल गागाल लगाल गागा
युध्यस्व जेतासि रणे सपत्नान्। (इंद्रवज्रा)
(गीता 11.34)

(24) इइइउ (बाला) : कुल छन्द 1
ग्यारह-ग्यारह वर्णों के चार चरणों वाले उस त्रिष्टुप छन्द को इइइउ (बाला) कहते है,
जिसके चार चरण क्रमशः इंद्रवज्रा, इंद्रवज्रा, इंद्रवज्रा और उपेंद्रवज्रा के होते हैं।
गीता में इइइउ (बाला) छन्दों की कुल संख्या 1 है जिसका सन्दर्भ निम्नलिखित प्रकार है-
सन्दर्भ : 11.15

उदाहरण :
गागाल गागाल लगाल गागा
पश्यामि/ देवांस्त/व देव/ देहे (इंद्रवज्रा)
गागाल गागाल लगाल गागा
सर्वांस्त/था भूत/विशेष/संघान्। (इंद्रवज्रा)
गागाल गागाल लगाल गागा
ब्रह्माण/मीशं क/मलास/नस्थ^- (इंद्रवज्रा)
लगाल गागाल लगाल गागा
मृषींश्च/ सर्वानु/रगांश्च/ दिव्यान्। (उपेन्द्रवज्रा)
(गीता 11.15)

(25) इउउउ (सिद्धि) : कुल छन्द 2
ग्यारह-ग्यारह वर्णों के चार चरणों वाले उस त्रिष्टुप छन्द को इउउउ (सिद्धि) कहते है,
जिसके चार चरण क्रमशः इंद्रवज्रा, उपेंद्रवज्रा, उपेंद्रवज्रा और उपेंद्रवज्रा के होते हैं।
गीता में इउउउ (सिद्धि) छन्दों की कुल संख्या 2 है जिनका सन्दर्भ निम्नलिखित प्रकार है-
सन्दर्भ : 11.39, 11.44

उदाहरण :
गागाल गागाल लगाल गागा
वायुर्य/मोऽग्निर्व/रुणः श/शाङ्कः (इंद्रवज्रा)
लगाल गागाल लगाल गागा
प्रजाप/तिस्त्वं प्र/पिताम/हश्च^। (उपेन्द्रवज्रा)
लगाल गागाल लगाल गागा
नमो न/मस्तेऽस्तु/ सहस्र/कृत्वः (उपेन्द्रवज्रा)
लगाल गागाल लगाल गागा
पुनश्च/ भूयोऽपि/ नमो न/मस्ते। (उपेन्द्रवज्रा)
(गीता 11.39)

(26) उउइउ (प्रेमा) : कुल छन्द 2
ग्यारह-ग्यारह वर्णों के चार चरणों वाले उस त्रिष्टुप छन्द को उउइउ (प्रेमा) कहते है,
जिसके चार चरण क्रमशः उपेंद्रवज्रा, उपेंद्रवज्रा, इंद्रवज्रा और उपेंद्रवज्रा के होते हैं।
गीता में उउइउ (प्रेमा) छन्दों की कुल संख्या 2 है जिनका सन्दर्भ निम्नलिखित प्रकार है-
सन्दर्भ : 11.19, 11.38

उदाहरण :
लगाल गागाल लगाल गागा
अनादि/मध्यान्त/मनन्त/वीर्य^- (उपेन्द्रवज्रा)
लगाल गागाल लगाल गागा
मनन्त/बाहुं श/शिसूर्य/नेत्रम्। (उपेन्द्रवज्रा)
गागाल गागाल लगाल गागा
पश्यामि/ त्वां दीप्त/हुताश/वक्त्रं (इंद्रवज्रा)
लगाल गागाल लगाल गागा
स्वतेज/सा विश्व/मिदं त/पन्तम्। (उपेन्द्रवज्रा)
(गीता 11.19)

(27) उउउइ (जाया) : कुल छन्द 1
ग्यारह-ग्यारह वर्णों के चार चरणों वाले उस त्रिष्टुप छन्द को उउउइ (जाया) कहते है,
जिसके चार चरण क्रमशः उपेंद्रवज्रा, उपेंद्रवज्रा, उपेंद्रवज्रा और इंद्रवज्रा के होते हैं।
गीता में उउउइ (जाया) छन्दों की कुल संख्या 1 है जिसका सन्दर्भ निम्नलिखित प्रकार है-
सन्दर्भ : 11.40

उदाहरण :
लगाल गागाल लगाल गागा
नमः पु/रस्ताद/थ पृष्ठ/तस्ते (उपेन्द्रवज्रा)
लगाल गागाल लगाल गागा
नमोऽस्तु/ ते सर्व/त एव/ सर्व^। (उपेन्द्रवज्रा)
लगाल गागाल लगाल गागा
अनन्त/वीर्यामि/तविक्र/मस्त्वं (उपेन्द्रवज्रा)
गागाल गागाल लगाल गागा
सर्वं स/माप्नोषि/ ततोऽसि/ सर्वः। (इंद्रवज्रा)
(गीता 11.40)

(28) उउइइ (माला) : कुल छन्द 1
ग्यारह-ग्यारह वर्णों के चार चरणों वाले उस त्रिष्टुप छन्द को उउइइ (माला) कहते है,
जिसके चार चरण क्रमशः उपेंद्रवज्रा, उपेंद्रवज्रा, इंद्रवज्रा और इंद्रवज्रा के होते हैं।
गीता में उउइइ (माला) छन्दों की कुल संख्या 1 है जिसका सन्दर्भ निम्नलिखित प्रकार है-
सन्दर्भ : 11.43

उदाहरण :
लगाल गागाल लगाल गागा
पितासि/ लोकस्य/ चराच/रस्य^ (उपेन्द्रवज्रा)
लगाल गागाल लगाल गागा
त्वमस्य/ पूज्यश्च/ गुरुर्ग/रीयान्। (उपेन्द्रवज्रा)
गागाल गागाल लगाल गागा
न त्वत्स/मोऽस्त्यभ्य/धिकः कु/तोऽन्यो (इंद्रवज्रा)
गागाल गागाल लगाल गागा
लोकत्र/येऽप्यप्र/तिमप्र/भाव^। (इंद्रवज्रा)
(गीता 11.43)

(29) इउउइ (माया) : कुल छन्द 1
ग्यारह-ग्यारह वर्णों के चार चरणों वाले उस त्रिष्टुप छन्द को इउउइ (माया) कहते है,
जिसके चार चरण क्रमशः इंद्रवज्रा, उपेंद्रवज्रा, उपेंद्रवज्रा और इंद्रवज्रा के होते हैं।
गीता में इउउइ (माया) छन्दों की कुल संख्या 1 है जिसका सन्दर्भ निम्नलिखित प्रकार है-
सन्दर्भ : 2.22

उदाहरण :
गागाल गागाल लगाल गागा
वासांसि/ जीर्णानि/ यथा वि/हाय^ (इंद्रवज्रा)
लगाल गागाल लगाल गागा
नवानि/ गृह्णाति/ नरोऽप/राणि^। (उपेन्द्रवज्रा)
लगाल गागाल लगाल गागा
तथा श/रीराणि/ विहाय/ जीर्णा- (उपेन्द्रवज्रा)
गागाल गागाल लगाल गागा
न्यन्यानि/ संयाति/ नवानि/ देही। (इंद्रवज्रा)
गीता 2.22

(30) इइउउ (रामा) : कुल छन्द 1
ग्यारह-ग्यारह वर्णों के चार चरणों वाले उस त्रिष्टुप छन्द को इइउउ (रामा) कहते है,
जिसके चार चरण क्रमशः इंद्रवज्रा, इंद्रवज्रा, उपेंद्रवज्रा और उपेंद्रवज्रा के होते हैं।
गीता में इइउउ (रामा) छन्दों की कुल संख्या 1 है जिसका सन्दर्भ निम्नलिखित प्रकार है-
सन्दर्भ : 11.25

उदाहरण :
गागाल गागाल लगाल गागा
दंष्ट्राकरालानि च ते मुखानि^ (इंद्रवज्रा)
गागाल गागाल लगाल गागा
दृष्ट्वैव कालानलसन्निभानि^। (इंद्रवज्रा)
लगाल गागाल लगाल गागा
दिशो न जाने न लभे च शर्म^ (उपेन्द्रवज्रा)
लगाल गागाल लगाल गागा
प्रसीद देवेश जगन्निवास^। (उपेन्द्रवज्रा)
(गीता 11.25)

(31) उइउइ (हंसी) : कुल छन्द 1
ग्यारह-ग्यारह वर्णों के चार चरणों वाले उस त्रिष्टुप छन्द को उइउइ (हंसी) कहते है,
जिसके चार चरण क्रमशः उपेंद्रवज्रा, इंद्रवज्रा, उपेंद्रवज्रा और इंद्रवज्रा के होते हैं।
गीता में उइउइ (हंसी) छन्दों की कुल संख्या 1 है जिसका सन्दर्भ निम्नलिखित प्रकार है-
सन्दर्भ : 2.8

उदाहरण :
लगाल गागाल लगाल गागा
न हि प्र/पश्यामि/ ममाप/नुद्याद् (उपेन्द्रवज्रा)
गागाल गागाल लगाल गागा
यच्छोक/मुच्छोष/णमिन्द्रि/याणाम्। (इंद्रवज्रा)
लगाल गागाल लगाल गागा
अवाप्य/ भूमाव/सपत्न/मृद्धं (उपेन्द्रवज्रा)
गागाल गागाल लगाल गागा
राज्यं सु/राणाम/पि चाधि/पत्यम्। (इंद्रवज्रा)
(गीता 2.8)

(32) उइइउ (आर्द्रा) : कुल छन्द 1
ग्यारह-ग्यारह वर्णों के चार चरणों वाले उस त्रिष्टुप छन्द को उइइउ (आर्द्रा) कहते है,
जिसके चार चरण क्रमशः उपेंद्रवज्रा, इंद्रवज्रा, इंद्रवज्रा और उपेंद्रवज्रा के होते हैं।
गीता में उइइउ (आर्द्रा) छन्दों की कुल संख्या 1 है जिसका सन्दर्भ निम्नलिखित प्रकार है-
सन्दर्भ : 11.24

उदाहरण :
लगाल गागाल लगाल गागा
नभःस्पृ/शं दीप्त/मनेक/वर्णं (उपेन्द्रवज्रा)
गागाल गागाल लगाल गागा
व्यात्तान/नं दीप्त/विशाल/नेत्रम्। (इंद्रवज्रा)
गागाल गागाल लगाल गागा
दृष्ट्वा हि/ त्वां प्रव्य/थितान्त/रात्मा (इंद्रवज्रा)
लगाल गागाल लगाल गागा
धृतिं न/ विन्दामि/ शमं च/ विष्णो। (उपेन्द्रवज्रा)
(गीता 11.24)

ध्यातव्य है कि गीता में उइउउ (ऋद्धि) और इउइउ (भद्रा) उपजाति के कोई छन्द नहीं हैं।

मिश्रित उपजाति : कुल छन्द 34
चार चरणों वाले उस त्रिष्टुप छन्द को मिश्रित उपजाति कहते है, जिसके चरणों में उपेंद्रवज्रा और इंद्रवज्रा के अतिरिक्त अन्य छन्दों का भी सम्मिश्रण होता है।
गीता में इन छन्दों की कुल संख्या 34 है जिनका सन्दर्भ निम्नलिखित प्रकार है-
सन्दर्भ : 2.5, 2.6, 2.7, 2.20, 2.29, 2.70, 8.9, 8.10, 8,11, 9.20, 9.21, 11.16, 11.17, 11.18, 11.20, 11.21, 11.22, 11.23, 11.26, 11.27, 11.30, 11.31, 11.32, 11.33, 11.35, 11.37, 11.41, 11.46, 11.48, 11.49, 11.50, 15.2, 15.3, 15.4.
34 मिश्रित उपजाति के 34 छन्द अग्रलिखित प्रकार हैं-

(33) उपेन्द्रवज्रा-गुणांगी-इंद्रवज्रा-इंद्रवज्रा : कुल छन्द 1
ग्यारह-ग्यारह वर्णों के चार चरणों वाले उस त्रिष्टुप छन्द को उपेन्द्रवज्रा-गुणांगी-इंद्रवज्रा-इंद्रवज्रा कहते है, जिसके चार चरण क्रमशः उपेन्द्रवज्रा, गुणांगी, इंद्रवज्रा और इंद्रवज्रा के होते हैं।
इस छन्द के चरणों में आने वाले छन्दों क्रमशः उपेन्द्रवज्रा, गुणांगी, इंद्रवज्रा और इंद्रवज्रा को संयुक्त कर इसका नाम रख दिया गया है, इसी प्रकार आगे आने वाले मिश्रित उपजाति के नामों को समझना चाहिए।
गीता में उपेन्द्रवज्रा-गुणांगी-इंद्रवज्रा-इंद्रवज्रा छन्दों की कुल संख्या 1 है जिसका सन्दर्भ निम्नलिखित प्रकार है-
सन्दर्भ : 2.5

उदाहरण :
लगाल गागाल लगाल गागा
गुरून/हत्वा हि/ महानु/भावान् (उपेन्द्रवज्रा)
गागागा गागाल लगाल गागा
श्रेयो भोक्/तुं भैक्ष्य/मपीह/ लोके। (गुणांगी)
गागाल गागाल लगाल गागा
हत्वार्थ/कामांस्तु/ गुरूनि/हैव^ (इंद्रवज्रा)
गागाल गागाल लगाल गागा
भुञ्जीय/ भोगान् रु/धिरप्र/दिग्धान्। (इंद्रवज्रा)
(गीता 2.5)

(34) राधा-गंगा-इंद्रवज्रा-ईहामृगी(द्विभुरिक्) : कुल छन्द 1
चार चरणों वाले उस त्रिष्टुप छन्द को राधा-गंगा-इंद्रवज्रा-ईहामृगी(द्विभुरिक्) कहते है, जिसके चार चरण क्रमशः राधा, गंगा, इंद्रवज्रा और ईहामृगी के होते हैं।
इसमें चारों चरण 11 वर्णों के नहीं है, अपितु प्रथम और द्वितीय चरण 12 वर्णों वाले क्रमशः राधा और गंगा छन्दों के हैं। इसलिए इसे द्विभुरिक् कहा गया है।
गीता में राधा-गंगा-इंद्रवज्रा-ईहामृगी(द्विभुरिक्) छन्दों की कुल संख्या 1 है जिसका सन्दर्भ निम्नलिखित प्रकार है-
सन्दर्भ : 2.6 (भुरिक्)

उदाहरण :
लगागा गागाल लगागा लगागा
न चैतद्/विद्मः क/तरन्नो/ गरीयो (राधा 12 वर्ण)
लगाल गालल लगागा लगागा
यद्वा ज/येम य/दि वा नो/ जयेयुः। (गंगा 12 वर्ण)
गागाल गागाल लगाल गागा
यानेव/ हत्वा न/ जिजीवि/षाम^- (इंद्रवज्रा 11 वर्ण)
गागाल गालल गागाल गागा
स्तेऽवस्थि/ताः प्रमु/खे धार्त/राष्ट्राः। (ईहामृगी 11 वर्ण)
(गीता 2.6)

(35) इंद्रवज्रा-शालिनी-शालिनी-शालिनी : कुल छन्द 1
ग्यारह-ग्यारह वर्णों के चार चरणों वाले उस त्रिष्टुप छन्द को इंद्रवज्रा-शालिनी-शालिनी-शालिनी कहते है, जिसके चार चरण क्रमशः इंद्रवज्रा, शालिनी, शालिनी और शालिनी के होते हैं।
गीता में इंद्रवज्रा-शालिनी-शालिनी-शालिनी छन्दों की कुल संख्या 1 है जिसका सन्दर्भ निम्नलिखित प्रकार है-
सन्दर्भ : 2.7

उदाहरण :
गागाल गागाल लगाल गागा
कार्पण्य/दोषोप/हतस्व/भावः (इंद्रवज्रा)
गागाल गागाल गागाल गागा
पृच्छामि/ त्वां धर्म/सम्मूढ/चेताः। (शालिनी)
गागागा गागाल गागाल गागा
यच्छ्रेयः/ स्यान्निश्चि/तं ब्रूहि/ तन्मे (शालिनी)
गागागा गागाल गागाल गागा
शिष्यस्तेऽ/हं शाधि/ मां त्वां प्र/पन्नम्। (शालिनी)
(गीता 2.7)

(36) शारदा-वातोर्मि-विशाखा-यशोदा : कुल छन्द 1
ग्यारह-ग्यारह वर्णों के चार चरणों वाले उस त्रिष्टुप छन्द को शारदा-वातोर्मि-विशाखा-यशोदा कहते है, जिसके चार चरण क्रमशः शारदा, वातोर्मि, विशाखा और यशोदा के होते हैं।
गीता में शारदा-वातोर्मि-विशाखा-यशोदा छन्दों की कुल संख्या 1 है जिसका सन्दर्भ निम्नलिखित प्रकार है-
सन्दर्भ : 2.20

उदाहरण :
लगाल गालल गागाल गागा
न जाय/ते म्रिय/ते वा क/दाचिन्- (शारदा)
गागागा गालल गागाल गागा
नायं भू/त्वा भवि/ता वा न/ भूयः। (वातोर्मि)
लगागा गागाल गागाल गागा
अजो नि^/त्यः शाश्व/तोऽयं पु/राणो (विशाखा)
लगाल गागाल गागाल गागा
न हन्य/ते हन्य/माने श/रीरे। (यशोदा)
(गीता 2.20)

(37) इंद्रवज्रा-रति-प्राकारबन्ध-गुणांगी(भुरिक्) : कुल छन्द 1
चार चरणों वाले उस त्रिष्टुप छन्द को इंद्रवज्रा-रति-प्राकारबन्ध-गुणांगी(भुरिक्) कहते है, जिसके चार चरण क्रमशः इंद्रवज्रा, रति, प्राकारबन्ध और गुणांगी के होते हैं।
इसमें चारों चरण 11 वर्णों के नहीं है, अपितु द्वितीय चरण 12 वर्णों वाले रति छन्द का है। इसलिए इसे भुरिक् कहा गया है।
गीता में इंद्रवज्रा-रति-प्राकारबन्ध-गुणांगी(भुरिक्) छन्दों की कुल संख्या 1 है जिसका सन्दर्भ निम्नलिखित प्रकार है-
सन्दर्भ : 2.29 (भुरिक्)

उदाहरण :
गागाल गागाल लगाल गागा
आश्चर्य/वत्पश्य/ति कश्चि/देन^- (इंद्रवज्रा 11 वर्ण))
गागाल गालल ललगा लगागा
माश्चर्य/वद्वद/ति तथै/व चान्यः। (रति 12 वर्ण)
गागाल गागाल गागाल गागा
आश्चर्य/वच्चैन/मन्यः शृ/णोति^ (प्राकारबन्ध 11 वर्ण)
गागागा गागाल लगाल गागा
श्रुत्वाप्ये/नं वेद/ न चैव/ कश्चित्। (गुणांगी 11 वर्ण)
(गीता 2,29)
ध्यातव्य – गीता दर्पण में स्वामी रामसुखदास ने तीसरे चरण में संशयश्री छन्द ( गागाल गागाल गागाल गाल) माना है किन्तु मेरी दृष्टि में यह उचित नहीं है क्योंकि जैसे अनेक चरणों के अंत में मात्रोत्थान का प्रयोग करते हुए गाल को गागा माना गया है उसी परिपाटी का पालन करते हुए यहाँ पर भी मात्रोत्थान के साथ गाल को गागा मानना उचित है, गाल नहीं। तब तीसरे चरण में प्राकारबन्ध छन्द होगा, संशयश्री नहीं।

(38) इष्ट-उपेन्द्रवज्रा-गुणांगी-उपेन्द्रवज्रा : कुल छन्द 1
ग्यारह-ग्यारह वर्णों के चार चरणों वाले उस त्रिष्टुप छन्द को इष्ट-उपेन्द्रवज्रा-गुणांगी-उपेन्द्रवज्रा कहते है, जिसके चार चरण क्रमशः इष्ट, उपेन्द्रवज्रा, गुणांगी और उपेन्द्रवज्रा के होते हैं।
गीता में इष्ट-उपेन्द्रवज्रा-गुणांगी-उपेन्द्रवज्रा छन्दों की कुल संख्या 1 है जिसका सन्दर्भ निम्नलिखित प्रकार है-
सन्दर्भ : 2.70

उदाहरण :
गागाल गालल लगाल गागा
आपूर्य/माणम/चलप्र/तिष्ठं (इष्ट)
लगाल गागाल लगाल गागा
समुद्र/मापः प्र/विशन्ति/ यद्वत्। (उपेन्द्रवज्रा)
गागागा गागाल लगाल गागा
तद्वत्का/मा यं प्र/विशन्ति/ सर्वे (गुणांगी)
लगाल गागाल लगाल गागा
स शान्ति/माप्नोति/ न काम/कामी। (उपेन्द्रवज्रा)
(गीता 2.70)

(39) ईष-उपेन्द्रवज्रा-इंद्रवज्रा-इंद्रवज्रा : कुल छन्द 1
ग्यारह-ग्यारह वर्णों के चार चरणों वाले उस त्रिष्टुप छन्द को ईष-उपेन्द्रवज्रा-इंद्रवज्रा-इंद्रवज्रा कहते है, जिसके चार चरण क्रमशः ईष, उपेन्द्रवज्रा, इंद्रवज्रा और इंद्रवज्रा के होते हैं।
गीता में ईष-उपेन्द्रवज्रा-इंद्रवज्रा-इंद्रवज्रा छन्दों की कुल संख्या 1 है जिसका सन्दर्भ निम्नलिखित प्रकार है-
सन्दर्भ : 8.9

उदाहरण :
लगाल गालल लगाल गागा
कविं पु/राणम/नुशासि/तार^- (ईष)
लगाल गागाल लगाल गागा
मणोर/णीयांस/मनुस्म/रेद्यः। (उपेन्द्रवज्रा)
गागाल गागाल लगाल गागा
सर्वस्य/ धातार/मचिन्त्य/रूप^ (इंद्रवज्रा)
गागाल गागाल लगाल गागा
मादित्य/वर्णं त/मसः प/रस्तात्। (इंद्रवज्रा)
(गीता 8.9)

(40) उपेन्द्रवज्रा-गुणांगी-विशाखा-गति(भुरिक्) : कुल छन्द 1
चार चरणों वाले उस त्रिष्टुप छन्द को उपेन्द्रवज्रा-गुणांगी-विशाखा-गति(भुरिक्) कहते है, जिसके चार चरण क्रमशः उपेन्द्रवज्रा, गुणांगी, विशाखा और गति के होते हैं।
इसमें चारों चरण 11 वर्णों के नहीं है, अपितु चतुर्थ चरण 12 वर्णों वाले गति छन्द का है। इसलिए इसे भुरिक् कहा गया है।
गीता में उपेन्द्रवज्रा-गुणांगी-विशाखा-गति(भुरिक्) छन्दों की कुल संख्या 1 है जिसका सन्दर्भ निम्नलिखित प्रकार है-
सन्दर्भ : 8.10, (भुरिक्)

उदाहरण :
लगाल गागाल लगाल गागा
प्रयाण/काले म/नसाच/लेन^ (उपेन्द्रवज्रा 11 वर्ण)
गागागा गागाल लगाल गागा
भक्त्या युक्/तो योग/बलेन/ चैव^। (गुणांगी 11 वर्ण)
लगागा गागाल गागाल गागा
भ्रुवोर्म^/ध्ये प्राण/मावेश्य/ सम्यक् (विशाखा 11 वर्ण)
लगाल गालल ललगा लगागा
स तं प/रं पुरु/षमुपै/ति दिव्यम्। (गति 12 वर्ण)
(गीता 8.10)

(41) उपेन्द्रवज्रा-शारदा-विशाखा-प्राकारबंध : कुल छन्द 1
ग्यारह-ग्यारह वर्णों के चार चरणों वाले उस त्रिष्टुप छन्द को उपेन्द्रवज्रा-शारदा-विशाखा-प्राकारबंध कहते है, जिसके चार चरण क्रमशः उपेन्द्रवज्रा, शारदा, विशाखा और प्राकारबंध के होते हैं।
गीता में उपेन्द्रवज्रा-शारदा-विशाखा-प्राकारबंध छन्दों की कुल संख्या 1 है जिसका सन्दर्भ निम्नलिखित प्रकार है-
सन्दर्भ : 8.11

उदाहरण :
लगाल गागाल लगाल गागा
यदक्ष/रं वेद/विदो व/दन्ति^ (उपेन्द्रवज्रा)
लगाल गालल गागाल गागा
विशन्ति/ यद्यत/यो वीत/रागाः। (शारदा)
लगागा गागाल गागाल गागा
यदिच्छन्/तो ब्रह्म/चर्यं च/रन्ति^ (विशाखा)
गागाल गागाल गागाल गागा
तत्ते प/दं संग्र/हेण प्र/वक्ष्ये। (प्राकारबंध)
(गीता 8.11)

(42) शालिनी-शालिनी-इंद्रवज्रा-इंद्रवज्रा : कुल छन्द 1
ग्यारह-ग्यारह वर्णों के चार चरणों वाले उस त्रिष्टुप छन्द को शालिनी-शालिनी-इंद्रवज्रा-इंद्रवज्रा कहते है, जिसके चार चरण क्रमशः शालिनी, शालिनी, इंद्रवज्रा और इंद्रवज्रा के होते हैं।
गीता में शालिनी-शालिनी-इंद्रवज्रा-इंद्रवज्रा छन्दों की कुल संख्या 1 है जिसका सन्दर्भ निम्नलिखित प्रकार है-
सन्दर्भ : 9.20

उदाहरण :
गागागा गागाल गागाल गागा
त्रैविद्या/ मां सोम/पाः पूत/पापा (शालिनी)
गागागा गागाल गागाल गागा
यज्ञैरिष्/ट्वा स्वर्ग/तिं प्रार्थ/यन्ते। (शालिनी)
गागाल गागाल लगाल गागा
ते पुण्य/मासाद्य/ सुरेन्द्र/लोक^- (इंद्रवज्रा)
गागाल गागाल लगाल गागा
मश्नन्ति/ दिव्यान्दि/वि देव/भोगान्। (इंद्रवज्रा)
(गीता 9.20)

(43) शालिनी-शालिनी-इंद्रवज्रा-यशोदा : कुल छन्द 1
ग्यारह-ग्यारह वर्णों के चार चरणों वाले उस त्रिष्टुप छन्द को शालिनी-शालिनी-इंद्रवज्रा-यशोदा कहते है, जिसके चार चरण क्रमशः शालिनी, शालिनी, इंद्रवज्रा और यशोदा के होते हैं।
गीता में शालिनी-शालिनी-इंद्रवज्रा-यशोदा छन्दों की कुल संख्या 1 है जिसका सन्दर्भ निम्नलिखित प्रकार है-
सन्दर्भ : 9.21

उदाहरण :
गागागा गागाल गागाल गागा
ते तं भुक्/त्वा स्वर्ग/लोकं वि/शालं (शालिनी)
गागागा गागाल गागाल गागा
क्षीणे पुण्/ये मर्त्य/लोकं वि/शन्ति^। (शालिनी)
गागाल गागाल लगाल गागा
एवं त्र/यीधर्म/मनुप्र/पन्ना (इंद्रवज्रा)
लगाल गागाल गागाल गागा
गताग/तं काम/कामा ल/भन्ते। (यशोदा)
(गीता 9.21)

(44) उपेंद्रवज्रा-शालिनी-इंद्रवज्रा-इंद्रवज्रा : कुल छन्द 1
ग्यारह-ग्यारह वर्णों के चार चरणों वाले उस त्रिष्टुप छन्द को उपेंद्रवज्रा-शालिनी-इंद्रवज्रा-इंद्रवज्रा कहते है, जिसके चार चरण क्रमशः उपेंद्रवज्रा, शालिनी, इंद्रवज्रा और इंद्रवज्रा के होते हैं।
गीता में उपेंद्रवज्रा-शालिनी-इंद्रवज्रा-इंद्रवज्रा छन्दों की कुल संख्या 1 है जिसका सन्दर्भ निम्नलिखित प्रकार है-
सन्दर्भ : 11.16

उदाहरण :
लगाल गागाल लगाल गागा
अनेक/बाहूद/रवक्त्र/नेत्रं (उपेंद्रवज्रा)
गागागा गागाल गागाल गागा
पश्यामि/ त्वां सर्व/तोऽनन्त/रूपम्। (शालिनी)
गागाल गागाल लगाल गागा
नान्तं न/ मध्यं न/ पुनस्त/वादिं (इंद्रवज्रा)
गागाल गागाल लगाल गागा
पश्यामि/ विश्वेश्व/र विश्व/रूप^। (इंद्रवज्रा)
(गीता 11.16)

(45) शारदा-शालिनी-शालिनी-इंद्रवज्रा : कुल छन्द 1
ग्यारह-ग्यारह वर्णों के चार चरणों वाले उस त्रिष्टुप छन्द को शारदा-शालिनी-शालिनी-इंद्रवज्रा कहते है, जिसके चार चरण क्रमशः शारदा, शालिनी, शालिनी और इंद्रवज्रा के होते हैं।
गीता में शारदा-शालिनी-शालिनी-इंद्रवज्रा छन्दों की कुल संख्या 1 है जिसका सन्दर्भ निम्नलिखित प्रकार है-
सन्दर्भ : 11.17

उदाहरण :
लगाल गालल गागाल गागा
किरीटि/नं गदि/नं चक्रि/णं च^ (शारदा)
गागागा गागाल गागाल गागा
तेजोरा/शिं सर्व/तो दीप्ति/मन्तम्। (शालिनी)
गागागा गागाल गागाल गागा
पश्यामि^/ त्वां दुर्नि/रीक्ष्यं स/मन्ताद्- (शालिनी)
गागाल गागाल लगाल गागा
दीप्तान/लार्कद्यु/तिमप्र/मेयम्। (इंद्रवज्रा)
(गीता 11.17)

(46) शारदा-उपेन्द्रवज्रा-उपेन्द्रवज्रा-उपेन्द्रवज्रा : कुल छन्द 1
ग्यारह-ग्यारह वर्णों के चार चरणों वाले उस त्रिष्टुप छन्द को शारदा-उपेन्द्रवज्रा-उपेन्द्रवज्रा-उपेन्द्रवज्रा कहते है, जिसके चार चरण क्रमशः शारदा, उपेन्द्रवज्रा, उपेन्द्रवज्रा और उपेन्द्रवज्रा के होते हैं।
गीता में शारदा-उपेन्द्रवज्रा-उपेन्द्रवज्रा-उपेन्द्रवज्रा छन्दों की कुल संख्या 1 है जिसका सन्दर्भ निम्नलिखित प्रकार है-
सन्दर्भ : 11.18

उदाहरण :
लगाल गालल गागाल गागा
त्वमक्ष/रं पर/मं वेदि/तव्यं (शारदा)
लगाल गागाल लगाल गागा
त्वमस्य/ विश्वस्य/ परं नि/धानम्। (उपेन्द्रवज्रा)
लगाल गागाल लगाल गागा
त्वमव्य/यः शाश्व/तधर्म/गोप्ता (उपेन्द्रवज्रा)
लगाल गागाल लगाल गागा
सनात/नस्त्वं पु/रुषो म/तो मे। (उपेन्द्रवज्रा)
(गीता 11.18)

(47) इंद्रवज्रा-इंद्रवज्रा-प्राकारबन्ध-इंद्रवज्रा : कुल छन्द 1
ग्यारह-ग्यारह वर्णों के चार चरणों वाले उस त्रिष्टुप छन्द को इंद्रवज्रा-इंद्रवज्रा-प्राकारबन्ध-इंद्रवज्रा कहते है, जिसके चार चरण क्रमशः इंद्रवज्रा, इंद्रवज्रा, प्राकारबन्ध और इंद्रवज्रा के होते हैं।
गीता में इंद्रवज्रा-इंद्रवज्रा-प्राकारबन्ध-इंद्रवज्रा छन्दों की कुल संख्या 1 है जिसका सन्दर्भ निम्नलिखित प्रकार है-
सन्दर्भ : 11.20

उदाहरण :
गागाल गागाल लगाल गागा
द्यावापृ/थिव्योरि/दमन्त/रं हि^ (इंद्रवज्रा)
गागाल गागाल लगाल गागा
व्याप्तं त्व/यैकेन/ दिशश्च/ सर्वाः। (इंद्रवज्रा)
गागाल गागाल गागाल गागा
दृष्ट्वाद्भु/तं रूप/मुग्रं त/वेदं (प्राकारबन्ध)
गागाल गागाल लगाल गागा
लोकत्र/यं प्रव्य/थितं म/हात्मन्। (इंद्रवज्रा)
(गीता 11.20)

(48) ललिता-गुणांगी-चित्रा-ललिता : कुल छन्द 1
ग्यारह-ग्यारह वर्णों के चार चरणों वाले उस त्रिष्टुप छन्द को ललिता-गुणांगी-चित्रा-ललिता कहते है, जिसके चार चरण क्रमशः ललिता, गुणांगी, चित्रा और ललिता के होते हैं।
गीता में ललिता-गुणांगी-चित्रा-ललिता छन्दों की कुल संख्या 1 है जिसका सन्दर्भ निम्नलिखित प्रकार है-
सन्दर्भ : 11.21

उदाहरण :
लगागा गालल गागाल गागा
अमी हि^/ त्वां सुर/संघा वि/शन्ति^ (ललिता)
गागागा गागाल लगाल गागा
केचिद्भी/ताः प्राञ्ज/लयो गृ/णन्ति^। (गुणांगी)
गागागा गालगा लगाल गागा
स्वस्तीत्युक्/त्वा महर्/षि सिद्ध/संघाः (चित्रा)
लगागा गालल गागाल गागा
स्तुवन्ति/ त्वां स्तुति/भिः पुष्क/लाभिः। (ललिता)
(गीता 11.21)

(49) वातोर्मि-ईहामृगी-इंद्रवज्रा-शालिनी : कुल छन्द 1
ग्यारह-ग्यारह वर्णों के चार चरणों वाले उस त्रिष्टुप छन्द को वातोर्मि-ईहामृगी-इंद्रवज्रा-शालिनी कहते है, जिसके चार चरण क्रमशः वातोर्मि, ईहामृगी, इंद्रवज्रा और शालिनी के होते हैं।
गीता में वातोर्मि-ईहामृगी-इंद्रवज्रा-शालिनी छन्दों की कुल संख्या 1 है जिसका सन्दर्भ निम्नलिखित प्रकार है-
सन्दर्भ : 11.22

उदाहरण :
गागागा गालल गागाल गागा
रुद्रादि^/त्या वस/वो ये च/ साध्या (वातोर्मि)
गागाल गालल गागाल गागा
विश्वेऽश्वि/नौ मरु/तश्चोष्म/पाश्च^। (ईहामृगी)
गागाल गागाल लगाल गागा
गन्धर्व/यक्षासु/रसिद्ध/संघा (इंद्रवज्रा)
गागागा गागाल गागाल गागा
वीक्षन्ते/ त्वां विस्मि/ताश्चैव/ सर्वे। (शालिनी)
(गीता 11.22)

(50) इंद्रवज्रा-ललिता-शारदा-गुणांगी : कुल छन्द 1
ग्यारह-ग्यारह वर्णों के चार चरणों वाले उस त्रिष्टुप छन्द को इंद्रवज्रा-ललिता-शारदा-गुणांगी कहते है, जिसके चार चरण क्रमशः इंद्रवज्रा, ललिता, शारदा और गुणांगी के होते हैं।
गीता में इंद्रवज्रा-ललिता-शारदा-गुणांगी छन्दों की कुल संख्या 1 है जिसका सन्दर्भ निम्नलिखित प्रकार है-
सन्दर्भ : 11.23

उदाहरण :
गागाल गागाल लगाल गागा
रूपं म/हत्ते ब/हुवक्त्र/नेत्रं (इंद्रवज्रा)
लगागा गालल गागाल गागा
महाबा/हो बहु/बाहूरु/पादम्। (ललिता)
लगाल गालल गागाल गागा
बहूद/रं बहु/दंष्ट्राक/रालं (शारदा)
गागागा गागाल लगाल गागा
दृष्ट्वा लो/काः प्रव्य/थितास्त/थाहम्। (गुणांगी)
(गीता 11.23)

(51) ललिता-इंद्रवज्रा-शालिनी-उपेन्द्रवज्रा : कुल छन्द 1
ग्यारह-ग्यारह वर्णों के चार चरणों वाले उस त्रिष्टुप छन्द को ललिता-इंद्रवज्रा-शालिनी-उपेन्द्रवज्रा कहते है, जिसके चार चरण क्रमशः ललिता, इंद्रवज्रा, शालिनी और उपेन्द्रवज्रा के होते हैं।
गीता में ललिता-इंद्रवज्रा-शालिनी-उपेन्द्रवज्रा छन्दों की कुल संख्या 1 है जिसका सन्दर्भ निम्नलिखित प्रकार है-
सन्दर्भ : 11.26

उदाहरण :
लगागा गालल गागाल गागा
अमी च/ त्वां धृत/राष्ट्रस्य/ पुत्राः (ललिता)
गागाल गागाल लगाल गागा
सर्वे स/हैवाव/निपाल/संघैः। (इंद्रवज्रा)
गागागा गागाल गागाल गागा
भीष्मो द्रो/णः सूत/पुत्रस्त/थासौ (शालिनी)
लगाल गागाल लगाल गागा
सहास्म/दीयैर/पि योध/मुख्यैः। (उपेन्द्रवज्रा)
(गीता 11.26)

(52) ईहामृगी-इंद्रवज्रा-इंद्रवज्रा-शालिनी : कुल छन्द 1
ग्यारह-ग्यारह वर्णों के चार चरणों वाले उस त्रिष्टुप छन्द को ईहामृगी-इंद्रवज्रा-इंद्रवज्रा-शालिनी कहते है, जिसके चार चरण क्रमशः ईहामृगी, इंद्रवज्रा, इंद्रवज्रा और शालिनी के होते हैं।
गीता में ईहामृगी-इंद्रवज्रा-इंद्रवज्रा-शालिनी छन्दों की कुल संख्या 1 है जिसका सन्दर्भ निम्नलिखित प्रकार है-
सन्दर्भ : 11.27

उदाहरण :
गागाल गालल गागाल गागा
वक्त्राणि/ ते त्वर/माणा वि/शन्ति^ (ईहामृगी)
गागाल गागाल लगाल गागा
दंष्ट्राक/रालानि/ भयान/कानि^। (इंद्रवज्रा)
गागाल गागाल लगाल गागा
केचिद्वि/लग्ना द/शनान्त/रेषु^ (इंद्रवज्रा)
गागागा गागाल गागाल गागा
संदृश्यन्/ते चूर्णि/तैरुत्त/माङ्गैः। (शालिनी)
(गीता 11.27)

(53) ईहामृगी-इंद्रवज्रा-इंद्रवज्रा-इंद्रवज्रा : कुल छन्द 1
ग्यारह-ग्यारह वर्णों के चार चरणों वाले उस त्रिष्टुप छन्द को ईहामृगी-इंद्रवज्रा-इंद्रवज्रा-इंद्रवज्रा कहते है, जिसके चार चरण क्रमशः ईहामृगी, इंद्रवज्रा, इंद्रवज्रा और इंद्रवज्रा के होते हैं।
गीता में ईहामृगी-इंद्रवज्रा-इंद्रवज्रा-इंद्रवज्रा छन्दों की कुल संख्या 1 है जिसका सन्दर्भ निम्नलिखित प्रकार है-
सन्दर्भ : 11.30

उदाहरण :
गागाल गालल गागाल गागा
लेलिह्य/से ग्रस/मानः स/मन्ताल्- (ईहामृगी)
गागाल गागाल लगाल गागा
लोकान्स/मग्रान्व/दनैर्ज्व/लद्भिः। (इंद्रवज्रा)
गागाल गागाल लगाल गागा
तेजोभि/रापूर्य/ जगत्स/मग्रं (इंद्रवज्रा)
गागाल गागाल लगाल गागा
भासस्त/वोग्राः प्र/तपन्ति/ विष्णो। (इंद्रवज्रा)
(गीता 11.30)

(54) प्राकारबंध-उपेन्द्रवज्रा-इंद्रवज्रा-उपेन्द्रवज्रा : कुल छन्द 1
ग्यारह-ग्यारह वर्णों के चार चरणों वाले उस त्रिष्टुप छन्द को प्राकारबंध-उपेन्द्रवज्रा-इंद्रवज्रा-उपेन्द्रवज्रा कहते है, जिसके चार चरण क्रमशः प्राकारबंध, उपेन्द्रवज्रा, इंद्रवज्रा और उपेन्द्रवज्रा के होते हैं।
गीता में प्राकारबंध-उपेन्द्रवज्रा-इंद्रवज्रा-उपेन्द्रवज्रा छन्दों की कुल संख्या 1 है जिसका सन्दर्भ निम्नलिखित प्रकार है-
सन्दर्भ : 11.31

उदाहरण :
गागाल गागाल गागाल गागा
आख्याहि/ मे को भ/वानुग्र/रूपो (प्राकारबंध)
लगाल गागाल लगाल गागा
नमोऽस्तु/ ते देव/वर प्र/सीद^। (उपेन्द्रवज्रा)
गागाल गागाल लगाल गागा
विज्ञातु/मिच्छामि/ भवन्त/माद्यं (इंद्रवज्रा)
लगाल गागाल लगाल गागा
न हि प्र/जानामि/ तव प्र/वृत्तिम्। (उपेन्द्रवज्रा)
(गीता 11.31)

(55) इंद्रवज्रा-इंद्रवज्रा-ललिता-प्राकारबंध : कुल छन्द 1
ग्यारह-ग्यारह वर्णों के चार चरणों वाले उस त्रिष्टुप छन्द को इंद्रवज्रा-इंद्रवज्रा-ललिता-प्राकारबंध कहते है, जिसके चार चरण क्रमशः इंद्रवज्रा, इंद्रवज्रा, ललिता और प्राकारबंध के होते हैं।
गीता में इंद्रवज्रा-इंद्रवज्रा-ललिता-प्राकारबंध छन्दों की कुल संख्या 1 है जिसका सन्दर्भ निम्नलिखित प्रकार है-
सन्दर्भ : 11.32

उदाहरण :
गागाल गागाल लगाल गागा
कालोऽस्मि/ लोकक्ष/यकृत्प्र/वृद्धो (इंद्रवज्रा)
गागाल गागाल लगाल गागा
लोकान्स/माहर्तु/मिह प्र/वृत्तः। (इंद्रवज्रा)
लगागा गालल गागाल गागा
ऋतेऽपि/ त्वां न भ/विष्यन्ति/ सर्वे (ललिता)
गागाल गागाल गागाल गागा
येऽवस्थि/ताः प्रत्य/नीकेषु/ योधाः। (प्राकारबंध)
(गीता 11.32)

(56) इंद्रवज्रा-शालिनी-ललिता-उपेन्द्रवज्रा : कुल छन्द 1
ग्यारह-ग्यारह वर्णों के चार चरणों वाले उस त्रिष्टुप छन्द को इंद्रवज्रा-शालिनी-ललिता-उपेन्द्रवज्रा कहते है, जिसके चार चरण क्रमशः इंद्रवज्रा, शालिनी, ललिता और उपेन्द्रवज्रा के होते हैं।
गीता में इंद्रवज्रा-शालिनी-ललिता-उपेन्द्रवज्रा छन्दों की कुल संख्या 1 है जिसका सन्दर्भ निम्नलिखित प्रकार है-
सन्दर्भ : 11.33

उदाहरण :
गागाल गागाल लगाल गागा
तस्मात्त्व/मुत्तिष्ठ/ यशो ल/भस्व^ (इंद्रवज्रा)
गागागा गागाल गागाल गागा
जित्वा श/त्रून् भुङ्क्ष्व/ राज्यं स/मृद्धम्। (शालिनी)
लगागा गालल गागाल गागा
मयैवै/ते निह/ताः पूर्व/मेव^ (ललिता)
लगाल गागाल लगाल गागा
निमित्त/मात्रं भ/व सव्य/साचिन्। (उपेन्द्रवज्रा)
(गीता 11.33)

(57) वातोर्मि-यशोदा-विशाखा-यशोदा : कुल छन्द 1
ग्यारह-ग्यारह वर्णों के चार चरणों वाले उस त्रिष्टुप छन्द को वातोर्मि-यशोदा-विशाखा-यशोदा कहते है, जिसके चार चरण क्रमशः वातोर्मि, यशोदा,विशाखा और यशोदा के होते हैं।
गीता में वातोर्मि-यशोदा-विशाखा-यशोदा छन्दों की कुल संख्या 1 है जिसका सन्दर्भ निम्नलिखित प्रकार है-
सन्दर्भ : 11.35

उदाहरण :
गागागा गालल गागाल गागा
एतच्छ्रु^/त्वा वच/नं केश/वस्य^ (वातोर्मि)
लगाल गागाल गागाल गागा
कृताञ्ज/लिर्वेप/मानः कि/रीटी। (यशोदा)
लगागा गागाल गागाल गागा
नमस्कृ^/त्वा भूय/ एवाह/ कृष्णं (विशाखा)
लगाल गागाल गागाल गागा
सगद्ग/दं भीत/भीतः प्र/णम्य^। (यशोदा)
(गीता 11.35)

(58) ईहामृगी-यशोदा-उपेन्द्रवज्रा-शारदा : कुल छन्द 1
ग्यारह-ग्यारह वर्णों के चार चरणों वाले उस त्रिष्टुप छन्द को ईहामृगी-यशोदा-उपेन्द्रवज्रा-शारदा कहते है, जिसके चार चरण क्रमशः ईहामृगी, यशोदा, उपेन्द्रवज्रा और शारदा के होते हैं।
गीता में ईहामृगी-यशोदा-उपेन्द्रवज्रा-शारदा छन्दों की कुल संख्या 1 है जिसका सन्दर्भ निम्नलिखित प्रकार है-
सन्दर्भ : 11.37

उदाहरण :
गागाल गालल गागाल गागा
कस्माच्च/ ते न न/मेरन्म/हात्मन् (ईहामृगी)
लगाल गागाल गागाल गागा
गरीय/से ब्रह्म/णोऽप्यादि/कर्त्रे। (यशोदा)
लगाल गागाल लगाल गागा
अनन्त/ देवेश/ जगन्नि/वास^ (उपेन्द्रवज्रा)
लगाल गालल गागाल गागा
त्वमक्ष/रं सद/सत्तत्प/रं यत्। (शारदा)
(गीता 11.37)

(59) उपेन्द्रवज्रा-इंद्रवज्रा-शारदा-उपेन्द्रवज्रा : कुल छन्द 1
ग्यारह-ग्यारह वर्णों के चार चरणों वाले उस त्रिष्टुप छन्द को उपेन्द्रवज्रा-इंद्रवज्रा-शारदा-उपेन्द्रवज्रा कहते है, जिसके चार चरण क्रमशः उपेन्द्रवज्रा, इंद्रवज्रा, शारदा, और उपेन्द्रवज्रा के होते हैं।
गीता में उपेन्द्रवज्रा-इंद्रवज्रा-शारदा-उपेन्द्रवज्रा छन्दों की कुल संख्या 1 है जिसका सन्दर्भ निम्नलिखित प्रकार है-
सन्दर्भ : 11.41

उदाहरण :
लगाल गागाल लगाल गागा
सखेति/ मत्वा प्र/सभं य/दुक्तं (उपेन्द्रवज्रा)
गागाल गागाल लगाल गागा
हे कृष्ण/ हे याद/व हे स/खेति^। (इंद्रवज्रा)
लगाल गालल गागाल गागा
अजान/ता महि/मानं त/वेदं (शारदा)
लगाल गागाल लगाल गागा
मया प्र/मादात्प्र/णयेन/ वापि^। (उपेन्द्रवज्रा)
(गीता 11.41)

(60) शारदा-इंद्रवज्रा-इंद्रवज्रा-उपेन्द्रवज्रा : कुल छन्द 1
ग्यारह-ग्यारह वर्णों के चार चरणों वाले उस त्रिष्टुप छन्द को शारदा-इंद्रवज्रा-इंद्रवज्रा-उपेन्द्रवज्रा कहते है, जिसके चार चरण क्रमशः शारदा, इंद्रवज्रा, इंद्रवज्रा और उपेन्द्रवज्रा के होते हैं।
गीता में शारदा-इंद्रवज्रा-इंद्रवज्रा-उपेन्द्रवज्रा छन्दों की कुल संख्या 1 है जिसका सन्दर्भ निम्नलिखित प्रकार है-
सन्दर्भ : 11.46

उदाहरण :
लगाल गालल गागाल गागा
किरीटि/नं गदि/नं चक्र/हस्त^- (शारदा)
गागाल गागाल लगाल गागा
मिच्छामि/ त्वां द्रष्टु/महं त/थैव^। (इंद्रवज्रा)
गागाल गागाल लगाल गागा
तेनैव/ रूपेण/ चतुर्भु/जेन^ (इंद्रवज्रा)
लगाल गागाल लगाल गागा
सहस्र/बाहो भ/व विश्व/मूर्ते। (उपेन्द्रवज्रा)
(गीता 11.46)

(61) उपेन्द्रवज्रा-उपेन्द्रवज्रा-गुणांगी-इंद्रवज्रा : कुल छन्द 1
ग्यारह-ग्यारह वर्णों के चार चरणों वाले उस त्रिष्टुप छन्द को उपेन्द्रवज्रा-उपेन्द्रवज्रा-गुणांगी-इंद्रवज्रा कहते है, जिसके चार चरण क्रमशः उपेन्द्रवज्रा, उपेन्द्रवज्रा, गुणांगी और इंद्रवज्रा के होते हैं।
गीता में उपेन्द्रवज्रा-उपेन्द्रवज्रा-गुणांगी-इंद्रवज्रा छन्दों की कुल संख्या 1 है जिसका सन्दर्भ निम्नलिखित प्रकार है-
सन्दर्भ : 11.48

उदाहरण :
लगाल गागाल लगाल गागा
न वेद/यज्ञाध्य/यनैर्न/ दानैर्- (उपेन्द्रवज्रा)
लगाल गागाल लगाल गागा
न च क्रि/याभिर्न/ तपोभि/रुग्रैः। (उपेन्द्रवज्रा)
गागागा गागाल लगाल गागा
एवंरू/पः शक्य/ अहं नृ/लोके (गुणांगी)
गागाल गागाल लगाल गागा
द्रष्टुं त्व/दन्येन/ कुरुप्र/वीर^। (इंद्रवज्रा)
(गीता 11.48)

(62) इंद्रवज्रा-शालिनी-उपेन्द्रवज्रा-उपेन्द्रवज्रा : कुल छन्द 1
ग्यारह-ग्यारह वर्णों के चार चरणों वाले उस त्रिष्टुप छन्द को इंद्रवज्रा-शालिनी-उपेन्द्रवज्रा-उपेन्द्रवज्रा कहते है, जिसके चार चरण क्रमशः इंद्रवज्रा, शालिनी, उपेन्द्रवज्रा और उपेन्द्रवज्रा के होते हैं।
गीता में इंद्रवज्रा-शालिनी-उपेन्द्रवज्रा-उपेन्द्रवज्रा छन्दों की कुल संख्या 1 है जिसका सन्दर्भ निम्नलिखित प्रकार है-
सन्दर्भ : 11.49

उदाहरण :
गागाल गागाल लगाल गागा
मा ते व्य/था मा च/ विमूढ/भावो (इंद्रवज्रा)
गागागा गागाल गागाल गागा
दृष्ट्वा रू/पं घोर/मीदृङ्म/मेदम्। (शालिनी)
लगाल गागाल लगाल गागा
व्यपेत/भीः प्रीत/मनाः पु/नस्त्वं (उपेन्द्रवज्रा)
लगाल गागाल लगाल गागा
तदेव/ मे रूप/मिदं प्र/पश्य^। (उपेन्द्रवज्रा)
(गीता 11.49)

(63) प्राकारबंध-विशाखा-इंद्रवज्रा-इंद्रवज्रा : कुल छन्द 1
ग्यारह-ग्यारह वर्णों के चार चरणों वाले उस त्रिष्टुप छन्द को प्राकारबंध-विशाखा-इंद्रवज्रा-इंद्रवज्रा कहते है, जिसके चार चरण क्रमशः प्राकारबंध, विशाखा, इंद्रवज्रा और इंद्रवज्रा के होते हैं।
गीता में प्राकारबंध-विशाखा-इंद्रवज्रा-इंद्रवज्रा छन्दों की कुल संख्या 1 है जिसका सन्दर्भ निम्नलिखित प्रकार है-
सन्दर्भ : 11.50

उदाहरण :
गागाल गागाल गागाल गागा
इत्यर्जु/नं वासु/देवस्त/थोक्त्वा (प्राकारबंध)
लगागा गागाल गागाल गागा
स्वकं रू/पं दर्श/यामास/ भूयः। (विशाखा)
गागाल गागाल लगाल गागा
आश्वास/यामास/ च भीत/मेनं (इंद्रवज्रा)
गागाल गागाल लगाल गागा
भूत्वा पु/नः सौम्य/वपुर्म/हात्मा। (इंद्रवज्रा)
(गीता 11.50)

(64) ललिता-उपेन्द्रवज्रा-उपेन्द्रवज्रा-इंद्रवज्रा : कुल छन्द 1
ग्यारह-ग्यारह वर्णों के चार चरणों वाले उस त्रिष्टुप छन्द को ललिता-उपेन्द्रवज्रा-उपेन्द्रवज्रा-इंद्रवज्रा कहते है, जिसके चार चरण क्रमशः ललिता, उपेन्द्रवज्रा, उपेन्द्रवज्रा और इंद्रवज्रा के होते हैं।
गीता में ललिता-उपेन्द्रवज्रा-उपेन्द्रवज्रा-इंद्रवज्रा छन्दों की कुल संख्या 1 है जिसका सन्दर्भ निम्नलिखित प्रकार है-
सन्दर्भ : 15.2

उदाहरण :
लगागा गालल गागाल गागा
अधश्चोर्/ध्वं प्रसृ/तास्तस्य/ शाखा (ललिता)
लगाल गागाल लगाल गागा
गुणप्र/वृद्धा वि/षयप्र/वालाः। (उपेन्द्रवज्रा)
लगाल गागाल लगाल गागा
अधश्च/ मूलान्य/नुसंत/तानि^ (उपेन्द्रवज्रा)
गागाल गागाल लगाल गागा
कर्मानु/बन्धीनि/ मनुष्य/लोके। (इंद्रवज्रा)
(गीता 15.2)

(65) वंशस्थ-इंद्रवज्रा-इंद्रवज्रा-उपेन्द्रवज्रा(भुरिक्) : कुल छन्द 1
चार चरणों वाले उस त्रिष्टुप छन्द को वंशस्थ-इंद्रवज्रा-इंद्रवज्रा-उपेन्द्रवज्रा(भुरिक्) कहते है, जिसके चार चरण क्रमशः वंशस्थ, इंद्रवज्रा, इंद्रवज्रा और उपेन्द्रवज्रा के होते हैं।
इसमें चारों चरण 11 वर्णों के नहीं है, अपितु प्रथम चरण 12 वर्णों वाले वंशस्थ छन्द का है। इसलिए इसे भुरिक् कहा गया है।
गीता में वंशस्थ-इंद्रवज्रा-इंद्रवज्रा-उपेन्द्रवज्रा(भुरिक्) छन्दों की कुल संख्या 1 है जिसका सन्दर्भ निम्नलिखित प्रकार है-
सन्दर्भ : 15.3 (भुरिक्)

उदाहरण :
लगाल गागाल लगाल गालगा
न रूप/मस्येह/ तथोप/लभ्यते (वंशस्थ 12 वर्ण)
गागाल गागाल लगाल गागा
नान्तो न/ चादिर्न/ च संप्र/तिष्ठा। (इंद्रवज्रा 11 वर्ण)
गागाल गागाल लगाल गागा
अश्वत्थ/मेनं सु/विरूढ/मूल^- (इंद्रवज्रा 11 वर्ण)
लगाल गागाल लगाल गागा
मसङ्ग/शस्त्रेण/ दृढेन/ छित्त्वा। (उपेन्द्रवज्रा 11 वर्ण)
(गीता 15.3)

(66) उपेन्द्रवज्रा-ईहामृगी-उपेन्द्रवज्रा-उपेन्द्रवज्रा : कुल छन्द 1
ग्यारह-ग्यारह वर्णों के चार चरणों वाले उस त्रिष्टुप छन्द को उपेन्द्रवज्रा-ईहामृगी-उपेन्द्रवज्रा-उपेन्द्रवज्रा कहते है, जिसके चार चरण क्रमशः उपेन्द्रवज्रा, ईहामृगी, उपेन्द्रवज्रा और उपेन्द्रवज्रा के होते हैं।
गीता में उपेन्द्रवज्रा-ईहामृगी-उपेन्द्रवज्रा-उपेन्द्रवज्रा छन्दों की कुल संख्या 1 है जिसका सन्दर्भ निम्नलिखित प्रकार है-
सन्दर्भ : 15.4

उदाहरण :
लगाल गागाल लगाल गागा
ततः प/दं तत्प/रिमार्गि/तव्यं (उपेन्द्रवज्रा)
गागाल गालल गागाल गागा
यस्मिन्ग/ता न नि/वर्तन्ति/ भूयः। (ईहामृगी)
लगाल गागाल लगाल गागा
तमेव/ चाद्यं पु/रुषं प्र/पद्ये (उपेन्द्रवज्रा)
लगाल गागाल लगाल गागा
यतः प्र/वृत्तिः प्र/सृता पु/राणी। (उपेन्द्रवज्रा)
(गीता 15.4)

सन्दर्भ : कृति ‘गीता के छन्द’, कृतिकार- आचार्य ओम नीरव 8299034545

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