स्वागतम : नव-वर्ष
आओ.. आओ.. हे नव-वर्ष,
पुकारता है
यह सन्धिकाल तुम्हें
बाँहें फैलाकर,
करते हैं स्वागत तेरे
इस विश्वास से
कि तुम भी
हमारे सपनों में
इन्द्रधनुषी रंग भरोगे,
अन्धेरों के घर
सदा रौशन करोगे
और
दीप्त स्वर्णिम इतिहास बनोगे.
स्वागतम.. स्वागतम.. स्वागतम
नव-वर्ष.. नव-हर्ष.. नव उत्कर्ष..।
(मुट्ठी भर तिनके : काव्य संग्रह से…)
डॉ. किशन टण्डन क्रान्ति
साहित्य वाचस्पति
लाइफ टाइम अचीवमेंट अवार्ड प्राप्त
हरफनमौला साहित्य लेखक।