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12 May 2024 · 1 min read

सुनहरे झील पर बुझते सूरज से पूछो।

सुनहरे झील पर बुझते सूरज से पूछो,
यादें लहरों की उसे सताती हैं क्या?
जमीं पर फैली घास की कोपलों से पूछो,
फ़ना होने वाली ओस की बूँदें रुलाती हैं क्या?
घनेरे रातों को चीरते धूमकेतुओं से पूछो,
अंतरिक्ष की शून्यता उन्हें बुलाती है क्या?
प्रवास की ख्वाहिश में उड़ते पंछियों से पूछो,
दरख्तों पर छूटे घोंसलों की ठंडक, उन्हें तड़पाती है क्या?
बंजर खेतों में उड़ती, धूल भरी आँधियों से पूछो,
लहलहाते फ़सलों की आशाएं, नींदों को चुराती हैं क्या?
बेजान खंडहरों की उदासीन, ईंटों से पूछो,
आहटें अपनों की हर कोने में आज भी गुनगुनाती हैं क्या?
स्याह रंग के षड्यंत्रों में गुमी, ज़िंदगानी से पूछो,
गलियां रंगरेज की, उसे कभी लुभाती हैं क्या?
छूटते किरदारों वाली अधूरी कहानी से पूछो,
खाली पन्नों पर सजी अनकही बात, जज़्बात जगाती हैं क्या?

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