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17 Feb 2024 · 1 min read

जीता जग सारा मैंने

जीता जग सारा मैंने
अपने घर से हार गया
रोकर एक पिता यूं बोला
चंदा से सूरज हार गया।।

शब्द, शब्द से शब्द बड़े
शब्द, शांत नि:शब्द खड़े
नेह-प्यार के शब्दकोश में
निष्ठुर-निर्लज शब्द मिले।।

अपनों की इस व्याकरण में
शब्द-शब्द का अपना मोल
हर शब्द की अपनी मर्यादा
वरना यह तो धरती गोल

शुचिता शाश्वत शब्दों की
अनुशासन से ही घर बना
मर्यादा और मान-नेह से
सपनों का संसार बना।।

होती नहीं प्रेम की भाषा
कैसा घर शिवालय कैसा
पत्नी, पिता, पुत्र-पुत्री से
प्रतिष्ठित ये देवालय कैसा।।

-सूर्यकांत द्विवेदी

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