स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात शिक्षा का स्तर
स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात शिक्षा के गिरते हुए स्तर में सुधार लाने के लिए सत्ताधीश सरकार द्वारा समय समय पर कई प्रयास किये गए । शिक्षा के क्षेत्र में सुधार करने के लिए कई सारी नीतियां लागू की गई । इन नीतियों को लागू करने का मुख्य उद्देश्य शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार करना था। लेकिन आधुनिकता, वैश्वीकरण,पाश्चात्य सभ्यता के इस युग में भारतीय शिक्षा पद्धति,तथा संस्कृति का पतन होता गया । जिसका बुरा असर हमारे आज के समाज पर साफ तौर पर देखा जा सकता है। अपनी मातृभाषा को त्याग कर विदेशी भाषा को भी भारतीय संविधान में जोड़ दिया गया। मैकाले द्वारा बनाई गई वर्तमान शिक्षा प्रणाली ने भारतीय समाज की एकता को नष्ट करने तथा वर्णाश्रित कर्म के प्रति घृणा उत्पन्न करने का एक काम किया। मैकाले की शिक्षा पद्धति का मुख्य उद्देश्य भारत देश मे – संस्कृत, फारसी तथा लोक भाषाओं के वर्चस्व को तोड़कर अंग्रेजी का वर्चस्व कायम करना तथा इसके साथ ही सरकार चलाने के लिए देश के युवा अंग्रेजों को तैयार करना था । मैकाले की इस शिक्षा प्रणाली के जरिए वंशानुगत कर्म के प्रति घृणा पैदा करने और परस्पर विद्वेष फैलाने की भी कोशिश की गई थी। इसके अलावा पश्चिमी सभ्यता एवं जीवन पद्धति के प्रति आकर्षण पैदा करना भी मैकाले का लक्षय था।
भारत की आजादी के पश्चात भारतीय शिक्षा व्यवस्था को समय-समय पर सही दिशा देनें के लिए कई प्रयास किए गए । विश्वविद्यालयी शिक्षा की अवस्था पर रिपोर्ट देने के लिये डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन की अध्य्क्षता में राधाकृष्ण आयोग या विश्वविद्यालय शिक्षा आयोग का गठन भारत सरकार द्वारा नवम्बर 1948-19497 में किया गया था। यह स्वतंत्र भारत का पहला शिक्षा आयोग था ।
माध्यमिक शिक्षा की स्थिति में सुधार लाने के लिए
लक्ष्मणस्वामीमुदालियर की अध्यक्षता में माध्यमिक शिक्षा आयोग,1952-53 का गठन किया गया। इस आयोग का मुख्य उद्देश्य माध्यमिक स्तर की प्राथमिक ,बेसिक तथा उच्च शिक्षा से सम्बन्ध्ति समस्याओ का अध्धयन कर
स्कूली शिक्षा में गुणवत्ता लाने के लिए सुझाव देना था ।
1964-66 डॉ दौलतसिंह कोठारी की अध्यक्षता में स्कूली शिक्षा प्रणाली को नया आकार व नयी दिशा देने के उद्देश्य से कोठारी आयोग या राष्ट्रीय शिक्षा नीति का गठन किया गया। इस आयोग में समाज मे हो रहे बदलावों को ध्यान में रखते हुए अपने सुझाव प्रस्तुत किये।
यह भारत का पहला ऐसा शिक्षा आयोग था जिसने समय की मांग को ध्यान में रखते हुए स्कूली शिक्षा में लड़कों तथा लड़कियों के लिए एक समान पाठ्यक्रम,व्यवसायिक स्कूल,प्राइमरी कक्षाओं में मातृभाषा में ही शिक्षा तथा माध्यमिक स्तर (सेकेण्डरी लेवेल) पर स्थानीय भाषाओं में शिक्षण को प्रोत्साहन दिया।
वर्तमान में चल रही शिक्षा 1986 राष्ट्रीय शिक्षा नीति पर आधारित है। इस शिक्षा नीति में सबके लिए शिक्षा’’ भौतिक और आध्यात्मिक विकास की बुनियादी जरूरत है पर बल दिया गया । इस शिक्षा नीति ने समाज को शिक्षित करने के लिए बिना किसी भेदभाव के शिक्षा में समानता के भाव को उजागर किया । जिससे कि शिक्षा तक सबकी पहुंच समभव हो सके ।
स्वतन्त्रता के इन 73 वर्षों के अंतर्गत सत्ता में आसीन सरकार द्वारा शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार करने के लिए
कई आयोगों तथा नीतियों का निर्माण किया गया। परन्तु उन नीतियों को जमीनी स्तर पर लागू करने में आज तक विफल रही है। शिक्षा की बिगड़ती हुई व्यवस्था उसका एक जीता जागता उदहारण है। सरकार द्वारा शिक्षा की स्थिति या व्यवस्था को सुधारने के लिए जारी किया फंड तथा अनगिनत नीतियां मात्र बन्द आंखों से स्वप्न देखने तक ही सीमित है।
भूपेंद्र रावत
17।05।2020