पिता का ऋण गीत
पिता का ऋण गीत
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एक बेटे ने पिता से पूछा आपका मुझ पर कर्ज है कितना
पिता ना बोले समय ने कहा सागर में पानी है जितना
क्या संभव है तुम भी कभी ऋषि अगस्त से बन पाओगे
अपने एक चुल्लू में लेकर सारा सागर पी जाओगे
रुपया पैसा धन और जेवर होती नहीं है उनकी गणना
पिता ना बोले समय ने कहा सागर में पानी है जितना
सत्कर्मों से पुण्य कमा कर नहीं चुका पाओगे इसको
दुनिया में कोई न मिलेगा गर्व से बतलाओगे जिसको
माता-पिता का कर्ज चुकाना संभव नहीं ना देखो सपना
पिता ना बोले समय ने कहा सागर में पानी है जितना
बड़ बोला पन है मानव का करता रहता है नादानी
सबक सिखा कर समय बोलता बड़ी गजब की है मनमानी
नहीं चुकेगा यह ऋण ऐसा जैसे बहता रहता झरना
पिता ना बोले समय ने कहा सागर में पानी है जितना
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डॉक्टर इंजीनियर
मनोज श्रीवास्तव